संत श्रीआशारामजी बापू के साथ POCSO ACT का भरपूर दुरुपयोग हुआ …जानिए…..

7 अप्रैल 2022

 
🚩एक महान संत को जेल भेजने के लिए prosecution के द्वारा कैसे एक बालिग़ लडकी को नाबालिग दिखाया गया !

 

🚩चूंकि संत श्रीआशारामजी बापू का मुकदमा 5 साल तक POCSO ACT के तहत चला.. पहला और सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न था…क्या लडकी नाबालिग है ? यदि लडकी 18 वर्ष से कम आयु की पायी नहीं जाती तो पोक्सो के तहत मुकदमा चलाने का न्यायालय के पास कोई अधिकार क्षेत्र नहीं था |
 
🚩बापूजी के पक्ष ने लडकी के बालिग़ होने के सम्बन्ध में 6 महत्वपूर्ण दस्तावेज कोर्ट के सामने रखे थे।
 
🚩पहला था- लडकी के प्रथम स्कुल शंकर मुमुक्षु का एडमिशन फ़ॉर्म।
दुसरा- रजिस्ट्रेशन फॉर्म
तीसरा- स्कॉलर रजिस्टर
चौथा – लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी प्रपोजल फॉर्म
और पाँचवा था राशन कार्ड 
साथ ही लडकी के पिता का शंकर मुमुक्षु स्कुल में प्रस्तुत हुआ एफिडेविट !
 
 🚩परन्तु, जोधपुर न्यायालय ने हाईस्कूल सर्टिफिकेट को आयु निर्धारण का एकमात्र आधार मानते हुए लड़की को नाबालिग मान पोक्सो के तहत केस चलाया । पोक्सो नॉन-बेलेबल होने के कारण बापूजी को बेल नहीं दी गयी और.. इस एक्ट के अनुसार जेल में रहते हुए अपने को बेगुनाह साबित करने की जिम्मेदारी भी बापू आशाराम जी की रही !
 
🚩जब जोधपुर के सेशंस कोर्ट व हाईकोर्ट ने इन (यहाँ पर प्रथम स्कुल के दस्तावेज, लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी, राशन कार्ड दिखायें) आयु के दस्तावेजों को consider करने से मना किया, तब बापूजी के पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगायी ।
 
🚩 15 ओक्टोबर 2014 को सर्वोच्च न्यायालय का स्पष्ट आदेश हुआ की जोधपुर कोर्ट मात्र हाईस्कूल सर्टिफिकेट के आधार पर नहीं अपितु पहले बताये गये सभी दस्तावेजों को मद्दे नजर रखते हुए लडकी की आयु सुनिश्चित करें (यहाँ पर प्रथम स्कुल के दस्तावेज, लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी, राशन कार्ड दिखायें)| सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार, बापू आशारामजी जी के पक्ष ने इन सभी दस्तवेज़ों को एविडेन्स एक्ट के तहत न्यायालय में प्रमाणित भी किया। फिर भी सेशन कोर्ट द्वारा 2018 में दिए गए जजमेंट में इन सभी दस्तावेजों को  झुठलाते हुए मात्र उस हाईस्कूल सर्टिफिकेट के आधार पर लडकी को नाबालिग घोषित कर सजा सुनाई गयी !
 
🚩सबसे पहले सवाल उठता है- क्या यह सर्टिफिकेट न्यायालय में कानून के अनुसार प्रमाणित किया गया है?…..
उत्तर है- नहीं ..!
 
 🚩स्वयं लड़की के वकील ने, 21 मार्च 2018 को, अपने Final arguments के पहले दिन, कोर्ट में 311 की application लगाकर कहा था कि हम इस हायस्कुल सर्टिफिकेट की सत्यता को Indian Evidence Act के अनुसार न्यायालय में सिद्ध नहीं कर पाए हैं… इसे सिद्ध करने के लिये लड़की को कोर्ट में फिर से  बुलाया जाए ।
 
🚩 इस अर्जी में अभियोजन पक्ष ने स्पष्ट रूप से स्वीकार किया है कि वे POCSO के तहत आरोप को बनाए रखने के लिए आवश्यक तथ्यों को साबित करने में विफल रहे हैं ।
 
🚩इस अर्ज़ी को जजसाहब ने यह कहकर ख़ारिज कर दिया था की ‘Prosecution को 34 महीने पहले  हुए जाँच अधिकारी नितिन दवे के बयान के समय से ही पता था कि हाई स्कूल सर्टिफिकेट साबित नही हुआ है और अब अंतिम सुनवाई में पेश की गयी यह अर्जी कार्यवाही में देरी करने के इरादे से पेश की गयी है ।
 
🚩इस ऑर्डर के कुछ ही दिन बाद आश्चर्यजनक ढंग से उसी unproved High School certificate को सेशन्स कोर्ट के द्वारा  ‘सरकारी दस्तावेज’ कहकर सबूत में स्वीकारा गया और बापू आशारामजी को केवल लडकी के बयान के आधार पर सजा सुनायी गयी !
 
🚩यहाँ एक बात गौर करने योग्य है…. कानून कहता है, ‘सरकारी दस्तावेज’ को भी Indian Evidence Act के तहत साबित करना आवश्यक है ।
 
🚩ऐसे में अब सवाल उठता है निचली अदालतों के निर्णयों पर ..!
 
🚩हाल ही में 6 मार्च 2022 को मध्यप्रदेश इंदौर हायकोर्ट की खंडपीठ ने सेशन कोर्ट द्वारा pocso में दिए गए १० साल की सजा के निर्णय को ख़ारिज करते हुए कहा की “दुष्कर्म केस में लड़की की उम्र साबित किये बिना सजा देना गंभीर गलती है।
 
🚩इंदौर हायकोर्ट ने POCSO हटाते समय इस तथ्य को मद्देनजर रखा की लडकी के स्कुल एडमिशन के समय उसके डेट ऑफ़ बर्थ से सम्बंधित कोई प्रमाणपत्र पेश नही किया गया था व लड़की  के स्कुल के प्राध्यापक भी उसके आयु की सही जानकारी सही नहीं दे पाए थे।
 
🚩इस पर इंदौर हायकोर्ट ने पोक्सो के तहत सजा भुगतने वाले, ७ साल से जेल में बंद युवक को निर्दोष बरी किया व उसका जुर्माना भी लौटाया ! दोस्तों ! जुर्माना तो कोर्ट ने लौटा दिया लेकिन उसकी जिन्दगी के 7 साल कोई लौटा पाएगा?
 
🚩अब सवाल उठता है- क्या बापू आशारामजी के केस में हायस्कुल सर्टिफिकेट में लिखे डेट ऑफ़ बर्थ का कोई प्रमाण है?
 
🚩उत्तर है- इसका कोई प्रमाण नहीं है | लडकी का बर्थ सर्टिफिकेट कोर्ट के रिकोर्ड पर नहीं है !!
 
🚩अब हम इस केस में हुए आयु निर्धारण का दुसरा पहलु भी देखते है |
Pocso में Age determination… JJ act के तहत किया जाता है व JJ act में High school certificate के बाद प्रथम स्कुल के दस्तावेजों को महत्वपूर्ण माना गया है |
 
 🚩लड़की शाह्जापुर के शंकर मुमुक्षु स्कुल में नर्सरी से पहली कक्षा तक पढ़ी थी अर्थात यह उसका पहला स्कुल था और बचाव पक्ष द्वारा प्रस्तुत इस स्कुल के एडमिशन फॉर्म, रजिस्ट्रेशन फॉर्म व स्कॉलर रजिस्टर के अनुसार लड़की बालिग़ थी ।
 
🚩लेकिन प्रोसीक्यूशन ने शाह्जापुर के ‘सरस्वती शिशु मंदिर’ के फर्जी कागजात बनाकर व झूठी गवाहियां करवाके उसे लडकी का पहला स्कुल दिखाया | जब की ‘सरस्वती शिशु मंदिर’ के दस्तावेज बताते है की लडकी ने इस स्कुल में 2 री कक्षा से पढ़ाई शुरू की थी | परन्तु prosecution द्वारा इस पर यह कहानी गढ़ी गयी की लडकी ने दूसरी कक्षा से पहले किसी स्कुल में पढ़ाई की ही नही है…! और इस कहानी को साबित करने के लिए लड़की के पिता ने FIR होने के 2 महीने बाद, 22 ओक्टोबर 2013 को इस स्कुल के फर्जी एडमिशन फॉर्म व ट्रांसफर सर्टिफिकेट बनाके जाँच एजन्सी को दिए | कानून के अनुसार, प्रोसिक्युशन को इन सर्टिफिकेटस को कोर्ट में प्रमाणित करने के लिए लडकी उस स्कुल में पढ़ती थी उस समय के.. अर्थात 2002 के प्रिंसिपल तथा जिन-जिन कर्मचारियों के हस्ताक्षर इन दस्तावेजों पर थे.. उनकी गवाहीयाँ कराना जरुरी था | और वे ट्रायल के समय जीवित भी थे…
 
🚩गौर कीजिए 
प्रॉसिक्यूशन ने ऐसा न करके 2013 के प्रिंसिपल की गवाही करवाई और FIR होने के बाद बने हुए फर्जी TC को उनसे प्रमाणित करवाया !!
लडकी ने ‘सरस्वती शिशु मंदिर’ 2006 में छोड़ा है और TC बनी है 2013 में.. FIR होने के बाद ! और उस फर्जी TC के आधार पर High-school Certificate में लिखी Date of birth को prosecution द्वारा न्यायालय में प्रमाणित किया गया है ! अगर सरस्वती शिशु मंदिर के दस्तावेज जायज होते तो prosecution स्कुल के सही कर्मचारियों व प्रिंसिपल की गवाही करवाता !!! लेकिन prosecution के दस्तावेज भी फर्जी थे और गवाहियाँ भी फर्जी !!
यह कानून के साथ कैसा खिलवाड़ है ?
 
🚩सत्य को झूठा साबित करने के लिए Prosecution की रची मनगढ़ंत कहानियाँ !
कोर्ट में जब लडकी के प्रथम स्कुल शंकर मुमुक्षु के एडमिशन फॉर्म, रजिस्ट्रेशन फॉर्म, व scholar register लड़की के पिता को confront करके पूछा गया की लडकी तो शंकर मुमुक्षु स्कुल में नर्सरी से पहली कक्षा तक पढ़ती थी …. और स्कुल के दस्तावेजों पर आपके भी साइन है …तब सत्य पर पर्दा डालते हुए पिता ने कहा… ‘लडकी 1999 से 2002 तक उस स्कुल में जाती थी लेकिन केवल खेलने के लिए जाती थी…पढ़ती नहीं थी…!!
 
🚩अपने साइन के बारे में पिता ने कहा- मैंने ‘खाली’ अर्थात ब्लेंक फॉर्म पे साइन किये थे…फॉर्म स्कुल वालों ने भरा था… और फॉर्म में डेट ऑफ़ बर्थ भी उन्होंने ही लिखी थी !
 
🚩दर्शकों क्या एक डेढ़ साल की लडकी किसी स्कुल में खेलने के लिए जा सकती है ? और आगे लगातार 3 साल तक केवल खेलने के लिए जाती रहेगी?
 
🚩दर्शकों…दरअसल यह कहानियाँ इसलिए गढ़ी गयी क्योंकि JJ Act_Rule_12 के अनुसार Play school में लिखी हुई Date of birth स्वीकार्य नहीं है ! और इसलिए जिस स्कुल में लडकी नर्सरी में प्रथम कक्षा तक पढ़ी उसे prosecution ने कई झूठी कहानियाँ रच के play school दिखाने का प्रयास किया और इस कूट निति में वे सेशन्स कोर्ट में तो सफल हुए !!!
 
🚩परन्तु हकीकत ये है की शंकर मुमुक्षु CBSC से affiliated एक विद्यापीठ है और बचाव पक्ष के द्वारा इस स्कुल की प्रिंसिपल ने कोर्ट में आकर यह बात स्पष्ट की है की ‘शंकर मुमुक्षु स्कुल में प्ले ग्रुप नही है और लड़की उस स्कुल में 1999 से 2002 तक पढ़ती थी व इसी दौरान लडकी के पिता ने उसका नाम बदलने के लिए एक एफिडेविट भी प्रस्तुत किया था !
 
🚩लडकी के पिता को जब यह एफिडेविट दिखाया गया तब पिताने फिर से वही जवाब दिया… इस एफिडेविट पर जो साइन है वह मेरे है लेकिन अंदर लिखे हुए तथ्य मेरे लिखे हुए नहीं है…
 
🚩दर्शकों… सही को गलत और गलत को सही करने के prosecution के यह कैसे हथखंडे है…कानून भी कहता है की किसी डोक्युमेंट पर अगर किसी बिजनेसमैन के साइन हो तो यह नही माना जाएगा की वह उस डोक्युमेंट के तथ्यों से अनजान है ! और लडकी का पिता एक बिजनेस मैन है व इनके कॉल डिटेल रिकार्ड्स भी जाँच एजन्सी ने छुपाये है !
    
🚩लडकी के स्कुल के दस्तावेजों का एक तठस्थ अवलोकन यह सुनिश्चित करता है की लड़की नर्सरी से लेके प्रथम कक्षा तक शंकर मुमुक्षु स्कुल में व दूसरी से सरस्वती शिशु मंदिर में पढ़ी है व उनके अनुसार वह बालिग़ है ।
 
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