23 अप्रैल 2019
‘आर्य सनातन वैदिक संस्कृति’ गंगा के तटपर विकसित हुई, इसलिए गंगा हिंदुस्तान की राष्ट्ररूपी अस्मिता है एवं भारतीय संस्कृति का मूलाधार है । इस कलियुग में श्रद्धालुओं के पाप-ताप नष्ट हों, इसलिए ईश्वर ने उन्हें इस धरा पर भेजा है । वे प्रकृति का बहता जल नहीं; अपितु सुरसरिता (देवनदी) हैं । उनके प्रति हिंदुओं की आस्था गौरीशंकर की भांति सर्वोच्च है, लेकिन मां गंगा की स्वच्छता रह नहीं पा रही है यह एक अत्यंत गंभीर मुद्दा हैं ।
आपको बता दें कि स्वच्छ और निर्मल गंगा के लिए संत आत्माबोधानंद पिछले 180 दिनों से अनशन पर बैठे हैं । केरल के रहने वाले संत ने अब गंगा सफाई की दिशा में कोई ठोस प्रगति नहीं होती देख कर जल त्यागने का निर्णय किया है। संत आत्माबोधानंद ने इस संबंध में नरेंद्र मोदी को पत्र भी लिखा है । टीओआई से बातचीत में संत ने कहा, ‘मैंने गंगा की सफाई की सभी उम्मीद छोड़ दी है और इस पवित्र नदी के लिए अपनी जान देने में मुझे कोई डर नहीं है ।’
संत आत्माबोधानंद ने कहा कि, उन्होंने इस बारे में प्रधानमंत्री और संयुक्त राष्ट्र के महासचिव को पत्र लिखा है । संत का कहना है कि, वह भले ही स्वच्छ गंगा के लिए अनशन कर रहे हैं, लेकिन न तो केंद्र सरकार और ना ही राज्य सरकार ने गंगा की सफाई को लेकर उनकी मांगों पर ध्यान दिया है । उन्होंने अपने पत्र में 11 मांगें रखी हैं ।
पत्र में संत ने लिखा है कि, आपकी गंगा को साफ नहीं करने की मंशा के कारण 27 अप्रैल से जल त्यागकर अपनी जान देने के अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं है । पत्र में गंगा और उसकी सभी सहायक नदियों (भागीरथी, अलकनंदा, मंदाकिनी, पिंडर और धौलीगंगा) पर बने मौजूदा बांधों और प्रस्तावित परियोजनाओं को रद्द करने को कहा है ।
पत्र में गंगा के मैदानी क्षेत्रों (विशेषकर हरिद्वार में) खनन और वनों को काटने पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है । इसके अलावा नदी के संरक्षण के लिए गंगा एक्ट को लागू करने व स्वायत्त गंगा भक्त परिषद् का गठन करने की भी मांग शामिल है । संत ने कहा कि, सरकार ने स्व. जीडी अग्रवाल जी से वादा किया था कि प्रस्तावित जल बिजली परियोजना का निर्माण नहीं किया जाए और खनन पर भी रोक लगेगी, लेकिन हरिद्वार में स्थिति बिल्कुल ही अलग है ।
यहां खनन जारी रहने के साथ ही केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और नमामि गंगे निर्देशों का उल्लंघन हो रहा है । आत्माबोधानंद ने कहा कि, वह जल का त्याग करना विरोध का सबसे कड़ा रूप है जिससे मैं भी अग्रवाल जी की तरह अपने शरीर को गंगा को बचाने के लिए त्याग दूंगा । उन्होंने दावा किया कि गंगा के आसपास बिना किसी वैज्ञानिक अध्ययन के निर्माण कार्य जारी है । गंगा तेजी से अपने औषधीय गुणों को खो रही है और इसका पानी भी पीने लायक नहीं बचा है ।
स्त्रोत : जनसत्ता
भारत का हर बारहवां व्यक्ति गंगा के किनारे रहता है । 20 लाख लोग औसतन प्रति दिन गंगा स्नान करते हैं, त्यौहारों पर यह संख्या करोड़ों हो जाती है, लेकिन उसमें कत्लखानें का पानी एवं गंदे नाले का पानी और कचरा फैंकने के कारण इतनी गंदगी हो गई है कि सफाई करने के नाम पर सरकार करोड़ों रूपये आवंटित करती है, लेकिन भ्रष्ट तंत्र के कारण माँ गंगा में अभी तक सफाई नहीं हो पाई है ।
करोड़ों हिंदुस्तानियों की आस्था माँ गंगा से जुड़ी है, गंगा सफाई के लिए पहले भी एक संत ने अपना प्राण त्याग दिया है अब संत आत्माबोधानंद जो अनशन कर रहे हैं, उनकी बातों पर सरकार को ध्यान देना चाहिए उनकी मांगे पूरी करनी चाहिए । एक संत- मां गंगा और करोड़ों लोगों की आस्था को ध्यान में रखते हुए शीघ्र गंगा सफाई करवानी चाहिए ।
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