हाल ही में 2 खबरें ज्यादा सुर्खियों में रही, पहली थी कि योगी सरकार साधु-संतों को भी देगी पेंशन, दूसरी खबर थी कि केरजीवाल सरकार दिल्ली के मस्जिदों के इमामों को वेतन देगी ।
आपको बता दें कि आगामी लोकसभा चुनावों को मद्देनज़र रखते हुए एक सरकार ने साधुओं को लुभाने की बात की है तो दूसरी सरकार ने इमामो को…
अरविंद केजरीवाल सरकार ने दिल्ली की मस्जिदों के इमामों और मोअज़्ज़िनों का वेतन बढ़ाने का एलान कर दिया है । केजरीवाल सरकार के नए फैसले के मुताबिक, दिल्ली वक़्फ़ बोर्ड के तहत आने वाली 185 मस्जिदों के इमामों को अब 18 हज़ार रुपये वेतन दिया जाएगा, पहले ये वेतन 10 हज़ार रुपये हुआ करता था । वही मुअज़्ज़िनों को अब 16 हज़ार रुपये प्रतिमाह वेतन मिलेगा जबकि अब तक मुअज़्ज़िन को 9 हज़ार रुपये मिला करता था ।
वक़्फ़ बोर्ड के तहत ना आने वाली मस्जिदों के इमामों को 14 हज़ार और मुअज़्ज़िन को 12 रुपये प्रतिमाह वेतन दिया जाएगा ।
*मतलब दिल्ली की हर मस्जिद को केजरीवाल सरकार ₹ 44,000/- प्रति माह देगी ।*
जबकि केजरीवाल सरकार ने दिल्ली में रोड और रैपिड रेल कॉरिडोर का पैसा देने को मना कर दिया है, कहा कि आर्थिक हालात ठीक नहीं है । केजरीवाल की सरकार के पास मस्जिदों के लिए पैसे हैं, लेकिन रोड और रैपिड रेल कॉरिडोर के लिए पैसे नहीं हैं, बड़ा आश्चर्य है !
योगी सरकार
योगी सरकार ने अब साधु-संतों को पेंशन देने का फैसला किया है । राज्य सरकार ये पेंशन वर्तमान पेंशन योजनाओं के तहत ही साधु संतों को देगी । इसके लिए योगी सरकार राज्य के हर जिले में कैंप लगाकर साधु-संतों का पंजीकरण कराएगी ।
जिन साधु-संत की आयु 60 वर्ष के ऊपर है उन्हें वृद्धावस्था पेंशन योजना में शामिल करने जा रही है, पेंशन में हर महीने 500 रूपये मिलेंगे ।
अब आप ही बताइए कि मुस्लिम इमाम को 18000 और साधु को केवल 500 रूपये मिलेंगे उसके बाद भी जब योगी सरकार ने संतों को पेंशन देने का एलान किया था तो तमाम सेक्युलर राजनेता तथा बुद्धिजीवी चीख पड़े थे कि योगी सरकार सांप्रदायिकता को बढ़ावा दे रही है, लेकिन जैसे ही केजरीवाल ने इमामों तथा मुअज्जिनों का वेतन बढ़ाने का फैसला किया, सभी ने चुप्पी साध ली ।
जबकि साधु-संत देश हित के कार्य करते हैं, देश में शांति का माहौल बनाते हैं और इमाम अपने धर्म के लोगो में कट्टरवाद को बढ़ावा देते हैं, जिसके कारण देश का माहौल अशांत हो जाता है ।
सरकार के ऐसे निर्यण लेने के पीछे बड़ा कारण ये है कि हिंदूओं में एकता नहीं है और हिंदू एक होकर वोट दे भी दे और हिंदूवादी सरकार आ भी जाये तो हमारे देश का संविधान ही ऐसा है कि हिंदूओ के लिए खुलकर कोई कार्य नहीं कर सकता, संविधान अल्पंसखकों को ही बढ़ावा देता है बहुसंख्यक हिंदूओ के लिए कोई भी योजना नहीं बनाई है जो हिंदू हित में हो ।
सरकार इसके लिए कानून ला भी सकती है, लेकिन जो सरकार को हिंदू चुनते हैं वे ही सरकार सेकुलर एजेंडे पर चली जाती है, सबका साथ, सबका विकास बोलकर हिंदूओं की उपेक्षा कर देती है जिसके कारण हिंदू हताश हो जाता है कि अब किसको वोट दे ? जबकि दूसरी सरकारें जब आती है तब ईसाई मुस्लिम आदि अल्पसंख्यकों को खुलकर समर्थन करते हैं उनको लाभ पहुँचानें के लिए अनेक योजनाएँ लेकर आते हैं, इसके कारण वे खुलकर उनकी सरकार को वोट देते हैं और नतीजन वो जीत भी जाते हैं ।
हिंदूओ की सरकार हिंदूओ के लिए इतना कार्य नहीं कर पाती जबकि दूसरी पार्टियां अन्य धर्म के लिए खुलकर कार्य करते है । इसी वजह से हार जाती है अगर कोई भी सरकार हिंदूओ का खुलकर समर्थन करें और उनके हित के लिए योजनाएं लाये तो उसको हार का सामना नहीं करना पड़ेगा क्योंकि देश में 80-90 करोड़ हिदू हैं ।
सरकार को अब हिंदू हित के कार्य डंटकर करने चाहिए जैसे गौ हत्या पर रोक, श्री राम मंदिर निर्माण, साधु-संतों की जेल से रिहाई, कश्मीरी पंडितों को पुनः बसाने के कार्य, मंदिरों के दान के पैसे धर्म के कार्य में ही उपयोग हो, धर्मान्तरण पर रोक , लव जिहाद पर रोक आदि कार्य करने से सरकार बहुमत से आएगी और फिर से भारत विश्वगुरु बनेगा ।
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