10 अक्टूबर 2019
*🚩हिंदुओं के मंदिर और उनकी सम्पदाओं को नियंत्रित करने के उद्देश से सन 1951 में एक कायदा बना – “The Hindu Religious and Charitable Endowment Act 1951” इस कायदे के अंतर्गत राज्य सरकारों को मंदिरों की मालमत्ता का पूर्ण नियंत्रण प्राप्त है, जिसके अंतर्गत वे मंदिरों की जमीन, धन आदि मुल्यमान सामग्री को कभी भी कैसे भी बेच सकते हैं और जैसे भी चाहे उसका उपयोग कर सकते हैं । लेख में अधिकांश आंकड़े पुराने हैं । नवीनतम आंकड़े अनुपलब्ध हैं। ट्रावनकोर देवास बोर्ड के अंतर्गत लगभग 1,249 मंदिर आते हैं, जिनमें बड़े पैमाने पर हो रही चोरी की खबर 8 मई 2013 में सामने आयी । सीसीटीवी से पता चला कि नकदी गिनने वाले कर्मचारी चोरी कर रहे हैं। ये सरकारी कर्मचारी थे जिसमे हिन्दू मुसलमान व ईसाई सभी थे।*
*🚩निम्न वाक्यों पर विचार करें। हिन्दू के लिए सभी का उत्तर “हाँ” है। मुस्लिम ईसाई के लिए “ना”।*
*1 पूजा स्थलों पर सरकारों का नियंत्रण*
*2 किसी भी पूजा स्थल को सरकार नियंत्रण में ले सकती है*
*3 पूजा स्थलों पर चढ़ावे के धन पर सरकार का नियंत्रण*
*4 पूजा स्थलों के प्रबंधन के साथ धार्मिक कार्यों पर सरकार का नियंत्रण*
*5 पूजा स्थलों की संपत्ति सरकार बेच सकती है*
*6 पूजा स्थलों की आय पर टैक्स*
*7 पूजा स्थलों की आय का उपयोग सरकार किसी और कार्य के लिए कर सकती है*
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*🚩कर्नाटक सरकार के मन्दिर एवं पर्यटन विभाग (राजस्व) द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार 1997 से2002 तक पाँच साल में कर्नाटक सरकार को राज्य में स्थित मन्दिरों से “सिर्फ़ चढ़ावे में” 391 करोड़ की रकम प्राप्त हुई, जिसे निम्न मदों में खर्च किया गया-*
*1) मन्दिर खर्च एवं रखरखाव – 84 करोड़ (यानी 21.4%)*
*2) मदरसा उत्थान एवं हज – 180 करोड़ (यानी 46%)*
*3) चर्च भूमि को अनुदान – 44 करोड़ (यानी 11.2%)*
*4) अन्य – 83 करोड़ (यानी 21.2%)*
*कुल 391 करोड़*
*🚩जैसा कि इस हिसाब-किताब में दर्शाया गया है उसको देखते हुए “सेकुलरों” की नीयत बिलकुल साफ़ हो जाती है कि मन्दिर की आय से प्राप्त धन का (46+11) 57% हिस्सा हज एवं चर्च को अनुदान दिया जाता है (ताकि वे हमारे ही पैसों से जेहाद, धार्मिक सफ़ाए एवं धर्मान्तरण कर सकें)। जबकि मन्दिर खर्च के नाम पर जो 21% खर्च हो रहा है, वह ट्रस्ट में कुंडली जमाए बैठे नेताओं व अधिकारियों की लग्जरी कारों, मन्दिर दफ़्तरों में AC लगवाने तथा उनके रिश्तेदारों की खातिरदारी के भेंट चढ़ाया जाता है। उल्लेखनीय है कि यह आँकड़े सिर्फ़ एक राज्य (कर्नाटक) के हैं, जहाँ 1997 से 2002 तक कांग्रेस सरकार ही थी…*
*इस देश की जनता पर जो सच्चाई या तो जानना नहीं चाहती और जान कर भी अनजान बनी रहती है, चाहे वह पद्मनाभ मंदिर हो या मुंबई का सिद्धि विनायक या तिरुपति या ओडिशा का श्री जगन्नाथ मंदिर सारे के सारे मंदिर सरकार के अधीन हैं और उनके ट्रस्ट के मैनेजर और उनके बोर्ड में सरकार के आदमी होते हैं जो दान के रूपये कहाँ खर्च किये जाने हैं उसका फैसला लेता हैं।*
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*🚩आँध्रप्रदेश के 43000 मंदिरों के संपत्ति से केवल 18% दान मंदिरों को अपने खर्चों के लिए दिया गया और बचा हुआ 82 % कहाँ खर्च हुआ इसका कोई उल्लेख नहीं ! यहां तक कि विश्व प्रसिद्ध तिरूमाला तिरूपति मंदिर भी बख्शा नहीं गया,हर साल दर्शनार्थियों के दान से इस मंदिर में लगभग 1300 करोड़ रुपये आते हैं जिसमें से 85% सीधे राज्यसरकार के राजकोष में चले जाते हैं, क्या हिंदू दर्शनार्थी इसलिए इन मंदिरों में दान करते हैं कि उनका दान हिंदू-इतर तत्वों के काज करने में लगे? स्टीफन एक और आरोप आंध्र प्रदेश सरकार पर लगाते हैं, उनके अनुसार कम से कम 10 मंदिरों को सरकारी आदेश पर अपनी जमीन देनी पड़ी गोल्फ के मैदानों को बनाने के लिए !!!*
*🚩“क्या हिन्दुस्तान में 10 मस्जिदों के साथ ऐसा होने की कल्पना की जा सकती है ?” इसी प्रकार कर्नाटक में कुल 2 लाख मंदिरों से 79 करोड़ रुपए सरकार ने बटोरा जिसमें से केवल 7 करोड़ रुपए मंदिर कार्यकारिणियों को दिए गए । इसी दौरान मदरसों और हज सब्सिडी के नाम पर 59 करोड़ खर्च हुआ ।
*(स्टीफन नाप लिखित पुस्तक “Crimes Against India and the Need to Protect Ancient Vedic Tradition” से)*
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*🚩जगन्नाथ मंदिर उड़ीसा*
*अप्रैल 2016 में उड़ीसा सरकार ने लगभग 400 एकड़ भूमि बेच कर 1000 करोड़ रूपए जुटाने की योजना बनाई। सरकार ने मंदिर से राजस्व को बढ़ावा देने के लिए मंदिर के जमीन की नीलामी करने की योजना बनाई है। इसके लिए भुवनेश्वर विकास प्राधिकरण को जमीन का प्लॉट काटकर बेचने को कहा गया है। खुर्दा जिले के जातानी क्षेत्र के कई गांव वालों ने इस संबंध में ओडिशा उच्च न्यायालय में केस दायर किया है। सरकार ने ओडिशा उच्च न्यायालय से स्टे ऑर्डर हासिल कर लिया है। अधिकारी जमीन पर लगे स्टे ऑर्डर को हटवाने का प्रयास कर रहे हैं, ताकि उसे बेचा जा सके।”*
*🚩सेक्युलर सुझाव क्या हैं ?(6 जुलाई 2011 के हिंदुस्तान के लेख के आधार पर।)*
*बहुत कुछ हो सकता है इस खजाने से
*-यह राशि केरल राज्य के सार्वजनिक ऋण (पब्लिक डेब्ट), जो करीब 71 हजार करोड़ रुपए है, से ज्यादा है। इस राशि से केरल की अर्थव्यवस्था बदल सकती है।*
*- इससे ‘फूड सिक्युरिटी एक्ट’ (करीब 70 हजार करोड़ रुपए) और ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (करीब 40 हजार करोड़ रुपए) का खर्च निकल सकता है।*
*- यह राशि भारत के सालाना शिक्षा बजट की ढाई गुणा है।*
*- इस राशि से भारत का सात माह का रक्षा खर्च पूरा हो सकता है।*
*- यह राशि भारत के तीन राज्यों- दिल्ली, झारखंड और उत्तराखंड के सालाना बजट से ज्यादा है।*
*- यह कोरिया की स्टील कंपनी पॉस्को द्वारा उड़ीसा में किए जा रहे 12 बिलियन डॉलर (करीब 54 हजार करोड़ रुपए) के प्रस्तावित निवेश, जो भारत में अब तक का सबसे बड़ा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) है, से करीब दोगुना है।*
*- यह राशि भारत की सबसे बड़ी कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज के मार्केट वैल्यू की एक तिहाई और विप्रो (1.02 लाख करोड़) के लगभग बराबर है।*
*🚩11 सितंबर 2018 को सांसद उदित राज ने सोशल मीडिया में कहा है कि मंदिरों के धन को बेच करके केरल में बाढ़ से हुए 21 हजार करोड़ के नुकसान का पांच गुणा अधिक धन एकत्र किया जा सकता है।*
*साफ है हिन्दूओं की आस्था और संस्कृति के केन्द्र को समाप्त करने पर आज भी सबकी निगाहें हैं। जबकि बताया जाता है कि केरल में मंदिर के पास जितनी संपत्ति है उससे अधिक चर्च और मिशनरियों के साथ वक्फ बोर्ड के पास है, फिर भी हिंदू विरोधी मानसिकता के कारण इन्हें सिर्फ मंदिर ही दिखाई देता है। भारत में रेलवे के बाद सबसे अधिक जमीन चर्च के पास है, क्यों न आपके वास्तविक मजहब की जमीन नीलाम करके बाढ़ पीड़ितों की मदद की जाए ? – पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ जी*
*🚩सरकार को चाहिए की मंदिरों के पैसे का उपयोग सिर्फ हिंदू संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए ही करना चाहिए जैसे कि वैदिक गुरुकुल, आर्युवेदिक हॉस्पिटल, मंदिर निर्माण, हिंदू धर्म ग्रँथ, मीडिया में हिंदू धर्म के प्रचार प्रसार, गरीब हिंदुओं की सहायता, अन्नक्षेत्र, साधु-संतों को पगार आदि के लिए उपयोग करना चाहिए अगर ऐसा नही कर सकते है तो सरकार को अपना नियंत्रण हटा देना चाहिए खुद हिंदू अपने मंदिर संभाल लेंगे।*
*हिंदू भी जिस मंदिर में अपना दान देते हैं उनके संचालकों से हिंदू धर्म के लिए पैसे उपयोग करने के लिए बताएं।*
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