भारत का कानून ऐसा की सुप्रीम कोर्ट के जज को करनी पड़ी टिप्पणी…

18 फरवरी 2021

 
हाल ही में भारत के भूतपूर्व मुख्य न्यायमूर्ती श्री रंजन गोगोई ने भारतीय न्यायव्यवस्था के संदर्भ में दयनीय किन्तु सत्य और सटिक टीप्पणी की है और इस बात का अनुभव हर वो व्यक्ति कर सकता है जिसका पाला भारत के न्यायालयों से पडा है । भारतीय नागरीक होने के नाते हमे अपने देश के संविधान पर गर्व है और इसके अंतर्गत बनाई गई व्यवस्था का हम सम्मान करते हैं । पर इसके साथ ही इस व्यवस्था में सुधार लाने एवं अधीक लोकोपयोगी बनाने के लिए इसका विश्लेषण करना और उचित सुधारात्मक कदम उठाना भी हम सभी नागरीकों का राष्ट्रीय कर्तव्य भी है ।
 

 

 
कानून में समानता का आदर्श कि कानून सबके लिए समान है चाहे गरीब हो चाहे अमीर , चाहे सामान्य व्यक्ती हो, चाहे राजनेता । पर अक्सर व्यवहार में न्यायालयों के अनेक निर्णयों में असमानता स्पष्टरुप से दिखाई देती है ।
 
बहु चर्चीत संत श्री आशारामजी बापू का केस ही देखा जाए तो सन् 2013 जिस समय उन पर आरोप लगा तो इतना तेजी से और विकृतरुप से मीडिया ट्रायल हुआ कि कानून की नजरों में जब सब समान हैं तो आशाराम बापू जैसे संत ही क्यों न हो उनकी भी तुरन्त गिरफ्तारी होनी चाहिए ।मीडिया ट्रायल के दबाव में या अन्य कोई भी राजनैतिक कारण रहे हों पुलीस ने भी उनकी गिरफ्तारी में पुरी तत्परता दिखाई । वर्षों तक ट्रायल चलता रहा पर इस दौरान ना ही उन्हे किसी भी तरह की जमानत तक नहीं मिली और कारागृह में रहते हुए ही सजा सुनाई गई । माननीय जोधपुर उच्च न्यायालय में सह आरोपियों की सजा पर स्थगन का आदेश पारित हो गया पर आशाराम बापूजी के केस में आशारामजी बापू की सजा स्थगित करने का कोई आदेश पारित नहीं हो पाया । यहाँ तक कि उनके अति निकटवर्ती परीजन के देहांत पर या उनकी धर्म पत्नी की गंभीर बिमारी के बावजूद भी उन्हें कुछ दिन के लिए अंतरिम जमानत/पेरोल भी नहीं मिली । इन परिस्थितियों में एक प्रश्न सहसा मन में उठता है कि यदि कानून की नजरों में सब समान है, यदि बापू आशारामजी जैसे संत की गिरफ्तारी के समय में एक सामान्य व्यक्ती और एक अंतराष्ट्रीय ख्याती प्राप्त संत के बीच में कोई भेदभाव नहीं रखा गया तो फिर जमानत देते समय, यहाँ तक कि सजा के बाद कानूनी रुप से एक गुनहगार कैदी को मिलनेवाले लाभों से भी उन्हें वंचित क्यों किया जा रहा है ।
 
ऐसे अनेक उदाहरण है कि चाहे कोई प्रसिद्ध फिल्म अभिनेतओं हो कोई राजनेता हो जिन्हें राष्ट्रीय हितों के विरुद्ध किये गये अपराधों में सजा सुनाई गई हो हजारो निर्दोष लोगों की हत्या में शामिल होने का जिनके ऊपर आरोप हो उन्हे भी एक सजायाफता कैदी के रुप में कानून में दिये गये लाभ या सुविधा उपलब्ध काराई गयी तो बापू आशारामजी जैसे संत जिन्होंने अपना पूरा जीवन भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म के उत्थान में न्योछावर कर दिया देश के हर वर्ग, धर्म, मत, पंथ, मजहब के करोडो लोग बिना किसी भेदभाव के उनके सत्संग-प्रवचनों और सेवाकार्यों से वर्षों तक लाभान्वित होते रहें तो उन्हें उन लाभों से वंचित क्यों किया जा रहा है ।
 
आतंकवादियों, भ्रष्टाचारीयों, हत्यारों और देशद्रोहीयों के मानवाधिकारों की चिंता करने वाले इस देश में ऐसे महान संत के मानवाधिकारों की रक्षा यदि समय रहते न्यायपालिका, शासन-प्रशासन और ये जागरुक समाज नहीं कर पाया तो आनेवाली पीढी हमें कभी माफ नहीं करेगी । आदरणीय श्री रंजन गोगोई की टीप्पणी को गंभीरता से लेते हुए अब समय है सत्तारुढ दलों एवं न्यायपालिका में बैठे सत्यप्रेमी न्यायाधीशों द्वारा आत्ममंथन करने का कि समानता के सिद्धांत का आदर्श बतानेवाली हमारी न्याय व्यवस्था में ऐसी असमानता क्यों दिखाई दे रही है ?
-विकास खेमका
 
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