दिसंबर 2012 में जब दिल्ली में ‘निर्भया बलात्कार कांड’ हुआ तब से ब्रिटेन, अमेरिका, फ्रांस यूरोप लगभग हर देश ‘भारत के हिंदू समाज’ को कोसने, धिक्कारने और उसे ‘बलात्कारियों का देश’ सिद्ध करने में लग गए है । जब भारत से कोई बलात्कार की घटना की खबर आती है तो पश्चिमी देश तरह-तरह की नसीहत भारत को देने लग जाते हैं जैसे की इस तरह की वीभत्स घटनाएं पश्चिमी देशों में होती ही न हो और न ही कभी हो सकती हैं!
कठुआ-उन्नाव और उनके बाद की घटनाओं पर प्रतिक्रिया देते हुए न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय, ब्राउन विश्वविद्यालय, हार्वर्ड, कोलंबिया विश्वविद्यालय और विभिन्न आईआईटी के 600 से अधिक शिक्षाविदों और विद्वानों ने हस्ताक्षर कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखा । इन देश के विद्वानों और शिक्षाविदों ने अपने देश की स्थिति का विश्लेषण किया होता तो इस तरह की सलाह नहीं देते । पाश्चात्य देशों के बलात्कार के आँकड़ों की तुलना में भारत जैसे आध्यात्मिक देश की स्थिति काफी बेहतर है।
*आइये उन देशों की स्थिति देखें।*
Strong Kanoon of Rape: It is not possible to get nectar results by poison seeds |
अमेरिका व्हाइट हाउस द्वारा 22 जनवरी 2014 को जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, वहाँ हर पाँचवी महिला अपने जीवनकाल में एक बार बलात्कार की शिकार होती है । आँकड़ों के अनुसार दो करोड़ बीस लाख अमेरिकी महिलाओं को और 16 लाख पुरुषों को अपनी जिंदगी में बलात्कार का शिकार होना पड़ा ।
ब्रिटेन में एक लाख जनसंख्या पर साल भर में औसतन 24 से अधिक बलात्कार होते हैं । यह अनुपात भारत की तुलना में कम से कम नौ गुणा अधिक है ! प्रति 10000 निवासियों पर प्रतिवर्ष 53.2 बलात्कारों के साथ स्वीडन पूरे यूरोप में पहले नंबर पर और विश्व में दूसरे नंबर पर है । भारत में यह अनुपात केवल 2.6 है तब भी उसे दुनिया के सबसे बलात्कारी देश के तौर पर बदनाम किया जा रहा है । पाँच करोड़ 30 लाख की जनसंख्या वाले दक्षिण अफ्रीका बलात्कार और यौन-हिंसा के मामले में संयुक्त राष्ट्र सूची में हर साल पहले नंबर पर मिलता है । वहां हर साल 64,000 से अधिक बलात्कार होते हैं । इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि भारत में विकसित देशों की अपेक्षा बलात्कार की घटनाएँ कम होती हैं ।
सऊदी अरब, चीन ऐसे कई अफ्रीकी देशों में बलात्कारी को अधिकतम मौत की सजा दी जाती है । अमेरिका में आजीवन कारावास दिया जाता है । इसके बावजूद भी इन देशों में बलात्कार की घटनाएँ बढ़ती ही जा रही है । सख्त कानून बलात्कार की घटना को पूर्ण रूप से नहीं रोक सकता है । बलात्कारियों के विरुद्ध जो कठोर कानून बनाने का काम भारत में हो रहा है, यह तो पत्तों को सींचने वाली बात है । सिनेमा, अश्लील साहित्य, समाचार पत्र-पत्रिकाओं, अश्लील वेबसाइटों एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया आदि के माध्यमों से अश्लीलता का प्रचार किया जा रहा है । इस कारण बलात्कार, हत्या जैसे दुष्कर्मों को भारत में बढ़ावा मिल रहा है । दुष्कर्म को बढ़ावा देनेवाले कारकों को रोकने की जरूरत सबसे पहले है । वास्तव में कठोर कानून तो इनके खिलाफ बनने चाहिए । उसके बाद ही इस प्रकार के अपराध करनेवाले व्यक्ति के विरुद्ध कानून बनाने चाहिए । अन्यथा ऐसा हो रहा है कि हम विष बीज बोकर अमृत फल पाने की उम्मीद में हैं । इससे परिणाम न तो पहले अच्छे हुए और न अब हो रहे हैं और ना ही आगे होनेवाले हैं ।
यदि सख्त कानून से बलात्कार की घटनाओं पर अंकुश सम्भव होता तो नये बलात्कार निरोधक कानून बनने के बाद बलात्कार की शिकायतों (कम्प्लेंट्स) में 35% की वृद्धि नहीं होती । इसके लिए संयम-शिक्षा तथा सच्चे सात्त्विक मूल्यों को पुनर्स्थापित करना होगा । यह कार्य निस्वार्थ रूप से समाज की भलाई में लगे हुए संत-महापुरुष ही कर सकते हैं । भारतीय संस्कृति के आधारभूत सिद्धांत को अपने जीवन में उतारनेवाले स्वामी रामतीर्थ, श्री रमण महर्षि, समर्थ रामदासजी, स्वामी विवेकानंद, साँईं लीलाशाहजी महाराज आदि महापुरुषों ने पूरी दुनियां में भारतीय अध्यात्म-ज्ञान का डंका बजाया । वर्तमान में संत आसारामजी बापू से मार्गदर्शन एवं प्रेरणा से देश-विदेश में करोड़ों साधक ब्रह्मचर्य का पालन करके जीवन धन्य बना रहे हैं । हजारों बाल-संस्कार केन्द्रों द्वारा देश-विदेश के बालक-बालिकाओं को सुसंस्कारित किया जा रहा है । करोड़ों युवाओं को संयमी और व्यशन मुक्त बनाया । महिलाओं के उत्थान के लिये अनेक कार्य किये और भी अनेक समाजसेवा के कार्य बापू आसारामजी की प्रेरणा से चल रहे हैं ।
केवल कानून और डंडे के जोर से सच्चा सुधार नहीं हो सकता । सच्चे और स्थायी सुधार के लिए बलात्कार जैसे नृशंस अपराधो को रोकने के लिए संयम-शिक्षा पर बल देने की आवश्यकता है । संत आसारामजी बापू द्वारा प्रेरित ‘युवाधन सुरक्षा अभियान’, ‘दिव्य प्रेरणा-प्रकाश ज्ञान प्रतियोगिता’, ‘योग व उच्च संस्कार शिक्षा’, ‘महिला जागृति’, ‘मातृ-पितृ पूजन दिवस’, ‘नशामुक्ति’ जैसे अभियानों को और अधिक व्यापक बनाने की आवश्यकता है । इनके माध्यम से हमारी युवा पीढ़ी को ब्रह्मचर्य, संयम-सदाचार की शिक्षा देकर उन्हें ईमानदार व सच्चा नागरिक बनाया जा रहा है । किंतु हमारे प्रेरणास्रोत, राष्ट— एवं संस्कृति के रक्षक संतों-महापुरुषों पर झूठे आरोप लगवाकर षड्यंत्रपूर्वक उन्हें जेल में बंद करवाना यह दर्शाता है कि कुछ स्वार्थी राष्ट विरोधी ताकतें कानून की आड़ लेकर भारतीय संस्कृति को नष्ट करने की बुरी मंशा रखती हैं । संत-महापुरुष ही समाज के प्रहरी हैं हमें उन पर हो रहे इस आघात को रोकना होगा ।
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