20 दिसंबर 2018
महिलाओं की सुरक्षा के लिए कानून जरूरी है परंतु आज साजिश या प्रतिशोध की भावना से निर्दोष लोगों को फँसाने के लिए बलात्कार के आरोप लगाकर कानून का भयंकर दुरुपयोग हो रहा है ।
न्यायालय भी ऐसा हो चुका है कि निर्दोषों को न्याय उनको मरणोपरांत मिल रहा है ये भी एक अन्याय ही है । अभी एक हाल में ऐसा ही मामला सामने आया है ।
10 years in rape case, 10 years after death |
बेटी ने बलात्कार का आरोप लगाया तो बाप को दस साल जेल की सजा काटनी पड़ी । सीने पर इस आरोप का बोझ ढोते-ढोते बाप की मौत हो गई, अब जाकर मौत के दस महीने बाद कोर्ट ने बाप को निर्दोष माना है । निचली अदालत के गलत फैसले के चलते निर्दोष पिता को दस साल तक जेल में रहना पड़ा । कोर्ट ने माना कि निचली अदालत के एक गलत दृष्टिकोण के कारण नाबालिग बेटी से कथित बलात्कार के मामले में व्यक्ति के साथ अन्याय हुआ, जबकि व्यक्ति अपने साथ अन्याय होने की बात शुरुआत से कह रहा था । दिल्ली उच्च न्यायालय ने आखिरकार बरी कर दिया, निचली अदालत द्वारा व्यक्ति को दोषी ठहराये जाने और 10 साल जेल की सजा सुनाये जाने के 17 साल बाद यह फैसला सामने आया है ।
उच्च न्यायालय ने इस बात का संज्ञान लिया कि इस मामले में ना तो जांच सही से हुई और ना ही सुनवाई । यह मामला व्यक्ति की बेटी की शिकायत पर दर्ज कराया गया था । न्यायमूर्ति आर.के. गाबा ने कहा कि व्यक्ति पहले दिन से ही मामले में अनुचित होने की बात कहता रहा और दावा करता रहा कि किसी लड़के ने उसकी बेटी को अगवा कर लिया और उसे बहकाया । जनवरी 1996 में जब बलात्कार की प्राथमिकी दर्ज की गई उस समय लड़की गर्भवती मिली थी । हालांकि जांच एजेंसी और निचली अदालत ने उसकी दलीलों पर कोई ध्यान नहीं दिया । उच्च न्यायालय ने कहा कि पिता ने उस लड़के के नमूने लेकर भ्रूण के डीएनए का मिलान करने को कहा था, लेकिन पुलिस ने कोई बात नहीं सुनी और निचली अदालत ने इस तरह की जांच का कोई आदेश नहीं दिया । अदालत ने कहा कि जांच स्पष्ट रूप से एकतरफा थी । इस समय यह अदालत केवल सभी संबंधित पक्षों की ओर से बरती गयी निष्क्रियता की निंदा कर सकती है ।
लड़की ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया था कि सेना की इंजीनियरिंग सेवा में इलेक्ट्रीशियन उसके पिता ने 1991 में उसके साथ पहली बार दुष्कर्म किया था जब वे जम्मू कश्मीर के उधमपुर में रहते थे । निचली अदालत में लड़की द्वारा रखे गये तथ्यों का जिक्र करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि लड़की पर मामले की जानकारी देने पर कोई रोक नहीं थी और जैसा कि उसने कहा कि 1991 में उसके साथ बलात्कार का सिलसिला शुरू हुआ तो उसे इस बारे में उसकी मां, भाई-बहनों या परिवार के अन्य किसी बुजुर्ग को बताने से किसी नहीं रोका था । उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि लड़के और लड़की के बीच शारीरिक संबंधों की संभावना की भी गहन जांच होनी चाहिए थी । दुर्भाग्य से नहीं हुई । उच्च न्यायालय ने 22 पन्नों के फैसले में कहा, ‘‘पिछले तथ्यों और परिस्थितियों के मद्देनजर यह अदालत निचली अदालत के इस निष्कर्ष से सहमत नहीं है ।” ( स्त्रोत : एन डी टीवी)
निर्दोष लोगों को फँसाने के लिए बलात्कार के नए कानूनों का व्यापक स्तर पर हो रहा इस्तेमाल आज समाज के लिए एक चिंतनीय विषय बन गया है । राष्ट्रहित में क्रांतिकारी पहल करने वाली सुप्रतिष्ठित हस्तियों, संतों-महापुरुषों एवं समाज के आगेवानों के खिलाफ इन कानूनों का राष्ट्र एवं संस्कृति विरोधी ताकतों द्वारा कूटनीतिपूर्वक अंधाधुंध इस्तेमाल हो रहा है ।
न्यायाधीश राजेन्द्र सिंह ने बताया कि रेप के केस 90% झूठे पाए जाते हैं ।
न्यायालय भी ऐसा बन चुका है कि समझ से परे है, एक न्यायालय सजा देता है और दूसरा न्यायालय निर्दोष बरी कर देता है ।
जनता न्यायालयों को न्याय का मंदिर तथा न्यायधीशों को न्याय का देवता मानती थी और उन्हें सर्वाधिक आदर भी देती थी लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया लोगों के हृदय में न्यायालयों की छवि धूमिल होती गयी और इस छवि के धूमिल होने के पीछे का सबसे बड़ा कारण जो था, वो था न्यायालयों के द्वारा दिए गए फैसले ।
आजकल न्यायालयों द्वारा फैसले दिए नहीं बल्कि बेचे जाने लगे हैं और अगर आप पिछले कुछ वर्षों पर गौर करेंगे तो आपको देखने को मिलेगा कि न्यायालय द्वारा एक-एक करके सिर्फ हिन्दू संस्कृति, हिन्दू साधु-संतों तथा हिन्दू त्यौहारों पर कुठाराघात किया जा रहा है, सबरीमाला मंदिर और राम मंदिर का ज्वलंत उदाहरण आप सबके सामने है ।
ये वही देश है जहां जब कसाब जैसे आतंकियों को फैसला सुनाना होता है तब तो कोर्ट रात को 2:30 बजे भी खुलते हैं, लेकिन वहीं दूसरी ओर बड़े दुःख के साथ ये कहना पड़ रहा है कि इसी देश में वर्षों तक निर्दोष संतों, निर्दोष व्यक्तियों, निर्दोष हिंदुत्वादी कार्यकर्ताओं को सालों बीत जाते हैं जेल में सिर्फ न्याय की आस में ।
अभी हाल ही में पादरी फ्रैंको मुल्लकल जैसे आरोपी, जिस पर अत्यंत संगीन आरोप लगे फिर भी उसे 21 दिनों में ही बेल मिल गई जबकि दूसरी ओर बापू आसारामजी जिन्हें एक झूठे आरोप में 5 वर्षों से भी अधिक समय तक जेल में रखा फिर आजीवन कारावास की सज़ा सुना दी गई ।
न्यायव्यवस्था के दोगलेपन पर जनता आक्रोश में है साफ-सुथरी न्यायप्रणाली की मांग कर रही है ।
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Misuse of Rape Laws