01 मार्च 2019
देश के जांबाज वीर बहादुर विंग कमांडर अभिनंदन दुश्मन देश में भी चट्टान की नाई अडिग रहे और आज स्वदेश लौट आये, उनके लिए पूरे देशभर में खुशी की लहर है और हो भी क्यों न ? हमारे पुराने मिग 21 से नए F16 को गिराकर जीत हासिल की है । जब उनको बंदी बनाया गया तो देशवासी लगातार प्रार्थना कर रहे थे और आज उनकी प्रार्थना सफल भी हुई ।
आज हमारे देश में खुशी का महौल है पर एक दुःखद बात ये है कि 1965 और 1971 में हुए युद्ध के दौरान हमारे 54 सैनिकों को पाकिस्तान ने बंदी बना लिया था जो आजतक हमें मिल नहीं पाये ।
1965 में 6 और 1971 में 48 युद्धबंदी तत्कालीन सरकार की घातक, शर्मनाक अनदेखी और आपराधिक लापरवाही के कारण आजतक लौटकर अपने घर वापस नहीं। उनमें भी एक विंग कमांडर हरसरन सिंह गिल थे, 4 स्क्वाड्रन लीडर समेत वायुसेना के 25 पायलट शामिल थे ।
उनके परिजन आज 48 साल बाद भी तत्तकालीन सरकार की प्राणघातक करतूत के कारण शोक की अग्नि में जल रहे हैं ।
उल्लेखनीय है कि 1971 के भारत पाक युद्ध में बंदी बनाए गए 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों तथा 3800 भारतीय सैनिकों के प्राणों की कीमत चुका कर भारतीय सेना द्वारा कब्ज़ायी गई पाकिस्तानी भूमि को 1972 में बिना शर्त वापस कर दी ।
परंतु भारतीय वायुसेना के विंग कमांडर हरसरन सिंह गिल, फ्लाइट लेफ्टिनेंट वी वी तांबे और फ्लाइंग ऑफिसर सुधीर त्यागी तथा भारतीय सेना के कैप्टन गिरिराज सिंह, कैप्टन कमल बख्शी समेत उन 54 भारतीय युद्धबंदियों की रिहाई की याद तक नहीं आयी जो पाकिस्तानी जेलों में बंद थे और जिनके बंद होने के पुख्ता प्रमाण सार्वजनिक रूप से आए दिन उपलब्ध हो रहे थे ।
उल्लेखनीय है कि फ्लाइट लेफ्टिनेंट वी. वी. तांबे का नाम 5 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान के ऑब्जर्वर अखबार में फ्लाइट लेफ्टिनेंट तांबे के नाम से प्रकाशित हुआ था। अखबार रिपोर्ट में कहा गया था कि 5 भारतीय पायलट पाकिस्तान के कब्जे में हैं…. पर पाकिस्तान ने युद्ध बंदियों की सूची में इनको नहीं दिखाया और तत्कालीन सरकार भी उन भारतीय सैनिकों को मुक्त करवाने में नीरस थी । उल्लेखनीय है कि फ्लाइट लेफ्टिनेंट वीवी तांबे की पत्नी साधारण महिला नहीं थी । 1971 में वो अंतरराष्ट्रीय ख्याति की बैडमिंटन खिलाड़ी थीं तथा बैडमिंटन की राष्ट्रीय महिला चैम्पियन थीं । अतः उन्होंने हर उच्च स्तर तक गुहार लगाई थी लेकिन परिणाम शून्य ही रहा ।
युद्ध की समाप्ति के 11 दिन पश्चात 27 दिसम्बर 1971 को भारतीय सेना के मेजर ऐ के घोष का पाकिस्तान की जेल में बंदी अवस्था का चित्र विश्वविख्यात अमेरिकी पत्रिका TIMES ने प्रकाशित भी किया था । पर 93000 पाकिस्तानियों को रिहा करने का समझौता करते हुए तत्कालीन सरकार को मेजर घोष याद नहीं आये ।
आपको बात दें कि 4 मार्च 1988 को पाकिस्तान की जेल से रिहा होकर भारत आये दलजीत सिंह ने बताया था कि उसने फ्लाइट लेफ्टिनेंट वीवी तांबे को लाहौर के पूछताछ केंद्र में फरवरी 1978 में देखा था । 5 जुलाई 1988 को पाकिस्तानी कैद से रिहा होकर भारत वापस लौटे मुख्तार सिंह ने बताया था कि कैप्टन गिरिराज सिंह कोट लखपत जेल में बंद हैं । मुख्तार ने 1983 में मुल्तान जेल में कैप्टन कमल बख्शी को भी देखा था । उस समय उनके मुताबिक बख्शी मुल्तान या बहावलपुर जेल में हो सकते हैं। इसी तरह के कई और चश्मदीद लोगों की रिपोर्ट भी अलग अलग समय पर उन 54 भारतीय युद्धबंदियों के परिजनों के पास लगातार आती रही है ।
फ्लाइंग ऑफिसर सुधीर त्यागी का विमान भी 4 दिसंबर 1971 को पेशावर में फायरिंग से गिरा दिया गया था और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था । अगले दिन पाकिस्तान रेडियो ने इस बारे में घोषणा की थी तथा पाकिस्तानी अखबारों ने भी इस खबर को छापा था । इसके बावजूद पाकिस्तान लगातार यही कहता रहा कि ये 54 लोग उसकी जेलों में बंद नहीं हैं, जबकि उनके परिजनों का मानना था कि ये लोग पाकिस्तान की जेलों में कैद हैं ।
अतः आज पूरा देश तत्कालीन सरकार से यह जानना चाहता है कि 1972 में पाकिस्तान से समझौता करने की जल्दबाजी में इतनी अंधी बहरी क्यों हो गयी थी .?
वर्तमान सरकार को इसपर ध्यान देना चाहिए और जैसे अभिनंदन को स्वदेश वापिस लाने में सफलता मिली वैसे ही उन 54 वीर बहादुर जवानों को वापिस लाने का प्रयास करना चाहिए ।
देश में चैन की नींद आज हम उन जवानों के कारण ही ले रहे हैं इसलिए सरकार को पूर्ण प्रयास करना चाहिए कि उन 54 जवानों को शीघ्र वापिस भारत देश में लेकर आएं ।
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