15 मार्च 2022
90 के दशक में जम्मू और कश्मीर में हिंदू-सिखों के सामूहिक नरसंहार पर शायद ही कभी पब्लिक के बीच इस तरह चर्चा दिखी हो जैसा कि ‘द कश्मीर फाइल्स’ की रिलीज के बाद नजर आ रहा है! सोशल मीडिया पर हर कोई फिल्म के पक्ष में तर्क देता नजर आ रहा है। कई लोग निशाने पर हैं, जिसमें वामपंथी अकादमिक, कुछ समीक्षक, सिनेमा एग्जिबिटर और कथित रूप से बॉलीवुड का लेफ्ट लिबरल गैंग भी। सबसे ज्यादा निशाने पर नजर आ रहे हैं कपिल शर्मा। ट्विटर पर तो बाकायदे कपिल शर्मा की खिलाफत करने वाले हैशटैग पिछले कुछ दिनों से नजर आ रहे हैं।
आज भी तमाम हैश टैग के साथ #BoycottKapilSharma टॉप ट्रेंड में दिखा।
दरअसल, जब से ‘द कश्मीर फाइल्स’ के निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ने ट्विटर पर आरोप लगाया कि कपिल ने शो में उनकी फिल्म प्रमोट करने से मना कर दिया तभी से कपिल के खिलाफ लोगों का गुस्सा नजर आ रहा है। हालांकि कपिल ने ट्वीट कर सफाई दी और आरोपों को एकतरफा कहानी करार दिया।
इस बीच विवेक अग्निहोत्री, पल्लवी जोशी और ‘द कश्मीर फाइल्स’ की टीम ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाक़ात की, तस्वीरें भी सामने आई हैं। कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री ने पूरी टीम को शुभकामनाएं दी हैं। एक दिन पहले आई तस्वीरों और मात्र 20 करोड़ से कम बजट में बनी फिल्म के जबरदस्त कारोबारी आंकड़ों ने सोशल मीडिया पर लोगों को आक्रामक बना दिया है। कई तो सोनी के ऐप डिलीट करने की मुहिम भी चलाते दिख रहे हैं।
अब तो लोग कहते नजर आ रहे हैं कि जिसका प्रमोशन प्रधानमंत्री मोदी ने कर दिया उसे किसी ऐरे गैर कपिल शर्मा की जरूरत नहीं है। एक यूजर ने लिखा- कपिल शर्मा हमें आपसे यह उम्मीद नहीं थी। आपने बहुत मेहनत और संघर्ष से लोगों का आदर और सम्मान हासिल किया था, ‘द कश्मीर फाइल्स’ पर आप चीजों को समझने में चूक गए। फिल्म को आपके समर्थन की जरूरत नहीं है, उसे खुद मोदीजी ने प्रमोट कर दिया। अब आपके शो को बाय कहने का वक्त आ गया है।
कुछ ने तो यहां तक लिखा कि ‘द कश्मीर फाइल्स’ को कपिल के शो पर प्रमोशन की दरकार ही नहीं है, उसे तो देश का हर सनातनी पहले से ही प्रमोट कर रहा है। कपिल के खिलाफ हजारों की संख्या में ट्वीट देखे जा सकते हैं।
मीडिया और कुछ समीक्षकों पर भी गुस्सा ट्विटर और दूसरे सोशल प्लेटफॉर्म पर जमकर फूट रहा है; दर्जनों ट्रेंड देखे जा सकते हैं जिसमें मीडिया और फिल्म की निगेटिव समीक्षा करने वालों पर भी प्रहार किया गया है, ख़ासकर लोगों का गुस्सा डिजिटल प्लेटफार्म Film Companion की फाउंडर एडिटर और निर्माता-निर्देशक विधु विनोद चोपड़ा की पत्नी अनुपमा चोपड़ा पर निकल रहा है। अनुपमा फिल्मों की समीक्षाएं करती हैं।
‘द कश्मीर फाइल्स’ पर प्रोपगेंडा होने का उनका आंकलन लोगों को पसंद नहीं आ रहा।
लोग आरोप लगा रहे हैं कि अनुभव सिन्हा की ‘मुल्क’ जिसमें एक काल्पनिक कहानी है उसे अनुपमा के प्लेटफॉर्म पर मास्टरपीस बताया जाता है लेकिन दूसरी फिल्म जो ऐतिहासिक तथ्यों पर है और कुछ साल पहले की ही घटना पर आधारित है- उसे प्रोपगेंडा बताया जा रहा है। यह बॉलीवुड की सोच को दर्शाता है। इसी सोच की वजह से ‘द कश्मीर फाइल्स’ को आने में 32 साल लग गए। कितनी शर्मनाक बात है कि कश्मीर के सच को स्वीकार करने में लोगों को परेशानी होती है। लोगों ने IMDb, बुक माई शो और दूसरे इंटरनेट प्लेटफॉर्म पर फिल्म को मिल रही लाइक्स के डेटा साझा करते बताया कि लोग अनुपमा जैसों की राय से चीजें तय नहीं होती। इंटरनेट प्लेटफॉर्म्स पर फिल्म को जबरदस्त लाइक्स मिलते देखा जा सकता है।
अब तक शिवराज सिंह चौहान से लेकर कई राजनीतिक हस्तियों ने द कश्मीर फाइल्स की जमकर तारीफ़ की है.
यासीन मलिक की वजह से मनमोहन सिंह और अरुंधती राय भी निशाने पर
कश्मीर में आतंकी गतिविधियों में शामिल रहे यासीन मलिक की वजह से मनमोहन सिंह और अरुंधती राय पर निशाना साधा जा रहा है। यासीन मलिक पर आरोप है कि उसने दर्जनों हत्याएं की, बावजूद इसके कश्मीर की सच्चाई को बाहर नहीं आने दिया गया। यासीन मलिक नाम के आतंकी को गांधीवादी के रूप में स्थापित करने की कोशिशें हुईं। मनमोहन उसके साथ बैठते थे, हाथ मिलाते थे, उसे गेस्ट बनाकर बुलाया जाता था। एक आतंकी में सबको शांतिदूत नजर आता था। अरुंधती राय वामपंथी जमात का नेतृत्व करती हैं जो कश्मीर में आतंक को जायज ठहराने का कोई मौका गंवाना नहीं चाहती। इन लोगों की नजर में ‘द कश्मीर फाइल्स’ प्रोपगेंडा है और यासीन मलिक समेत तमाम आतंकी गांधीवादी।
क्या है फिल्म की कहानी?
विवेक अग्निहोत्री के निर्देशन में अनुपम खेर, मिथुन चक्रवर्ती, पल्लवी जोशी और दर्शन कुमार ने जबरदस्त अभिनय किया है। फिल्म की कहानी एक कश्मीरी बुजुर्ग की है जो आतंकी नरसंहार में सिर्फ अपने पोते को बचा पाया। घाटी में खुशहाल जिंदगी जी रहा बुजुर्ग दिल्ली में शरणार्थी बन जाता है। हालांकि वह एक दिन घाटी लौटने का सपना देखता है जो अधूरा ही रह जाता है। उसका पोता उसकी अस्थियों को लेकर घाटी जाता है, कश्मीर को लेकर जिसकी राय अपने दादा से बिल्कुल उलट है। घाटी पहुंचने पर वह जो कुछ देखता सुनता है- आतंकवाद, नरसंहार, राजनीतिक मनोदशा, तुष्टिकरण, वामचिंतकों की धारणाओं को लेकर उसका नजरिया बदल जाता है।
दावा किया जा रहा है कि फिल्म में उन सच्चाइयों को पहली बार दिखाया गया है जिन्हें कभी भी दिखाने या बताने में संकोच किया जाता था। दर्शक फिल्म को पसंद कर रहे हैं। पहले दो दिन में ही द कश्मीर फाइल्स ने 12 करोड़ से ज्यादा की कमाई कर ली। रविवार को फिल्म 2000 से ज्यादा स्क्रीन्स पर थी। अनुमान है कि अबतक फिल्म की कमाई 42 करोड़ पार कर चुकी है और यह सफलता के रिकॉर्ड बना रही है।
90 के दशक में कश्मीर में हुए नरसंहार और कश्मीरी पंडितों के पलायन पर आधारित फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ की चर्चा हर तरफ हो रही है। नेशनल अवॉर्ड विनर डायरेक्टर विवेक अग्निहोत्री के निर्देशन में बनी इस फिल्म में अनुपम खेर, मिथुन चक्रवर्ती, दर्शन कुमार, पल्लवी जोशी और अतुल श्रीवास्तव जैसे कलाकार अहम किरदारों में हैं। कश्मीर में धारा 370 के खत्म होने के बाद पहली बार घाटी के बारे में पूरे देश में लोग बात कर रहे हैं। फिल्म में कश्मीरी पंडितों के उस दर्द को दिखाने का दावा किया जा रहा है, जो पिछले तीन दशक से कश्मीर घाटी में दफन था। उस नरसंहार की चर्चा कोई नहीं करता था। उसमें पलायन हुए पंडितों के दर्द को कोई महसूस नहीं करता था, लेकिन सिनेमा के जरिए एक बार फिर इसे रूपहले पर्दे पर जीवंत कर दिया गया है। इसलिए राष्ट्रवादी विचारधारा को मानने वाले लोग इस फिल्म का समर्थन कर रहे हैं, लेकिन वहीं कुछ लोग ये भी कह रहे हैं कि ‘द कश्मीर फाइल्स’ की तरह ‘गुजरात फाइल्स’ फिल्म भी बनाई जानी चाहिए।
अनुपम खेर और मिथुन चक्रवर्ती की फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ बॉक्स ऑफिस पर शानदार प्रदर्शन कर रही है।
यहां सवाल उठता है कि आखिर वो लोग कौन हैं, जो फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ की चर्चा के बीच ‘गुजरात फाइल्स’ का राग अलाप रहे हैं। यदि सोशल मीडिया पर लिखे जा रहे पोस्ट पर गौर करें, तो समझ में आ जाएगा कि इस तरह की बात करने वाले आखिर कौन लोग हैं? दरअसल, मोदी युग में हिंदुस्तान दो वैचारिक हिस्सों में बंट चुका है- एक तरफ राष्ट्रवाद के समर्थक हैं, जो मोदी को पसंद करते हैं, वहीं दूसरी तरफ वो लोग हैं जो मोदी को नापसंद करते हैं और खुद को तथाकथित सेकुलर कहते हैं; उनका मानना है कि इस फिल्म के जरिए कश्मीरी पंडितों के दर्द को बयां करना तो ठीक है, लेकिन साल 2002 में गुजरात में हुए दंगों के दौरान प्रभावित हुए लोगों का दर्द कौन दिखाएगा? ऐसे लोग चाहते हैं कि कश्मीरी पंडितों की तरह गुजरात दंगा पीड़ितों के बारे में भी बात की जाए। सीधे तौर पर ऐसे लोगों के निशाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह हैं, जिनका नाम इस प्रकरण में बार-बार आया है, लेकिन कोर्ट में उनपर दोष साबित नहीं हो सका है।