21 अगस्त 2020
जिस प्रकार अधिकांश वैदिक मंत्रों के आरम्भ में ‘ॐ’ लगाना आवश्यक माना गया है, वेदपाठ के आरम्भ में ‘हरि ॐ’ का उच्चारण अनिवार्य माना जाता है, उसी प्रकार प्रत्येक शुभ अवसर पर सर्वप्रथम श्री गणपति जी का पूजन अनिवार्य है ।
उपनयन, विवाह आदि सम्पूर्ण मांगलिक कार्यों के आरम्भ में जो श्री गणपतिजी का पूजन करता है, उसे अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है ।
जिस दिन गणेश तरंगें प्रथम पृथ्वी पर आयी अर्थात जिस दिन गणेश जी अवतरित हुए, वह भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी का दिन था । उसी दिन से गणपति का चतुर्थी से संबंध स्थापित हुआ ।
शिवपुराण के अन्तर्गत रुद्रसंहिता के चतुर्थ (कुमार) खण्ड में यह वर्णन आता है कि माता पार्वती ने स्नान करने से पहले अपनी शक्ति से एक पुतला बनाकर उसमें प्राण भर दिए और उसका नाम ‘गणेश’ रखा।
पार्वती जी ने उससे कहा- हे पुत्र! तुम एक मुगदल लेकर द्वार पर बैठ जाओ। मैं भीतर जाकर स्नान कर रही हूँ। जब तक मैं स्नान न कर लूँ, तब तक तुम किसी भी पुरुष को भीतर मत आने देना।
भगवान शिवजी ने जब प्रवेश करना चाहा तब बालक ने उन्हें रोक दिया। इस पर शिवगणों ने बालक से भयंकर युद्ध किया परंतु संग्राम में उसे कोई पराजित नहीं कर सका।
अन्ततोगत्वा भगवान शंकर ने क्रोधित होकर अपने त्रिशूल से उस बालक का सिर काट दिया। इससे माँ भगवती क्रुद्ध हो उठी और उन्होंने प्रलय करने की ठान ली। भयभीत देवताओं ने देवर्षि नारद की सलाह पर जगदम्बा की स्तुति करके उन्हें शांत किया।
शिवजी के निर्देश पर उत्तर दिशा में सबसे पहले मिले जीव (हाथी) का सिर काटकर ले आए। मृत्युंजय रुद्र ने गज के उस मस्तक को बालक के धड़ पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर दिया।
माता पार्वती ने हर्षातिरेक से उस गजमुख बालक को अपने हृदय से लगा लिया और देवताओं में अग्रणी होने का आशीर्वाद दिया तथा ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने उस बालक को सर्वाध्यक्ष घोषित करके अग्रपूज्य होने का वरदान दिया।
भगवान शंकर ने बालक से कहा-गिरिजानन्दन! विघ्न नाश करने में तुम्हरा नाम सर्वोपरि होगा। तुम सबके पूज्य बनकर मेरे समस्त गणों की अध्यक्षता करोगे ।
गणेश्वर! आप भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी को चंद्रमा के उदित होने पर उत्पन्न हुये हैं । इस तिथि में व्रत करने वाले के सभी विघ्नों का नाश हो जाएगा और उसे सब सिद्धियां प्राप्त होंगी।
चंद्र दर्शन से कलंक
गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणपति का पूजन तो विशेष फलदायी है, किंतु उस दिन चंद्र दर्शन कलंक लगाने वाला होता है ।
इस संदर्भ में पुराणों में एक कथा आती है कि – एक बार गणपति जी कहीं जा रहे थे तो उनके लम्बोदर को देखकर चंद्रमा के अधिष्ठाता चंद्रदेव हँस पड़े । उन्हें हँसते देखकर गणेशजी ने शाप दे दिया कि ‘दिखते तो सुंदर हो, किंतु मुझ पर कलंक लगाते हो ।
अतः आज के दिन जो तुम्हारा दर्शन करेगा उसे कलंक लग जायेगा ।’
यह बात आज भी प्रत्यक्ष दिखती है । विश्वास न हो तो गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा के दर्शन करके देख लेना। भगवान श्रीकृष्ण को गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा दर्शन करने पर स्यमंतक मणि की चोरी का कलंक सहना पड़ा था । बलरामजी को भी श्रीकृष्ण पर संदेह हो गया था ।
सर्वेश्वर, लोकेश्वर श्रीकृष्ण पर भी जब चौथ के चंद्रमा दर्शन करने पर कलंक लग सकता है तो साधारण मानव की तो बात ही क्या ?
किंतु यदि भूल से भी चतुर्थी का चंद्रमा दिख जाय तो ‘श्रीमद् भागवत’ के 10वें स्कंध के 56-57वें अध्याय में दी गयी ‘स्यमंतक मणि की चोरी’ की कथा का आदरपूर्वक पठन-श्रवण करना चाहिए ।
भाद्रपद शुक्ल तृतीया या पंचमी के चन्द्रमा का दर्शन करना चाहिए, इससे चौथ को दर्शन हो गया हो तो उसका ज्यादा दुष्प्रभाव नहीं होगा ।
निम्न मंत्र का 21, 54 या 108 बार जप करके पवित्र किया हुआ जल पीने से कलंक का प्रभाव कम होता है ।
मंत्र इस प्रकार है :
सिंहः प्रसेनमवधीत् सिंहो जाम्बवता हतः । सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्यमन्तकः ।।
‘सुंदर, सलोने कुमार ! इस मणि के लिए सिंह ने प्रसेन को मारा है और जाम्बवान ने उस सिंह का संहार किया है, अतः तुम रोओ मत । अब इस स्यमंतक मणि पर तुम्हारा ही अधिकार है।
जहाँ तक हो सके भाद्रपद के शुक्लपक्ष की चतुर्थी का चंद्रमा न दिखे, इसकी सावधानी रखें ।
(ब्रह्मवैवर्त पुराण, अध्याय : 78), (ऋषि प्रसाद : अगस्त 2014)
लक्ष्मी पूजन के साथ गणेश पूजन का विधान इसी कारण रखा गया कि धन जीवन में अहंकार, व्यसन जैसी बुराइयां लेकर न आये अर्थात गलत तरीकों से धन न कमाएं । ईमानदारी से कमाया गया धन ही हमारे लिए सुखकारी होगा, अन्यथा धन पाकर भी कितने लोग हैं जो सुखी नहीं रह पाते हैं।
गणेश चतुर्थी के दिन गणेश उपासना का विशेष महत्त्व है । इस दिन गणेशजी की प्रसन्नता के लिए इस ‘गणेश गायत्री’ मंत्र का जप करना चाहिए :
महाकर्णाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दन्तिः प्रचोदयात् ।
श्रीगणेशजी का अन्य मंत्र, जो समस्त कामनापूर्ति करनेवाला एवं सर्व सिद्धिप्रद है : ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं गणेश्वराय ब्रह्मस्वरूपाय चारवे । सर्वसिद्धिप्रदेशाय विघ्नेशाय नमो नमः ।।
(ब्रह्मवैवर्त पुराण, गणपति खंड : 13.34)
गणेशजी बुद्धि के देवता हैं । विद्यार्थियों को प्रतिदिन अपना अध्ययन-कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व भगवान गणपति, माँ सरस्वती एवं सद्गुरुदेव का स्मरण करना चाहिए । इससे बुद्धि शुद्ध और निर्मल होती है ।
विघ्न निवारण हेतु…
गणेश चतुर्थी के दिन ‘ॐ गं गणपतये नमः ’ का जप करने और गुड़मिश्रित जल से गणेशजी को स्नान कराने एवं दूर्वा व सिंदूर की आहुति देने से विघ्नों का निवारण होता है तथा मेधाशक्ति बढ़ती है ।
गणेशाेत्सव की शुरुआत
गणेशाेत्सव को लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने देश की स्वाधीनता आंदोलन का एक महत्वपूर्ण साधन बना दिया । उन्होंने लोक जागरण व जन-मन में देशभक्ति जगाने के लिए गणेशोत्सवों की शुरुआत करायी । इसलिए यह जरूरी है कि देश भर में आज भी उल्लास के साथ मनाया जाने वाला गणेशोत्सव केवल तड़क-भड़क और गीत-संगीत के खर्चीले आयोजनों के बीच मनुष्यता व सामाजिक दायित्व जगाने की अपनी मूल प्रेरणा को ना खोये।
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