02 जून 2020
भारत का नाम सुनते ही देशवासियों के अंदर राष्ट्रभक्ति की उमंग जगने लगती है और इंडिया नाम से न राष्ट्रभक्ति जगती है और न ही अंदर कोई उमंग जगती है।
आपको बता दें कि भारत ही एक ऐसा देश है कि उसको दो नामों से पुकारा जाता है जबकि जापान को जापान, अमेरिका को अमेरिका, नेपाल को नेपाल, भूटान को भूटान कहते हैं लेकिन भारत को इंडिया के नाम से बुलाते हैं जो अंग्रेजों की गुलामी का प्रतीक है।
मंगलवार को ट्वीटर पर हैशटैग #ByeByeIndiaOnlyBharat दिनभर टॉप ट्रेंड में रहा उसमें करीब लाखों ट्वीट हुई। जानकारी के मुताबिक हिंदू संत श्री आशाराम बापू के समर्थकों ने सुबह 08 के बाद ट्रेंड शुरू किया था फिर तो जनता जुड़ गई और दिनभर टॉप ट्रेंड बना रहा, इसमें जनता की एक ही मांग थी कि देश को आज़ाद हुए 72 साल हुए फिर भी काफी जगह इंडिया नाम उपयोग किया जा रहा है जबकि भारत नाम बोला जाना चाहिए था।
नामकरण बौद्धिक-सांस्कृतिक प्रभुत्व के प्रतीक और उपकरण होते हैं। पिछले आठ सौ वर्षों से भारत में विदेशी आक्रांताओं ने हमारे सांस्कृतिक, धार्मिक और शैक्षिक केंद्रों को नष्ट कर उसे नया रूप और नाम देने का अनवरत प्रयास किया। अंग्रेज शासकों ने भी यहाँ अपने शासकों, जनरलों के नाम पर असंख्य स्थानों के नाम रखें। शिक्षा में वही काम लॉर्ड मैकॉले ने खुली घोषणा करके किया, कि वे भारतवासियों की मानसिकता ही बदल कर उन्हें स्वैच्छिक ब्रिटिश नौकर बनाना चाहते हैं, जो केवल शरीर से भारतीय रहेंगे।
नाम और शब्द कोई निर्जीव उपकरण नहीं होते। वह किसी भाषा व संस्कृति की धरोहर होते हैं। जैसा निर्मल वर्मा ने लिखा है, “कई शब्द अपने आप में संग्रहालय होते हैं जिन में किसी समाज की सहस्त्रों वर्ष पुरानी पंरपरा, स्मृति, रीति और ज्ञान संघनित रहता है।”
सन् 1947 में हमसे जो सबसे बड़ी भूलें हुईं उन में से एक यह भी थी कि स्वतंत्र होने के बाद भी देश का नाम ‘इंडिया’ रहने दिया। टाइम्स ऑफ इंडिया के लब्ध-प्रतिष्ठित विद्वान संपादक गिरिलाल जैन ने लिखा था कि स्वतंत्र भारत में इंडिया नामक इस “एक शब्द ने भारी तबाही की”। यह बात उन्होंने इस्लामी समस्या के संदर्भ में लिखी थी। यदि देश का नाम भारत होता, तो भारतीयता से जुड़ने के लिए यहाँ किसी से अनुरोध नहीं करना पड़ता! गिरिलाल जी के अनुसार, इंडिया ने पहले इंडियन और हिन्दू को अलग कर दिया। उससे भी बुरा यह कि उसने ‘इंडियन’ को हिन्दू से बड़ा बना दिया। यदि यह न हुआ होता तो आज सेक्यूलरिज्म, डाइवर्सिटी, और मल्टी-कल्टी का शब्द-जाल व फंदा रचने वालों का काम इतना सरल न रहा होता।
यदि देश का नाम भारत रहता तो इस देश के मुसलमान स्वयं को भारतीय मुसलमान कहते। इन्हें अरब में अभी भी ‘हिन्दवी’ मुसलमान’ ही कहा जाता है। सदियों से विदेशी लोग भारतवासियों को ‘हिन्दू’ ही कहते रहे और आज भी कहते हैं। यह पूरी दुनिया में हमारी पहचान है, जिस से मुसलमान भी जुड़े थे। क्योंकि वे सब हिन्दुओं से धर्मांतरित हुए लोग ही हैं (यह महात्मा गाँधी ही नहीं, फारुख अब्दुल्ला भी कहते हैं)।
विदेशियों द्वारा दिए गए नामों को त्यागना आवश्यक है। इस में अपनी पहचान के महत्व और गौरव की भावना है। ‘इंडिया’ को बदलकर भारत करने में किसी भाषा, क्षेत्र, जाति या संप्रदाय को आपत्ति नहीं हो सकती। इंडिया शब्द भारत पर ब्रिटिश शासन का सीधा ध्यान दिलाता है। आधिकारिक नाम में ‘इंडिया’ का पहला प्रयोग ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ में किया गया था जिसने हमें गुलाम बना कर दुर्गति की। जब वह व्यापार करने इस देश में आई थी तो यह देश स्वयं को भारतवर्ष या हिन्दुस्तान कहता था।
पूर्व में गोवा के कांग्रेस सांसद श्री शांताराम नाईक ने इस विषय में संविधान संशोधन हेतु राज्य सभा में एक निजी विधेयक प्रस्तुत किया भी था। इस में उन्होंने कहा कि संविधान की प्रस्तावना तथा अनुच्छेद एक में इंडिया शब्द को हटाकर भारत कर लिया जाए। क्योंकि भारत अधिक व्यापक और अर्थवान शब्द है, जबकि इंडिया मात्र एक भौगोलिक उक्ति। श्री नाईक को हार्दिक धन्यवाद कि वह एक बहुत बड़े दोष को पहचानकर उसे दूर करने के लिए आगे बढ़े।
भारत मे अंग्रेज देश को लूटने के लिए आये थे और हमारी सम्पत्ति लूटने के लिए उन्होंने अनेक षडयंत्र किये। हमारी संस्कृति को तोड़ने के लिए भरपूर प्रयास किया फिर देशवासियों को गुलाम बनाकर रखे थे, भारत की संपत्ति को लूटकर अपने देश में ले गये, 200 साल तक भारत को लूटा और आखिर में भारत का बंटवारा भी करवा दिया। आज भी उनके द्वारा चलाई हुई परंपरा चल रही है और उनके दिए हुए नाम भी चल रहे हैं जो गुलामी का प्रतीक हैं इसलिए सरकार और न्यायलय से प्रार्थना है कि गुलामी का प्रतीक इंडिया नाम हटाकर भारत किया जाए ऐसी जनता की मांग हैं।
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