24 जून 2020
चीन हमेशा भारत पर धोखे से वार करता आया है और गीदड़ धमकी देता रहता है जबकि अंदर से तो वो भी जानता है कि भारतीय सैनिकों के पराक्रम के आगे चीनी सैनिक टिक नही सकते इसलिए वे हमेशा पीठ पीछे वार करते हैं फिर भी हमारे सैनिकों ने ऐसा करारा जवाब दिया है कि सालों तक मुड़कर नही देखते हैं।
भारत से इतिहास के पन्ने पलटने की वकालत करने वाला चीन जब इन्हीं पन्नों में खुद को देखता है तो उसको घिन आने लगती है। साल 1962 नवंबर महीने का 18वां दिन, देश में दिवाली की धूम थी वहीं लद्दाख की बर्फ से ढकी चुशुल घाटी एक इतिहास रचने जा रही थी और इस बात की भनक किसी को लगी नहीं थी। तड़के साढ़े तीन बजे शांत घाटी में गोलियों की गंध घुलनी शुरू हो गई थी।
पांच से छह हजार की संख्या में चीनी जवानों ने लद्दाख पर हमला कर दिया था। इस दौरान सीमा पर मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व वाली टुकड़ी देश की सीमा की सुरक्षा कर रही थी। इस टुकड़ी में केवल 120 जवान थे। लेकिन मुट्ठीभर जवान चीन को ऐसा सबक सिखाएंगे इस बात की कल्पना तो दुनिया ने नहीं की थी।
अचानक हुए इस हमले में देखते ही देखते भारत माता के वीर सपूत चीनियों के लिए काल बन गए थे। भारतीय सेना के जवानों ने किस अंदाज में यह जंग लड़ी थी उसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि 120 सैनिकों ने चीन के करीब 1300 जवानों को मौत के घाट उतार दिया था।
इस टुकड़ी के पास न तो आधुनिक हथियार थे और न ही तकनीक। हथियार के नाम पर इनके पास थी सिर्फ वीरता। जिसका लोहा बाद में पूरी दुनिया ने माना। 120 जवानों की इस टुकड़ी का नेतृत्व मेजर शैतान सिंह कर रहे थे। कहा जाता है कि गिन पाना मुश्किल था कि शैतान सिंह ने अकेले ही कितने चीनी सैनिकों को मार डाला था। इतना ही नहीं वो अपने साथियों को लगातार प्रोत्साहित कर रहे थे। इसी बीच उन्हें कई गोलियां लगीं।
दो सैनिक उन्हें उठाकर किसी सुरक्षित स्थान पर ले जा रहे थे तभी एक चीनी सैनिक ने आकर मशीनगन से उन पर हमला कर दिया। जब शैतान सिंह पर हमला हुआ तो उन्होंने अपने साथी सैनिकों को पीछे हटने का आदेश दिया और खुद मशीनगन के सामने आ गए।
इसके बाद सैनिकों ने शैतान सिंह को एक बड़े पत्थर के पीछे छुपा दिया। जब युद्ध खत्म हुआ तो उसी पत्थर के पीछे शैतान सिंह का शव मिला। उन्होंने अपने हाथों से मजबूत तरीके से बंदूक पकड़ रखी थी। टुकड़ी में 120 जवान और सामने दुश्मनों की फौज, बावजूद इसके मेजर के कुशल नेतृत्व के बूते 18 नवंबर 1962 का दिन इतिहास के अमर पन्नों में दर्ज हो गया।
इस लड़ाई में 114 भारतीय वीर सपूतों ने देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहूति दे दी थी। जबकि जीवित बचे छह जवानों को बंदी बना लिया। लेकिन वीर सपूतों ने चीन को यहां भी मात दी। चीनी सेना समझ ही नहीं पाई और सभी जवान बचकर निकल आए। इस सैन्य टुकड़ी को पांच वीर चक्र और चार सेना पदक से सम्मानित किया गया था। वहीं मेजर को उनके शौर्य के चलते परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
भारतीय सैनिकों के इस साहस को देखकर चीनी लोगों ने अपने घुटने टेक दिए और 21 नवंबर को उसने सीजफायर की घोषणा कर दी थी। यह तारीख इतिहास के पन्नों में दर्ज हो चुकी है। जब भी भारतीय सैनिकों की वीरता और साहस की बात होती है तो ऐसा नहीं होता कि शैतान सिंह को याद न किया जाए।
भारतीय सेना ने इतना अद्भुत पराक्रम केवल एक बार ही नही अनेकों बार दिखाया है।11 सितंबर 1967 में चीन ने धोखे से अटेक किया था तभी उनके 400 सैनिको को मौत के घाट उतार दिया था। जबकि भारत के केवल 70 जवान शहीद हुए थे। अभी हाल में चीन ने धोखे से वार किया उसका जवाब में उनके 40 सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था।
गीदड़ धमकी देने से पहले चीन को यह सब याद रखना चाहिए और अभी तो 2020 का भारत है, ड्रैगन बचेगा भी नही इसलिए चीन अपनी जुबान संभालकर खोले।
सबसे अधिक हिन्दू सैनिक क्यों बचे ?
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अफ्रीका के सहारा मरूस्थल में खाद्य आपूर्ति बंद हो जाने के कारण मित्र राष्ट्रों की सेनाओं को तीन दिन तक अन्न जल कुछ भी प्राप्त नहीं हो सका। चारों ओर सुनसान रेगिस्तान तथा धूल-कंकड़ों के अतिरिक्त कुछ भी दिखाई नहीं देता था। रेगिस्तान पार करते करते कुल सात सौ सैनिकों की उस टुकड़ी में से मात्र 210 व्यक्ति ही जीवित बच पाये। बाकी सभी भूख-प्यास के कारण रास्ते में ही मर गये।
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इन जीवित सैनिकों में से 80 प्रतिशत अर्थात् 186 सैनिक हिन्दू थे। इस आश्चर्यजनक घटना का जब विश्लेषण किया गया तो विशेषज्ञों ने यह निष्कर्ष निकाला किः ‘वे निश्चय ही ऐसे पूर्वजों की संतानें थीं जिनके रक्त में तप, तितिक्षा, उपवास, सहिष्णुता एवं संयम का प्रभाव रहा होगा। वे अवश्य ही श्रद्धापूर्वक कठिन व्रतों का पालन करते रहे होंगे।’
हिन्दू संस्कृति के वे सपूत रेगिस्तान में अन्न जल के बिना भी इसलिए बच गये क्योंकि उन्होंने, उनके माता-पिता ने अथवा उनके दादा-दादी ने इस प्रकार की तपस्या की होगी। सात पीढ़ियों तक की संतति में अपने संस्कारों का अंश जाता है।
भारतीय संस्कृति इतनी महान है कि कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी सफलता दिलवा देती है और हमारे जवान हमेंशा उसका अनुसरण करते आये हैं इसलिए वे हमेंशा जीत हासिल कर लेते हैं। हमारी दिव्य सनातन हिंदू संस्कृति और वीर जवानों को नमन।
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