20 मार्च 2020
*••★ मांसाहार व अभक्ष्य आहार का त्याग*
*जैसे भारतीय संस्कृति के सिद्धांतों की अवहेलना के घातक दुष्परिणाम क्या हो सकते हैं यह अब सभी को खूब प्रत्यक्ष हो रहा है । विश्वभर में आतंक मचाकर तबाही कर रहा कोरोना वायरस इसका एक ताजा उदाहरण है । इसके पहले सार्स रोग ने खूब तबाही मचायी थी जो पशुओं से मनुष्य-शरीर में आया था ।*
*वैज्ञानिकों के अनुसार कोरोना वायरस प्राणी से मनुष्य में संक्रमित हुआ वायरस है । मांसाहार करने के लिए जानवरों को प्राप्त करने और मांस तैयार करने की प्रक्रिया में लिप्त मांसाहार के व्यापारी और उसे खाने के शौकीन लोग जानवर के स्पर्श, श्वासोच्छवास, सेवन आदि द्वारा अपने जीवन को जानलेवा बीमारियों एवं अकाल मौत के मुँह में धकेल देते हैं । शाकाहारी जीवन जियें तो क्यों ऐसी महामारियाँ होंगी ?*
*मांसाहारी व्यक्ति केवल अपने लिए प्राणघातक नहीं है अपितु शाकाहारियों के लिए भी खतरा है क्योंकि ऐसे वायरस से रोग फिर मनुष्यों से मनुष्यों में फैलते हैं ।*
*अब चीन ने जंगली पशुओं के व्यापार और उनके उपभोग पर रोक लगा दी है ।*
*मांसाहार और पशु-संक्रमण से मनुष्य में प्रविष्ट वायरस व रोग…*
*● नॉवेल कोरोना वायरस 2019*
*● एच 5 एन 1*
*● ऐवियन इन्फ्लुएंजा अथवा बर्ड फ्लू*
*● ईबोला वायरस रोग*
*● निपाह वायरस संक्रमण*
*● सार्स वायरस*
*● एच 1एन 1 स्वाइन फ्लू*
*बर्ड फ्लू और स्वाइन फ्लू बीमारी मुर्गे और सुअरों के जरिए मनुष्यों तक पहुंची थी। यह बीमारी हमारे शरीर तक तभी पहुंचती है जब हम इस बीमारी से ग्रस्त जीव को खाते हैं। हर साल इसकी वजह से लाखों लोग मौत की चपेट में आ जाते हैं।*
*विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार मांसाहार का सेवन करना हमारे शरीर के लिए उतना ही नुकसानदायक होता है जितना कि धूम्रपान असर करता है। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पका हुआ मांस खाने से कैंसर का खतरा बना रहता है।*
*मांसाहारी खाने वाले लोग गंभीर बिमारियों की चपेट में ज्यादा आते हैं। इन बीमारियों में हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटिज, दिल की बीमारी, कैंसर, गुर्दे का रोग, गठिया और अल्सर शामिल हैं।*
*दुनिया के एक चौथाई प्रदूषण का कारण मांस है। यदि विश्व के लोग मांस खाना छोड दें तो 70 प्रतिशत तक प्रदूषण कम हो सकता है।*
*मांसाहार का सेवन करना हिंदू संस्कृति में वर्जित है क्योंकि यह मनुष्य का नहीं राक्षसी भोजन है। जो तरह-तरह के अमृत पूर्ण शाकाहारी उत्तम पदार्थों को छोड़ घृणित मांस आदि पदार्थों को खाते हैं ऐसे मनुष्य राक्षस के समान होते हैं। धार्मिक ग्रंथों में जीव हत्या को पाप बताया गया है इसलिए बहुत से लोग शाकाहार का अनुसरण करते हैं।*
*••★ ठोकर खाने से पहले ही सँभल जायें…*
*कोरोना वायरस रोग की भीषण महामारी से त्रस्त होकर आज विश्व को शाकाहार और भारत के महापुरुषों के सिद्धान्तों की ओर तो आखिर में मुड़ना ही पड़ रहा है । लेकिन कितना अच्छा होता कि पहले से ही मांस भक्षण न करने की महापुरुषों की उत्तम सीख को मानकर निर्दोष मूक प्राणियों की हिंसा से और इस रोग से बचा जाता !*
*जब-जब शास्त्रों व महापुरुषों की दूरदृष्टि सम्पन्न हित व करूणाभरी सलाह को ठुकराया जाता है तब-तब देर-सवेर उसके घातक परिणाम भुगतने ही पड़ते हैं और मजबूर होकर शास्त्रों-महापुरुषों के सिद्धान्तों को मानना पड़ता है । ऐसे कई उदाहरण हमारे सामने हैं।*
*भारत के साधु-संतों के ज्ञान का महत्त्व न जानने वालों ने स्वास्थ्य और सुविधा के लिए बड़ी-बड़ी महँगी-महँगी दवाइयाँ व मशीनें खोजीं लेकिन समस्याएँ कम न हुईं बल्कि और भी बढ़ीं । आखिर थक-हारकर आज पुनः स्वास्थ्य व शांति के लिए विश्ववासियों को भारत की ऋषिप्रणीत इन प्रणालियों की शरण स्वीकारनी पड़ रही है । इसी प्रकार हमारी गौ-चिकित्सा की ओर भी ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ सहित सारा विश्व आज आशाभरी दृष्टि से टकटकी लगाये देख रहा है ।*
*विश्व को उपरोक्त जैसी विभिन्न तबाहियों से बचना हो तो भारत के ऋषि-मुनियों और ब्रह्मवेत्ता सत्पुरुषों के ज्ञान की ओर ही मुड़ना होगा… स्नेहपूर्वक न मुड़े तो ठोकरें खाकर भी मुड़ना होगा…. इसके सिवा कोई चारा ही नहीं है ।*
*विदेशी लोग तो चलो, हमारी संस्कृति की महानता से अपरिचित हैं इसलिए वे ठोकर खाकर सँभल रहे हैं पर हमारा जन्म तो भारतभूमि में हुआ है । ब्रह्मवेत्ता महापुरुषों के सुसंस्कारों की सरिताएँ आज भी हमारे देश में बह रही हैं ।*
*एक-एक ठोकर खाकर हमारे महापुरुषों का एक-एक सिद्धान्त स्वीकारने के बजाय अगर हम उन सिद्धान्तों के उद्गमस्वरूप महापुरुष का ही महत्त्व समझें, उनका सत्संग, आदर-सम्मान करें और उनके बताये मार्ग पर चलें तो इन रोग-बीमारियों से मुक्ति तो बहुत छोटी बात है, तनाव चिंता, दुःख, शोक, उद्वेग एवं बड़ी भारी मुसीबतों से भी मुक्ति और अमिट परम आनंद, परम शांति की प्राप्ति करके मनुष्य जन्म का पूर्ण सफल भी प्राप्त किया जा सकता है । हम इस बात को कब समझेंगे ?*
*स्रोतः ऋषि प्रसाद पत्रिका, मार्च 2020*
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