अकबर की रानी से लेकर अनेक विद्वान मुस्लिम व ईसाई गीता के रहे हैं दीवाने

13 दिसंबर 2021

azaadbharat.org

🚩श्रीमद्भगवत गीता सिर्फ हिंदुओं का ही नहीं अपितु मानव मात्र का ग्रंथ है। ये एक ऐसा ग्रंथ है जिसमें प्रत्येक धर्म, मजहब, मत, पंथ के लोगों के कल्याण का मार्ग बहुत ही सरलता से बताया गया है और हो भी क्यों न, आखिर इसका ज्ञान स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने दिया है।

🚩वैसे तो गीता ग्रंथ का सभी धर्म के लोग सम्मान करते हैं लेकिन कट्टर मुसलमान की बच्ची और अकबर की रानी ताज भी इस गीताकार के गीत गाये बिना नहीं रहती थीं।

🚩ताज अपनी एक कविता में कहती हैं-

सुनो दिलजानी मेरे दिल की कहानी तुम।
दस्त ही बिकानी, बदनामी भी सहूँगी मैं।।
देवपूजा ठानी मैं, नमाज हूँ भुलानी।
तजे कलमा कुरान सारे गुनन गहूँगी मैं।।
साँवला सलोना सिरताज सिर कुल्ले दिये।
तेरे नेह दाग में, निदाग हो रहूँगी मैं।।
नन्द के कुमार कुरबान तेरी सूरत पै।
हूँ तो मुगलानी, हिन्दुआनी रहूँगी मैं।।”

🚩अकबर की रानी ताज अकबर को लेकर आगरा से वृंदावन आयीं। कृष्ण के मंदिर में आठ दिन तक कीर्तन करते-करते जब आखिरी घड़ियाँ आयीं, तब ‘हे कृष्ण ! मैं तेरी हूँ, तू मेरा है…’ कहकर उन्होंने सदा के लिए माथा टेका और कृष्ण के चरणों में समा गयीं। अकबर बोलता है: ‘‘जो चीज जिसकी थी, उसने उसको पा लिया। हम रह गये…’’

🚩गीता माता के लिए ख्वाजा दिल मुहम्मद ने लिखा: ‘‘रूहानी गुलों से बना यह गुलदस्ता हजारों वर्ष बीत जाने पर भी दिन दूना और रात चौगुना महकता जा रहा है। यह गुलदस्ता जिसके हाथ में भी गया, उसका जीवन महक उठा। ऐसे गीतारूपी गुलदस्ते को मेरा प्रणाम है। सात सौ श्लोकरूपी फूलों से सुवासित यह गुलदस्ता करोड़ों लोगों के हाथ गया, फिर भी मुरझाया नहीं।”

🚩गीता पढ़कर 1985-86 में गीताकार की भूमि को प्रणाम करने के लिए कनाडा के प्रधानमंत्री मि. पिअर ट्रूडो भारत आए थे।

🚩पियर ट्रूडो ने कहा है: ‘‘मैंने बाइबिल पढ़ी, एंजिल पढ़ी और अन्य धर्मग्रंथ पढ़े। सब ग्रंथ अपने-अपने स्थान पर ठीक हैं किंतु हिन्दुओं का यह ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ ग्रंथ तो अद्भुत है। इसमें किसी मत-मजहब, पंथ या सम्प्रदाय की निंदा-स्तुति नहीं है वरन् इसमें तो मनुष्यमात्र के विकास की बातें हैं। गीता मात्र हिन्दुओं का ही धर्मग्रंथ नहीं है बल्कि मानवमात्र का धर्मग्रंथ है।’’

🚩इतना ही नहीं महात्मा थोरो भी गीता के ज्ञान से प्रभावित हो के अपना सब कुछ छोड़कर अरण्यवास करते हुए एकांत में कुटिया बनाकर जीवन्मुक्ति का आनंद लेते थे।

🚩गीता के विषय में विद्वान हस्तियों के विचार…

🚩श्रीमद्भगवद्गीता भारत के विभिन्न मतों को मिलानेवाली रज्जु तथा राष्ट्रीय-जीवन की अमूल्य संपत्ति है। भारतवर्ष का राष्ट्रीय धर्मग्रंथ बनने के लिए जिन-जिन विशेष गुणों की आवश्यकता है, वे सब श्रीमद्भगवद्गीता में मिलते हैं। इसमें केवल उपयुक्त बातें ही नहीं हैं अपितु यह भावी विश्वधर्म का सर्वोपरि धर्मग्रंथ है। भारतवर्ष के प्रकाशपूर्ण अतीत का यह महादान मनुष्य-जाति के और भी उज्ज्वल भविष्य का निर्माता है। – मि. एफ.टी. बू्रक्स

🚩श्रीमद्भगवद्गीता योग का एक ऐसा ग्रंथ है जो किसी जाति, वर्ण अथवा धर्मविशेष के लिए ही नहीं अपितु सारी मानव-जाति के लिए उपयोगी है। – डॉ. मुहम्मद हाफिज सैयद

🚩किसी भी जाति को उन्नति के शिखर पर चढ़ाने के लिए गीता का उपदेश अद्वितीय है। – वॉरेन हेस्टिंग्स (भारत का वायसराय)

🚩प्रसिद्ध दार्शनिक स्पीनोजा के मतानुसार- ‘वह सगुण ईश्वर जगत से अलग न होकर प्रकृति में अनुस्यूत है’ कित भगवद्गीता के अनुसार, ‘ईश्वर जगत के बाहर भी है और जगत में समाया हुआ भी।’ इसी कारण यूरोपीय विद्वानों को गीता का यह सिद्धांत सदा ही अनोखा लगा है।
– डॉ. हेल्मुट ग्लाजेनप्प

🚩भगवद्गीता में दर्शनशास्त्र और धर्म की धाराएँ साथ-साथ प्रवाहित होकर एक-दूसरे के साथ मिल जाती हैं। भगवद्गीता और भारत के प्रति हम लोग (जर्मन लोग) आकर्षित होते रहते हैं। – डॉ. एल्जे. ल्युडर्स (जर्मनी)

🚩सत् क्या है- इसका विवेचन भगवद्गीता में बहुत अच्छी तरह से किया गया है। विश्व में यह ग्रंथ-रत्न अप्रतिम है, अद्भुत है।
– लॉर्ड रोनाल्डशे

🚩बाईबल का मैंने यथार्थ अभ्यास किया है। उसमें जो दिव्यज्ञान लिखा है वह केवल गीता के उद्धरण के रूप में है। मैं ईसाई होते हुए भी गीता के प्रति इतना सारा आदरभाव इसलिए रखता हूँ कि जिन गूढ़ प्रश्नों का समाधान पाश्चात्य लोग अभी तक नहीं खोज पाये हैं, उनका समाधान गीताग्रंथ ने शुद्ध और सरल रीति से दिया है। उसमें कई सूत्र अलौकिक उपदेशों से भरपूर लगे इसीलिए गीताजी मेरे लिए साक्षात योगेश्वरी माता बन रही हैं। वह तो विश्व के तमाम धन से भी नहीं खरीदा जा सके ऐसा भारतवर्ष का अमूल्य खजाना है। – एफ. एच. मोलेम (इंग्लैन्ड)

🚩गीताग्रंथ अद्भुत है। विश्व की 578 भाषाओं में गीता का अनुवाद हो चुका है । हर भाषा में कई चिन्तकों, विद्वानों एवं भक्तों ने मीमांसाएँ की हैं और अभी भी हो रही हैं, होती रहेंगी क्योंकि इस ग्रंथ में सभी देश, जाति, पंथ के सभी मनुष्यों के कल्याण की अलौकिक सामग्री भरी हुई है। अतः हम सबको गीताज्ञान में अवगाहन करना चाहिए। भोग, मोक्ष, निर्लेपता, निर्भयता आदि तमाम दिव्य गुणों का विकास करानेवाला यह गीताग्रंथ विश्व में अद्वितीय है। – ब्रह्मनिष्ठ स्वामी श्री लीलाशाहजी महाराज

🚩विरागी जिसकी इच्छा करते हैं, संत जिसका प्रत्यक्ष अनुभव करते हैं और पूर्ण ब्रह्मज्ञानी जिसमें ‘अहमेव ब्रह्मास्मि’ की भावना रखकर रमण करते हैं, भक्त जिसका श्रवण करते हैं, जिसकी त्रिभुवन में सबसे पहले वन्दना होती है, उसे लोग ‘भगवद्गीता’ कहते हैं। – संत ज्ञानेश्वरजी

🚩गीता के ज्ञानामृत के पान से मनुष्य के जीवन में साहस, समता, सरलता, स्नेह, शांति, धर्म आदि दैवी गुण सहज ही विकसित हो उठते हैं। अधर्म, अन्याय एवं शोषकों का मुकाबला करने का सामर्थ्य आ जाता है। निर्भयता आदि दैवी गुणों को विकसित करनेवाला, भोग और मोक्ष दोनों ही प्रदान करनेवाला यह ग्रंथ पूरे विश्व में अद्वितीय है। – संत आसारामजी बापू

🚩जिस मनुष्य ने श्रीमद्भगवद्गीता का थोड़ा भी अध्ययन किया हो, श्रीगंगाजल का एक बिन्दु भी पान किया हो अथवा भगवान श्रीविष्णु का सप्रेम पूजन किया हो, उसे यमराज नजर उठाकर देख भी नहीं सकते अर्थात् वह संसार-बंधन से मुक्त होकर आत्यन्तिक आनन्द का अधिकारी हो जाता है। -जगद्गुरु श्री शंकराचार्यजी
📚( स्रोत: संत श्री आसारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित पत्रिका ‘ऋषि प्रसाद’ )

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