09 जून 2019
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हमारे देश की शिक्षा प्रणाली में सहीं इतिहास को स्थान ही नहीं दिया गया है, हमारे भारत में ऐसे महान क्रांतिकारी वीर हुए हैं कि जिनकी वीरता की गाथाएं सुनकर आपको भी अपने पूर्वजों पर गर्व होने लगेगा । ऐसे ही एक महान वीर थे बिरसा मुंडा । आज उनका बलिदान दिवस है पर इतिहास में उनके बारे में हमें जानकारी नहीं मिलती है, जिससे आज हम भूल गये हैं या यूं कहें कि आज की युवा पीढ़ी उनको जानती तक नहीं है ।
बिरसा मुंडा का परिचय-
सुगना मुंडा और करमी हातू के पुत्र बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को झारखंड प्रदेश में रांची के उलीहातू गांव में हुआ था । ‘बिरसा भगवान’ के नाम से लोकप्रिय थे । बिरसा का जन्म बृहस्पतिवार को हुआ था, इसलिए मुंडा जनजातियों की परंपराके अनुसार उनका नाम ‘बिरसा मुंडा’ रखा गया । इनके पिता एक खेतिहर मजदूर थे । वे बांस से बनी एक छोटी सी झोंपड़ी में अपने परिवार के साथ रहते थे ।
बिरसा बचपन से ही बड़े प्रतिभाशाली थे । बिरसाका परिवार अत्यंत गरीबीमें जीवन- यापन कर रहा था । गरीबी के कारण ही बिरसा को उनके मामा के पास भेज दिया गया जहां वे एक विद्यालय में जाने लगे । विद्यालय के संचालक बिरसा की प्रतिभा से बहुत प्रभावित हुए । उन्होंने बिरसा को जर्मन मिशन पाठशाला में पढ़ने की सलाह दी । वहां पढ़ने के लिए ईसाई धर्म स्वीकार करना अनिवार्य था । अतः बिरसा और उनके सभी परिवार वालों ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया ।
हिंदुत्व की प्रेरणा-
सन् 1886 से 1890 तक का समय बिरसा ने जर्मन मिशनमें बिताया । इसके बाद उन्होंने जर्मन मिशनरी की सदस्यता त्याग दी और प्रसिद्ध वैष्णव भक्त आनंद पांडे के संपर्क में आये। 1894 में मानसून के छोटानागपुर में असफल होने के कारण भयंकर अकाल और महामारी फैली हुई थी। बिरसा ने पूरे मनोयोग से अपने लोगों की सेवा की। बिरसा ने आनंद पांडेजी से धार्मिक शिक्षा ग्रहण की । आनंद पांडेजी के सत्संग से उनकी रुचि भारतीय दर्शन और संस्कृति के रहस्यों को जानने की ओर हो गयी । धार्मिक शिक्षा ग्रहण करने के साथ-साथ उन्होंने #रामायण, #महाभारत, #हितोपदेश, #गीता आदि धर्मग्रंथों का भी अध्ययन किया । इसके बाद वे सत्य की खोजके लिए एकांत स्थान पर कठोर साधना करने लगे । लगभग चार वर्ष के एकांतवास के बाद जब बिरसा प्रकट हुए तो वे एक हिंदु महात्मा की तरह पीला वस्त्र, लकड़ी की खडाऊं और यज्ञोपवीत धारण करने लगे थे ।
धर्मांतरण का विरोध-
बिरसा ने हिंदु धर्म और भारतीय संस्कृति का प्रचार करना शुरू कर दिया । ईसाई धर्म स्वीकार करने वाले वनवासी बंधुओं को उन्होंने समझाया कि ‘ईसाई धर्म हमारा अपना धर्म नहीं है । यह अंग्रेजों का धर्म है वे हमारे देशपर शासन करते हैं, इसलिए वे हमारे हिंदु धर्म का विरोध और ईसाई धर्म का प्रचार कर रहे हैं । ईसाई धर्म अपनाने से हम अपने पूर्वजों की श्रेष्ठ परंपरा से विमुख होते जा रहे हैं । अब हमें जागना चाहिए । उनके विचारों से प्रभावित होकर बहुत से वनवासी उनके पास आने लगे और उनके शिष्य बन गए ।
वन अधिकारी वनवासियों के साथ ऐसा व्यवहार करते थे जैसे उनके सभी अधिकार समाप्त कर दिए गए हों । वनवासियों ने इसका विरोध किया और अदालत में एक याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने अपने पुराने पैतृक अधिकारों को बहाल करने की मांग की । इस याचिका पर सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया । बिरसा मुंडा ने वनवासी किसानों को साथ लेकर स्थानियों अधिकारियों के अत्याचारों के विरुद्ध याचिका दायर की । इस याचिका का भी कोई परिणाम नहीं निकला ।
वनवासियों का संगठन-
बिरसा के विचारों का वनवासी बंधुओं पर गहरा प्रभाव पड़ा । धीरे-धीरे बड़ी संख्या में लोग उनके अनुयायी बनते गए । बिरसा उन्हें प्रवचन सुनाते और अपने अधिकारों के लिए लड़ने की प्रेरणा देते । इस प्रकार उन्होंने वनवासियों का संगठन बना लिया । बिरसा के बढ़ते प्रभाव और लोकप्रियता को देखकर अंग्रेज मिशनरी चिंतित हो उठे । उन्हें डर था कि बिरसा द्वारा बनाया गया वनवासियों का यह संगठन आगे चलकर मिशनरियों और अंग्रेजी शासन के लिए संकट बन सकता है। अतः बिरसा को गिरफ्तार कर लिया गया ।
अंग्रेजी शासन को उखाड़ फेंकने का संकल्प-
बिरसा की चमत्कारी शक्ति और उनकी सेवाभावना के कारण वनवासी उन्हें भगवान का अवतार मानने लगे थे। अतः उनकी गिरफ्तारी से सारे वनांचल में असंतोष फैल गया । वनवासियों ने हजारों की संख्यामें एकत्रित होकर पुलिस थाने का घेराव किया और उनको निर्दोष बताते हुए उन्हें छोडनेकी मांग की । अंग्रेजी सरकार ने वनवासी मुंडाओं पर भी राजद्रोह का आरोप लगाकर उनपर मुकदमा चला दिया । बिरसा को दो वर्ष के सश्रम कारावास की सजा सुनाई गयी और फिर हजारीबाग की जेल में भेज दिया गया । बिरसाका अपराध यह था कि उन्होंने वनवासियोंको अपने अधिकारों के लिए लड़ने हेतु संगठित किया था । जेल जाने के बाद बिरसा के मन में अंग्रेजों के प्रति घृणा और बढ़ गयी और उन्होंने अंग्रेजी शासन को उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया ।
दो वर्ष की सजा पूरी करने के बाद बिरसा को जेल से मुक्त कर दिया गया । उनकी मुक्ति का समाचार पाकर हजारों की संख्या में वनवासी उनके पास आये । बिरसाने उनके साथ गुप्त सभाएं कीं और अंग्रेजी शासन के विरुद्ध संघर्ष के लिए उन्हें संगठित किया । अपने साथियों को उन्होंने शस्त्र संग्रह करने, तीर कमान बनाने और कुल्हाड़ी की धार तेज करने जैसे कार्यों में लगाकर उन्हें सशस्त्र क्रान्ति की तैयारी करने का निर्देश दिया । सन #1899 में इस क्रांति का श्रीगणेश किया गया । बिरसा के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने रांची से लेकर चाईबासा तक की पुलिस चौकियों को घेर लिया और ईसाई मिशनरियों तथा अंग्रेज अधिकारियों पर तीरों की बौछार शुरू कर दी । रांची में कई दिनों तक कर्फ्यू जैसी स्थिति बनी रही । घबराकर अंग्रेजों ने हजारीबाग और कलकत्ता से सेना बुलवा ली ।
राष्ट्र हेतु सर्वस्व अर्पण-
अब बिरसाके नेतृत्वमें वनवासियों ने अंग्रेज सेना से सीधी लड़ाई छेड़ दी । अंग्रेजों के पास बंदूक, बम आदि आधुनिक हथियार थे, जबकि वनवासी क्रांतिकारियों के पास उनके साधारण हथियार तीर-कमान आदि ही थे । बिरसा और उनके अनुनायियों ने अपनी जान की बाजी लगाकर अंग्रेज सेना का मुकाबला किया। अंत में बिरसा के लगभग चार सौ अनुयायी मारे गए । इस घटनाके कुछ दिन बाद अंग्रेजोंने मौका पाकर बिरसाको जंगलसे गिरफ्तार कर लिया । उन्हें जंजीरोंमें जकड़कर रांची जेलमें भेज दिया गया, जहां उन्हें कठोर यातनाएं दी गयीं । बिरसा हंसते-हंसते सब कुछ सहते रहे और अंत में 9 जून 1900 को कारावासमें उनका देहावसान हो गया । बिरसाने भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन को नयी दिशा देकर भारतीयों, विशेषकर वनवासियोंमें स्वदेश प्रेम की भावना जाग्रत की ।
बिरसा मुंडा की गणना महान देशभक्तों में की जाती है । उन्होंने वनवासियोंको संगठित कर उन्हें अंग्रेजी शासनके विरुद्ध संघर्ष करनेके लिए तैयार किया । इसके अतिरिक्त उन्होंने भारतीय संस्कृतिकी रक्षा करनेके लिए धर्मांतरण करने वाले ईसाई मिशनरियोंका विरोध किया । ईसाई धर्म स्वीकार करनेवाले हिन्दुओंको उन्होंने अपनी सभ्यता एवं संस्कृतिकी जानकारी दी और अंग्रेजोंके षडयन्त्रके प्रति सचेत किया । आज भी झारखण्ड, उडीसा, बिहार, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेशके वनवासी लोग बिरसाको भगवानके रूपमें पूजते हैं । अपने पच्चीस वर्षके अल्प जीवनकालमें ही उन्होंने वनवासियोंमें स्वदेशी तथा भारतीय संस्कृतिके प्रति जो प्रेरणा जगाई वह अतुलनीय है । धर्मांतरण, शोषण और अन्यायके विरुद्ध सशस्त्र क्रांतिका संचालन करने वाले महान सेनानायक थे ‘बिरसा मुंडा’ ।
आज भी भारत में वेटिकन सिटी के इशारे पर भारत मे ईसाई मिशनरियों द्वारा पुरजोर से धर्मान्तरण किया जा रहा है, लेकिन जनता को बिरसा मुंडा के पथ पर चलना चाहिए । जो हिन्दू संस्कृति को तोड़ने के लिए ईसाई मिशनरियों ने भारत मे धर्मान्तरण रूपी जाल बिसाया है इसमे भोले-भाले हिन्दू फँस जाते हैं और कोई हिन्दूनिष्ठ विरोध करता है तो उनकी हत्या करवा दी जाती है या #मीडिया द्वारा बदनाम करवाकर झूठे केस बनाकर जेल में भिजवाया जाता है ।
हिन्दुस्तानी जितना जल्दी हो सके इन षड्यंत्रों को समझो और बिरसा मुंडा के पथ पर चलो ।
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