22 November 2023
🚩तुलसी विवाह उत्सव 23 नवम्बर से 27 नवम्बर 2023
🚩देवउठनी एकादशी का दिन तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है।
🙏🏻जो मनुष्य मेरे शालिग्राम रूप के साथ तुलसी विवाह करेगा,उसे इस लोक और परलोक में यश प्राप्त होगा। – भगवान विष्णु
🚩तुलसी के दर्शन मात्र से स्वर्ण दान का पुण्य मिलता है,तुलसी जहाँ रहती वहाँ माँ लक्ष्मी की विशेष कृपा होती हैं।
🚩तुलसी को मां लक्ष्मी के समान माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि अगर कार्तिक के महीने में तुलसी का पौधा आपने घर में लगा लिया और उसकी लक्ष्मी स्वरूप में पूजा की, तो मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। ऐसे घर मे तुलसी को मां लक्ष्मी के समान माना गया है। ऐसा भी कहा जाता है कि अगर कार्तिक के महीने में तुलसी का पौधा आपने घर में लगा लिया और उसका पूजन अर्चन किया तो ऐसे घर में कभी भी धन की कमी नहीं होती। मां लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है। विशेषकर कार्तिक माह में तुलसी का महत्व और भी बढ़ जाता है।
🚩कार्तिक के महीने में अगर आप महीने भर कार्तिक स्नान कर रहै हैं, तो आपको तुलसी जी का भी विशेष पूजन करना चाहिए। कहा जाता है कि तुलसी विवाह के दिन व्रत करने से जन्म और जन्म के पूर्व के पापों से मुक्ति मिल जाती है। कार्तिक मास की एकादशी को तुलसी विवाह का त्यौहार बेहद शुभ माना जाता है। तुलसी को विष्णुप्रिया नाम से भी जाना जाता है।
🚩अमिट पुण्यों के फल को देने वाला व्रत भीष्म पंचक व्रत इस साल 23 नवम्बर से 27 नवम्बर 2023 तक रहेगा। भीष्म पंचक के प्रथम दिन 23 नवम्बर 2023 को देवउठनी एकादशी हैं, इस दिन भगवान नारायण जागते हैं, इस कारण निम्न मंत्र से का उच्चारण करके भगवान को जगाना चाहिए:-उत्तिष्ठो उत्तिष्ठ गोविंदो, उत्तिष्ठो गरुड़ध्वज। उत्तिष्ठो कमलाकांत, जगताम मंगलम कुरु।। अर्थात : हे गोविंद! उठिए , हे गरुड़ध्वज! उठिए , हे कमलाकांत ! निंद्रा का त्याग कर तीनों लोकों का मंगल कीजिए।
🚩देवउठनी एकादशी के दिन संध्या के समय भगवान विष्णु की कपूर आरती करने से अकाल मृत्यु, एक्सीडेंट आदि के भय से सुरक्षा होती हैं।
🚩तुलसी विवाह की कथा:-
🚩एक बार शिव ने अपने तेज को समुद्र में फैंक दिया था। उससे एक महातेजस्वी बालक ने जन्म लिया। यह बालक आगे चलकर जालंधर के नाम से पराक्रमी दैत्य राजा बना। इसकी राजधानी का नाम जालंधर नगरी था।
🚩दैत्यराज कालनेमी की कन्या वृंदा का विवाह जालंधर से हुआ। जालंधर महाराक्षस था। अपनी सत्ता के मद में चूर उसने माता लक्ष्मी को पाने की कामना से युद्ध किया, परंतु समुद्र से ही उत्पन्न होने के कारण माता लक्ष्मी ने उसे अपने भाई के रूप में स्वीकार किया। वहाँ से पराजित होकर वह देवी पार्वती को पाने की लालसा से कैलाश पर्वत पर गया।
🚩भगवान देवाधिदेव शिव का ही रूप धर कर माता पार्वती के समीप गया, परंतु माँ ने अपने योगबल से उसे तुरंत पहचान लिया तथा वहाँ से अंतर्ध्यान हो गईं। देवी पार्वती ने क्रुद्ध होकर सारा वृतांत भगवान विष्णु को सुनाया। जालंधर की पत्नी वृंदा अत्यन्त पतिव्रता स्त्री थी। उसी के पतिव्रत धर्म की शक्ति से जालंधर न तो मारा जाता था और न ही पराजित होता था। इसीलिए जालंधर का नाश करने के लिए वृंदा के पतिव्रत धर्म को भंग करना बहुत आवश्यक था।
🚩इसी कारण भगवान विष्णु ऋषि का वेश धारण कर वन में जा पहुँचे, जहाँ वृंदा अकेली भ्रमण कर रही थीं। भगवान के साथ दो मायावी राक्षस भी थे, जिन्हें देखकर वृंदा भयभीत हो गईं। ऋषि ने वृंदा के सामने पल में दोनों को भस्म कर दिया। उनकी शक्ति देखकर वृंदा ने कैलाश पर्वत पर महादेव के साथ युद्ध कर रहे अपने पति जालंधर के बारे में पूछा। ऋषि ने अपने माया जाल से दो वानर प्रकट किए। एक वानर के हाथ में जालंधर का सिर था तथा दूसरे के हाथ में धड़। अपने पति की यह दशा देखकर वृंदा मूर्छित हो कर गिर पड़ीं। होश में आने पर उन्होंने ऋषि रूपी भगवान से विनती की कि वह उसके पति को जीवित करें।
🚩भगवान ने अपनी माया से पुन: जालंधर का सिर धड़ से जोड़ दिया, परंतु स्वयं भी वह उसी शरीर में प्रवेश कर गए। वृंदा को इस छल का तनिक भी आभास न हुआ। जालंधर बने भगवान के साथ वृंदा पतिव्रता का व्यवहार करने लगी, जिससे उसका सतीत्व भंग हो गया। ऐसा होते ही वृंदा का पति जालंधर युद्ध में हार गया।
🚩इस सारी लीला का जब वृंदा को पता चला, तो उसने क्रुद्ध होकर भगवान विष्णु को ह्रदयहीन शिला होने का श्राप दे दिया। अपने भक्त के श्राप को भगवान विष्णु ने स्वीकार किया और शालिग्राम पत्थर बन गये। सृष्टि के पालनकर्ता के पत्थर बन जाने से ब्रम्हांड में असंतुलन की स्थिति हो गई। यह देखकर सभी देवी देवताओ ने वृंदा से प्रार्थना की वह भगवान् विष्णु को श्राप मुक्त कर दे।
🚩वृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप मुक्त कर स्वयं आत्मदाह कर लिया। जहाँ वृंदा भस्म हुईं, वहाँ तुलसी का पौधा उगा। भगवान विष्णु ने वृंदा से कहा: हे वृंदा। तुम अपने सतीत्व के कारण मुझे लक्ष्मी से भी अधिक प्रिय हो गई हो। अब तुम तुलसी के रूप में सदा मेरे साथ रहोगी। तब से हर साल कार्तिक महीने के देव-उठावनी एकादशी का दिन तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है। जो मनुष्य भी मेरे शालिग्राम रूप के साथ तुलसी का विवाह करेगा,उसे इस लोक और परलोक में विपुल यश प्राप्त होगा।
🚩उसी दैत्य जालंधर की यह भूमि जलंधर नाम से विख्यात है। सती वृंदा का मंदिर मोहल्ला कोट किशनचंद में स्थित है। कहते हैं कि इस स्थान पर एक प्राचीन गुफा भी थी, जो सीधी हरिद्वार तक जाती थी। सच्चे मन से 40 दिन तक सती वृंदा देवी के मंदिर में पूजा करने से सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं।
🚩जिस घर में तुलसी होती हैं, वहाँ यम के दूत भी असमय नहीं जा सकते। मृत्यु के समय जिसके प्राण मंजरी रहित तुलसी और गंगा जल मुख में रखकर निकल जाते हैं, वह पापों से मुक्त होकर वैकुंठ धाम को प्राप्त होता है। जो मनुष्य तुलसी व आंवलों की छाया में अपने पितरों का श्राद्ध करता है, उसके पितर मोक्ष को प्राप्त हो जाते हैं।
🚩तुलसी के दर्शन मात्र से स्वर्ण दान का पुण्य मिलता है,तुलसी जहाँ रहती वहाँ माँ लक्ष्मी की विशेष कृपा होती हैं, देवउठनी एकादशी के दिन जो शाम को संध्या के समय भगवान विष्णु की आरती करता हैं, उन्हें एक्सिडेंट आदि से सुरक्षा होती है। तुलसी से वास्तु दोष दूर होते हैं ,तुलसी के 1 पत्ते के सेवन से भी कई बीमारियों से सुरक्षा मिलती है,तुलसी की हवा से भी सूक्ष्म कीटाणुओं से रक्षा होती है,इसलिए हर घर में तुलसी होना चाहिए,संत श्री आशारामजी बापू आश्रमों द्वारा घर घर तुलसी लगाओ अभियान भी चलाया जाता हैं।बापूजी के साधकों द्वारा देशभर में 25 दिसम्बर को तुलसी पूजन दिवस भी मनाया जाता हैं।
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