20 June 2024
शंभाजी राजे ने अपनी अल्पायु में जो अलौकिक कार्य किए, उससे पूरा हिन्दुस्तान प्रभावित हुआ। इसलिए प्रत्येक हिन्दू को उनके प्रति कृतज्ञ रहना चाहिए। उन्होंने साहस एवं निडरता के साथ औरंगजेब के 8 लाख सैनिकों का सामना किया तथा अधिकांश मुगल सरदारों को युद्ध में पराजित कर उन्हें भागने के लिए विवश कर दिया।
कुछ कुत्सित मानसिकता से ग्रस्त लोग वीर शिवाजी के पुत्र वीर शम्भाजी को अयोग्य आदि की संज्ञा देकर बदनाम करते हैं। जबकि सत्य ये है कि अगर वीर शम्भाजी कायर होते तो वे औरंगजेब की दासता स्वीकार कर इस्लाम ग्रहण कर लेते। वह न केवल अपने प्राणों की रक्षा कर लेते अपितु अपने राज्य को भी बचा लेते।
औरंगजेब के जासूसों ने सुचना दी की शम्भा जी इस समय अपने पाँच-दस सैनिकों के साथ वारद्वारी से रायगढ़ की ओर जा रहे है। बीजापुर और गोलकुंडा की विजय में औरंगजेब को शेख निजाम के नाम से एक सरदार भी मिला जिसे उसने मुकर्रब की उपाधि से नवाजा था। मुकर्रब अत्यंत क्रूर और मतान्ध था। शम्भा जी के विषय में सुचना मिलते ही उसकी बाछे खिल उठी। वह दौड़ पड़ा रायगढ़ की ओर। शम्भा जी अपने मित्र कवि कलश के साथ इस समय संगमेश्वर पहुँच चुके थे। वह एक बाड़ी में बैठे थे की उन्होंने देखा कवि कलश भागे चले आ रहे है और उनके हाथ से रक्त बह रहा है। कलश ने शम्भा जी से कुछ भी नहीं बोला। बल्कि उनका हाथ पकड़कर उन्हें खींचते हुए बाड़ी के तलघर में ले गए। परन्तु उन्हें तलघर में घुसते हुए मुकर्रब खान के पुत्र ने देख लिया था। शीघ्र ही मराठा रणबांकुरों को बंदी बना लिया गया। शम्भा जी व कवि कलश को लोहे की जंजीरों में जकड़ कर मुकर्रब खान के सामने लाया गया। वह उन्हें देखकर खुशी से नाच उठा। दोनों वीरों को बोरों के समान हाथी पर लादकर मुस्लिम सेना बादशाह औरंगजेब की छावनी की और चल पड़ी।
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