वसीम रिजवी ने इस्लाम छोड़कर क्यों अपनाया हिन्दू धर्म?

  • 06 दिसंबर 2021

azaadbharat.org

हिन्दुत्व एक व्यवस्था है- मानव में महामानव और महामानव में महेश्वर को प्रगट करने की। यह द्विपादपशु सदृश उच्छृंखल व्यक्ति को देवता बनाने वाली एक महान परम्परा है। ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ का उद्घोष केवल सनातन धर्म के द्वारा किया गया है इसलिए आज ऐसे महान धर्म में इंडोनेशिया के लाखों मुस्लिम घर वापसी कर रहे हैं और भारत में भी समझदार मुस्लिम-ईसाई हिन्दू धर्म में घर वापसी कर रहे हैं।

इसी क्रम में उत्तर प्रदेश शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष ‘वसीम रिजवी’ ने आज (6 दिसंबर 2021 को) डासना देवी मंदिर में हिंदू धर्म स्वीकार कर लिया। अब उनका नाम जितेंद्र नारायण त्यागी किया गया है। इस धर्म परिवर्तन की प्रक्रिया के दौरान मंदिर में हवन, पूजा और अनुष्ठान हुए और ‘रिजवी’ से जलाभिषेक करवाया गया।
मंदिर के महंत यति नरसिंहानंद ने बताया कि उन्होंने वसीम को त्यागी उपजाति इसलिए दी क्योंकि वह बताना चाहते हैं कि हिंदू धर्म में जाति व्यवस्था कमजोरी नहीं है। वहीं ‘रिजवी’ ने कहा, “मैं अब यति का सिपाही हूँ, सनातन के दुश्मनों से मिल कर लड़ेंगे।”

हिंदू धर्म अपनाने के बाद जितेंद्र नारायण त्यागी उर्फ वसीम रिजवी की मीडिया से बात

‘रिजवी’ ने हिंदू धर्म स्वीकारते हुए कहा कि उन्होंने इस्लाम के बारे में इतना कुछ जान लिया है कि अब उसमें रहने का मतलब ही नहीं था। वह कहते हैं, “हर दिन मुझे इस्लाम से खारिज किया जाता था। अब मैं खुद ही इससे निकल गया।” इस दौरान ‘रिजवी’ ने सबसे बड़ा खतरा ISIS को बताया।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, उन्होंने यह भी कहा कि दुनिया का सबसे बड़ा धर्म सनातन धर्म ही है। इस्लाम कोई धर्म नहीं है। वह बोले कि उनका सनातन को अपनाना कोई धर्म परिवर्तन नहीं है। उन्होंने कहा, “जब मुझे इस्लाम से निकाल दिया गया है तो मेरी मर्जी मैं कौन सा धर्म चुनता हूँ।”

यहाँ बता दें कि हिंदू धर्म को स्वीकार करने के लिए शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष कल रात ही 10 बजे ही डासना देवी मंदिर पहुँच गए थे। वहाँ मंदिर के पंडितों ने वैदिक मंत्रोच्चार के बीच उन्हें विधिवत सनातन धर्म ग्रहण करवाया। वहीं इस पूरी प्रक्रिया के बाद मंदिर के बाहर पुलिस बल तैनात है।
हिंदू धर्म में प्रवेश करने के बाद ‘रिजवी’ बोले, “सनातन धर्म दुनिया का सबसे पवित्र धर्म है। इसमें बहुत सारी खूबियाँ हैं। उन्होंने बताया कि धर्म परिवर्तन के लिए उन्होंने 6 दिसंबर के पवित्र दिन को चुना है। आज के ही दिन 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में कार सेवकों ने बाबरी मस्जिद का ढाँचा गिराया था। अब आगे से वह सिर्फ हिंदुत्व के लिए काम करेंगे।”

सैमुअल जानसन के अनुसार, ‘हिन्दू लोग धार्मिक, प्रसन्नचित्त, न्यायप्रिय, सत्यभाषी, दयालु, कृतज्ञ, ईश्वरभक्त तथा भावनाशील होते हैं। ये विशेषताएँ उन्हें सांस्कृतिक विरासत के रूप में मिली हैं।’

यही तो है वह आदर्श जीवनशैली जिसने समस्त संसार को सभ्य बनाया और आज भी विलक्षण आत्ममहिमा की ओर दृष्टि, जीते जी जीवनमुक्ति, शरीर बदलने व जीवन बदलने पर भी अबदल आत्मा की प्राप्ति तथा ऊँचे शाश्वत मूल्यों को बनाये रखने की व्यवस्था इसमें विराजमान है। यदि हिन्दू समाज में कहीं पर इन गुणों का अभाव भी है तो उसका एकमात्र कारण है- धर्मनिरपेक्षता के भूत का कुप्रभाव। जब इस आदर्श सभ्यता को साम्प्रदायिकता का नाम दिया जाने लगा तथा कमजोर मन-बुद्धिवाले लोग इससे सहमत होने लगे तभी इन आदर्शों की हिन्दू समाज में कमी होने लगी और पश्चिमी पशुता ने अपने पैर जमा लिये। यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि अन्य किसी भी मत-पंथ के अस्त होने से विश्वमानव की इतनी दुर्गति नहीं हुई जितनी हिन्दू धर्म की आदर्श जीवन-पद्धति को छोड़ देने से हुई।

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