हिन्दू संस्कृति पर कैसे हो रहा है प्रहार, कवि ने लिखी कविता,जो हमें पढ़नी चाहिए

05 दिसंबर 2021

azaadbharat.org

भारतीय संस्कृति अति प्राचीन और महान से भी महान है पर उसको तोड़ने के लिए अनेक दुष्ट शक्तियां लगी हुई हैं । सदियों से चारों तरफ से प्रहार किया जा रहा है । अभी हाल ही में, ईसाई मिशनरियां, विदेशी कंपनियां, इस्लामिक स्टेट, जिहाद, वामपंथी, सेकुलर, राष्ट्र विरोधी ताकतें आदि आदि संस्कृति को नष्ट करने में लगी हुई हैं, उसे रोकने के लिए हिंदू साधु-संत पुरजोर प्रयत्न कर रहे हैं, जनता में जागरूकता पैदा कर रहे हैं, उनके खिलाफ लोहा ले रहे हैं तो उन साधु-संतों के खिलाफ ही षड्यंत्र रचे जा रहे हैं।

जो भी हिंदू साधु-संत इन षड्यंत्रों के खिलाफ आवाज उठाता है उनको मीडिया द्वारा बदनाम किया जाता है फिर झूठे केस बनाकर जेल भेजा जाता है, कईयों की हत्या कर दी जाती है इससे आहत होकर कवि ने एक कविता लिखी है जो हर हिंदुस्तानी को पढ़नी चाहिए।

बहुत बन चुके हो मूर्ख, अब और मूर्ख ना बन ए हिन्दू।
संत हैं तो संस्कृति है, संत हैं सनातन धर्म के केंद्र बिन्दु।।
जब-जब किसी संत ने हिन्दुत्व को विख्यात किया।
तब-तब षड़यंत्र कर उन संत पर प्रतिघात किया।।

ऐसी कितनी ही घटनाएँ, इतिहास में भरी पड़ी हैं।
अब तो सबक लो, आन पड़ी फैसले की घड़ी है।।
संदेह करो तुम संतों पर, यही चाहते हैं षड़यंत्रकारी।
मत करो संतों का अपमान, यह नहीं होगी समझदारी।।

महात्मा बुद्ध को जब हुआ आत्मज्ञान, धर्म का प्रचार किया।
स्थापना कर बौद्ध धर्म की, मानवता पर उपकार किया।।
आँख ना भाया जब षड़यंत्रकारियों को ये काम।
वेश्यागमन का इल्ज़ाम लगाकर करना चाहा उन्हें बदनाम।।

ब्रह्मज्ञानी संत कबीरदास, जिनकी रचनाएँ ज्ञान का सागर।
धन्य हो गई मानवता, उनके द्वारा ये ब्रह्मज्ञान पाकर।।
षड़यंत्रकारियों को कैसी भाती, हिन्दू धर्म की ये ऊँचाई।
लगाकर इन पर झूठे इल्ज़ाम, फिर धर्म को क्षति पहुँचाई।।

स्वामी विवेकानन्द ने 1893 में, हिन्दुत्व का डंका बजाया।
विश्व धर्म परिषद में, हिन्दू संस्कृति का परचम लहराया।।
देखकर उन पर अत्याचार प्रताड़ना, धरती माता भी हिली।
अपने गुरू की समाधि के लिए, इन्हें एक गज जगह नहीं मिली।।

1993 में संत आशाराम बापूजी ने, फिर इतिहास को दोहराया।
विश्व धर्म परिषद में, फिर हिन्दू संस्कृति का परचम लहराया।।
करोड़ों को आध्यात्मिक ज्ञान दिया, चलाए हजारों बालसंस्कार।
मानवता की निस्वार्थ सेवा की, किया गरीबों का उद्धार।।

धर्मांतरण का विरोध किया, जो ईसाई मिशनरियों को नहीं सुहाया।
तब रचा गहरा षड़यंत्र, उन पर बलात्कार का झूठा आरोप लगवाया।।
निस्वार्थ सेवा करने वाले, संत को भिजवा दिया जेल।
उम्रकैद की सजा दिलवा दी, रचा बहुत ही गहरा खेल।।

पूर्ण ब्रह्मज्ञानी संत है बापूजी, इनके साधक भी परम विवेकी।
कानून का कर रहे सम्मान, न्यायव्यवस्था की नहीं की अनदेखी।।
बापूजी तो जेल में भी कैदियों का पुनः उद्धार कर रहे।
बहाकर अपने ज्ञान की गंगा, जेल को हरिद्वार कर रहे। – कवि सुरेंद्र कुमार

कवि की बात सहीं है, सदियों से हिन्दू संस्कृति पर प्रहार हो रहा है और उसको रोकने के लिए जो भी साधु-संत आगे आये उनके ऊपर षड्यंत्र हुआ है, हम सभी को मिलकर उसका सामना करना चाहिए।

समाज व राष्ट्र में व्याप्त दोषों के मूल को देखा जाये तो सिवाय अज्ञान के उसका अन्य कोई कारण ही नहीं निकलेगा और अज्ञान तब तक बना ही रहता है जब तक कि किसी अनुभवनिष्ठ ज्ञानी महापुरुष का मार्गदर्शन लेकर लोग उसे सच्चाई से आचरण में नहीं उतारते।

समाज जब ऐसे किसी ज्ञानी संतपुरुष का शरण, सहारा लेने लगता है तब राष्ट्र, धर्म व संस्कृति को नष्ट करने के कुत्सित कार्यों में संलग्न असामाजिक तत्त्वों को अपने षड्यंत्रों का भंडाफोड़ हो जाने का एवं अपना अस्तित्व खतरे में पड़ने का भय होने लगता है, परिणामस्वरूप अपने कुकर्मों पर पर्दा डालने के लिए वे उस दीये को ही बुझाने के लिए नफरत, निन्दा, कुप्रचार, असत्य, अमर्यादित व अनर्गल आक्षेपों व टीका-टिप्पणियों की आँधियों को अपने हाथों में लेकर दौड़ पड़ते हैं, जो समाज में व्याप्त अज्ञानांधकार को नष्ट करने के लिए महापुरुषों द्वारा प्रज्जवलित हुआ था।

ये असामाजिक तत्त्व अपने विभिन्न षड्यंत्रों द्वारा संतों व महापुरुषों के भक्तों व सेवकों को भी गुमराह करने की कुचेष्टा करते हैं।

एक के बाद एक निर्दोष हिन्दू साधु-संतों को बदनाम किया जा रहा है क्योंकि राष्ट्रविरोधी ताकतों द्वारा हिन्दू धर्म खत्म करने के लिए हिन्दू संस्कृति के आधार स्तंभ हिन्दू संतों को टारगेट किया जा रहा है, हिन्दुस्तानी अब इस षड्यंत्र को समझो और उसका विरोध करो तभी हिन्दू संस्कृति बच पाएगी।

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