19 जुलाई 2021
azaadbharat.org
कुछ पुस्तकें पढ़ना कष्टकर होता है। डॉ. रिचर्ड बेंकिन की ‘ए क्वाइट केस ऑफ एथनिक क्लीन्सिन्ग: द मर्डर ऑफ बांग्लादेश’ज हिन्दूज’ (अक्षय प्रकाशन, नई दिल्ली) इतनी पीड़ादायक है कि इसे पढ़ने में कई बार प्रयास करना पड़ा। हर बार दो-चार पृष्ठ पढ़ते ही मन त्रस्त हो जाता। पुस्तक रख दी जाती। यह त्रास बाँट लेना ठीक है। संभवतः विवेकी वीर कुछ विचार/कर सकें!
इस पुस्तक के लेखक एक सामान्य अमेरिकी हैं, जो इसपर दुनिया का ध्यान आकृष्ट करने के लिए बीस वर्षों से संघर्ष कर रहे हैं। अपनी जान भी खतरे में डाली। वे बांग्लादेश सरकार, अमेरिकी प्रशासन, सीनेट आदि में भी इसपर सुनवाई कराने के प्रयत्न करते रहे हैं। उनकी पुस्तक प्रामाणिक शोध, विवरण और प्रत्यक्ष अनुभवों पर आधारित है। इसी क्रम में यह भारतीय बंगाल में भी हिन्दुओं की हालत बताती है।
बहुतों को जानकर हैरत होगी कि गत सौ सालों में पाकिस्तान-बांग्लादेश में हिन्दू-विनाश दुनिया में सबसे बड़ा है। यह अंतर्राष्ट्रीय जिहाद का अंग है, पर निःशब्द हो रहा है। हिन्दू आबादी में नाटकीय गिरावट इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। 1951 में पूर्वी बंगाल की आबादी में लगभग 33 % हिन्दू थे। जो 1971 तक 20 % रह गए। 2001 में वे 10 % बचे। आज उनकी संख्या 8 % रह गई है- ऐसा माना जाता है। इस लुप्त आबादी का एक-दो प्रतिशत ही बाहर गया। शेष मारे गए या जबरन मुसलमान बनाए गए। बांग्लादेश में हिन्दू-विनाश इस्लामी संगठनों, मुस्लिम पड़ोसियों, राजनीतिक दलों, और सरकारी नीतियों द्वारा भी हो रहा है।
वैश्विक स्तर पर इतनी बड़ी आबादी कहीं और साफ नहीं हुई! हिटलरी नाजीवाद ने लगभग 60 लाख यहूदियों का सफाया किया, जबकि पूर्वी बंगाल/ बांग्लादेश में 1951-2008 के बीच लगभग 4.9 करोड़ हिन्दू ‘लुप्त हो गए’। न्यूयॉर्क स्टेट यूनिवर्सिटी के प्रो. सची दस्तीदार ने यह संख्या दी है। पर दुनिया इसपर संवेदनहीन-सी रही। इसका मुख्य कारण भारत की चुप्पी है, जो सबसे निकट प्रभावित देश है। वरना बोस्निया, रवांडा, या डारफूर में इससे सैकड़ों गुना कम लोगों के संहार पर पूरी दुनिया की मीडिया, संयुक्त राष्ट्र, और बड़ी-बड़ी हस्तियों की चिन्ता वर्षों तक व्यापक बनी रही।
कितना लज्जाजनक है कि भारतीय नेता, दल, मीडिया, अकादमिक जगत, सभी इसपर चुप रहते हैं! बांग्लादेश में निरंतर और बीच-बीच में हिन्दू-संहार के बड़े दौर (1971, 1989, 1993) चलने पर भी यहाँ राजनीतिक-बौद्धिक वर्ग ठस बना रहा। न्यूयॉर्क टाइम्स के प्रसिद्ध पत्रकार सिडनी शॉनबर्ग की प्रत्यक्ष रिपोर्टिंग के अनुसार केवल 1971 में 20 लाख से अधिक हिन्दुओं के मारे जाने का अनुमान है। पाकिस्तानी दमन से मुक्त होकर बांग्लादेश बनने के बाद भी हिन्दुओं की रक्षा सुनिश्चित करने के लिए कुछ नहीं किया गया। नये शासकों ने भी इस्लामी एकाधिकार बनाकर हिन्दुओं को पीड़ित, वंचित किया।
वहाँ 1974 में ‘भेस्टेड प्रॉपर्टी एक्ट’ बना। इसके अनुसार, जो हिन्दू बांग्लादेश से चले गए या जिन्हें सरकार ने शत्रु घोषित कर दिया, उनकी जमीन सरकार लेकर मुसलमानों को दे देगी। इसका परिणाम यह भी हुआ कि किसी हिन्दू को मार-भगा, या शत्रुवत कहकर, उसके परिवार की संपत्ति छीन कर किसी मुसलमान को दे दी गई (पृ. 66-68)। ढाका विश्वविद्यालय के प्रो. अब्दुल बरकत की पुस्तक ‘इन्क्वायरी इन्टू कॉजेज एंड कन्सीक्वेन्सेज ऑफ डिप्राइवेशन ऑफ हिन्दू माइनॉरिटीज इन बांग्लादेश थ्रू द भेस्टेड प्रॉपर्टी एक्ट’ में भी इसके विवरण हैं। इस कानून से तमाम राजनीतिक दलों के नेताओं, कार्यकर्ताओं ने हिन्दुओं की संपत्ति हड़पी। गत चार दशकों में यह हड़पी गई संपत्ति लाखों एकड़ में है!
1988 में संविधान संशोधन द्वारा इस्लाम बांग्लादेश का ‘राजकीय मजहब’ बन गया। तबसे हिन्दुओं की स्थिति कानूनन भी नीची हो गई। उनके विरुद्ध हिंसा, बलात्कार, जबरन धर्मांतरण, संपत्ति छीनने, आदि घटनाएं और तेज हुईं। हिन्दू लड़कियों, स्त्रियों को निशाना बनाकर, आतंक द्वारा हिन्दुओं की संपत्ति पर कब्जा या धर्मांतरित कराना एक विशेष टेकनीक की तरह जमकर इस्तेमाल हुआ। तसलीमा नसरीन ने अपनी पुस्तक ‘लज्जा’ में इसी का प्रामाणिक चित्रण किया, जिससे उनपर मौत का फतवा भी आया।
निःशब्द और क्रमशः होने के कारण भी यह हिन्दू-विनाश दुनिया के लिए अनजान सा रहा है। जबकि वह बांग्लादेश से छिलक कर भारत में घुस चुका। वहाँ से जो हिन्दू भाग आए, वे पश्चिम बंगाल में भी 1977 ई. से ही उत्पीड़न का शिकार होते रहे हैं। डॉ. बेंकिन ने कई जगह जाकर यह देखा। इस्लामियों-कम्युनिस्टों की साँठ-गाँठ से हिन्दू शरणार्थियों की पुरानी बस्ती पर कब्जा कर, उन्हें पुनः भगा दिया जाता। मनचाही चीज छीनने के लिए बच्चों, लड़कियों के अपहरण की तकनीक यहाँ भी चालू है। सम्मिलित हिन्दू-मुस्लिम आबादी वाले कई गाँव धीरे-धीरे पूरी तरह मुस्लिम में बदल गए। वहाँ के लावारिस मंदिर इसका संकेत करते हैं। डॉ. बेंकिन के हिन्दू शरणार्थियों से कहीं मिलने जाने पर (2008 ई.) माकपा कार्यकर्ता वहाँ पहुँचकर लोगों को धमकाते कि कुछ न कहें। फिर भी यदि कोई बोलता तो वे बाधा देते या विवाद करने लगते।
डॉ. बेंकिन ने इसकी कल्पना भी नहीं की थी! उन्होंने समझा था कि बांग्लादेशी हिन्दू शरणार्थियों की दुर्दशा जानने, उसे दुनिया तक पहुँचाने में उन्हें भारत से सहयोग मिलेगा। आखिर भारत दुनिया का अकेला प्रमुख हिन्दू देश है। अतः पड़ोस में हिन्दू-संहार रोकने और शरणार्थियों का आना बंद करने की उसे चिन्ता होगी। किन्तु उन्हें उलटा अनुभव हुआ। पश्चिम बंगाल के कम्युनिस्ट सत्ताधारियों से कार्यकर्ताओं को निर्देश मिला हुआ था कि वे डॉ. बेंकिन को शरणार्थियों की आप-बीतियाँ न जानने दें। वे क्या छिपाना चाहते थे?
भारत के गैर-कम्युनिस्ट दल और प्रभावशाली लोग भी बांग्लादेशी हिन्दुओं के प्रति उदासीन हैं। जबकि उन्हें मालूम है कि वहाँ हिन्दुओं का अस्तित्व खतरे में है। भारत की उदासीनता से ही यूरोपीय, अमेरिकी सरकारें, अंतरर्राष्ट्रीय एजेंसियाँ भी इसे महत्व नहीं देतीं।
हालाँकि, यह भी ऐतिहासिक अनुभव है कि अत्यंत भयावह नरसंहारों की खबरों पर शुरू में विश्वास ही नहीं किया जाता! रूस में स्तालिन और जर्मनी में हिटलर द्वारा नरसंहारों पर वर्षों यही स्थिति रही थी। तबतक समूह-हत्यारे काफी कुछ कर गुजरते हैं। इस बीच वामपंथी, सेक्युलर, मल्टीकल्चरल बुद्धिजीवी भ्रामक प्रचार भी करते हैं। बांग्लादेश में हिन्दू-संहार पर यह दोनों बातें दशकों बाद भी जारी हैं, जो एक विश्व-रिकॉर्ड है! ऐसी स्थिति में डॉ. बेंकिन का संघर्ष अत्यंत मूल्यवान है।
कुछ लोग नाजीवाद के हाथों यहूदियों और जिहाद के हाथों हिन्दुओं के संहार की तुलना को बढ़ाना-चढ़ाना मानते हैं। पर डॉ. बेंकिन के शब्दों में, “1930 के दशक के यहूदियों और 1950 के दशक से बांग्लादेश [और कश्मीर भी] के हिन्दुओं की तुलना करने पर सारे संकेत, प्रमाण पहचानना सत्यनिष्ठा की माँग करता है। साहस की भी, क्योंकि सच्चाई समझ लेने पर कुछ करने का कर्तव्य बनता है। चाहे वह नेता हों, या बौद्धिक, या मीडिया।”
वस्तुतः बंगाल के दोनों भाग में हिन्दू क्रमशः मरते, घटते जा रहे हैं। इसका कारण बहुमुखी जिहाद है। बांग्लादेश में हिन्दुओं की समाप्ति के बाद यहाँ बंगाल में वही होगा, जो कश्मीर में हो चुका। उसी प्रकिया से, जिसे नेता, मीडिया और बुद्धिजीवी देखना नहीं चाहते या अनदेखा करते हैं। बांग्लादेशी हिन्दुओं पर उनकी चुप्पी ने ही इस संहार को जारी रखा। किन्तु वहाँ पूरा हो जाने पर सबकी बारी आएगी। स्तालिन, हिटलर, और जिहाद – तीनों की खुली घोषणाएं और वैश्विक लक्ष्य तुलनीय हैं।
डॉ. बेंकिन के अनुसार, बांग्लादेश में इस्लामी और सरकारी लोग इस विश्वास से चलाते हैं कि उन्हें कोई रोकने-टोकने वाला नहीं। क्योंकि किसी भी हस्तक्षेप से वे रक्षात्मक हो जाते हैं। अर्थात् यदि दुनिया चिन्ता करती, या अभी भी करे, तो स्थिति सुधर सकती है। बांग्लादेश कई मामलों में बाहरी सहायता पर निर्भर है। अतः वह एक न्यायोचित मुद्दे पर वैश्विक दबाव झेलने की स्थिति में नहीं है। इसके बावजूद बांग्लादेश के हिन्दुओं का क्रमशः संहार जारी रहना अत्यंत सोचनीय है। – डॉ. शंकर शरण (११ मई २०२१)
Official Links:
Follow on Telegram: https://t.me/ojasvihindustan
facebook.com/ojaswihindustan
youtube.com/AzaadBharatOrg
twitter.com/AzaadBharatOrg
.instagram.com/AzaadBharatOrg
Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ