12 August 2018
स्वतंत्र भारत में अबतक लाखों-करोड़ों के घोटाले हो चुके हैं, आज आम व्यक्ति किसी काम के लिए कोई सरकारी ऑफिस में चला जाए तो अधिकतर जगहों पर कुछ न कुछ तो रिश्वत देनी ही पड़ती है, तभी काम होता है | नेताओं से लेकर चपरासी तक सभी जगह भ्रष्टाचार व्याप्त है | इसकी वजह से आज भी हजरों करोड़ो का घोटाले होते रहते है । सरकार आम जनता, किसानों या छात्रों के लिए जो बजट सहायता के लिए भेजती है, उसे ऊपर से लेकर नीचे तक सभी मिलकर हड़प लेते हैं, जिसके नाम से भेजा गया है उसको तो मिलता ही नहीं है ।
अभी हाल ही में देश में अनुसूचित जाति के छात्रों की पोस्ट-मैट्रिक स्कॉलरशिप के नाम पर बड़े घोटाले का खुलासा हुआ है । उतर प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब, तमिलनाडु और कर्नाटक में कैग की ऑडिट के दौरान इस खेल का खुलासा हुआ । पिछले पांच सालों में आंख मूंदकर इन राज्यों में, 18 हजार करोड़ रुपये से अधिक की छात्रवृत्ति बंटी | न नियमों का ख्याल किया गया, न उपभोग प्रमाणपत्र लिए गए, न ही किसी तरह की जांच हुई | चौंकानेवाली बात तो यह रही कि एक ही रोल नंबर, एक ही जाति प्रमाणपत्र पर हजारों छात्रों को धनराशि जारी कर दी गई | इससे सिस्टम में शिक्षा माफिया से लेकर अफसरों की भूमिका पर बड़े सवाल खड़े होते हैं | 187581 छात्रों के खाते में तो निर्धारित से 4967.19 लाख रुपए ज्यादा भेज दिए गए |
केवल नमूना जांच में इतनी गड़बड़ियां सामने आई हैं, बताया जा रहा है कि अगर ओ.बी.सी. से लेकर जनरल आदि वर्गों की सभी छात्रवृत्ति वितरण की जांच हो तो यह देश के बड़े घोटालों में से एक होगा | वर्ष 2018 की रिपोर्ट नंबर 12 में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने देश में दलित छात्रों की छात्रवृत्ति लूट की पोल खोलकर रख दी है | कैग ने सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय से वित्तीय अनियमितताओं की जांच कराकर दोषी अफसरों पर कार्यवाही की संस्तुति की है। साथ ही छात्रवृत्ति वितरण की मौजूदा व्यवस्था बदलकर फुलप्रूफ व्यवस्था लागू करने की सिफारिश भी की है। दरअसल पोस्टमैट्रिक स्कॉलरशिप को दशमोत्तर छात्रवृति कहते हैं, जो दसवीं से ऊपर की कक्षाओं के छात्रों को मिलती है ।
खेल ऐसा कि चौंक जाएंगे आप : कैग ने 2012 से लेकर 2017 तक की ऑडिट के दौरान केवल उत्तर-प्रदेश में कुल 1.76 लाख ऐसे मामले पकड़े गए, जिसमें एक ही क्रमांक के जाति प्रमाणपत्र पर 233.55 करोड़ रुपए बांटने का खुलासा हुआ । इसी तरह 34652 केस ऐसे मिले, जिसमें अभ्यार्थियों के आवेदन में एक ही क्रमांक यानी सेम हाईस्कूल की सर्टिफिकेट लगी रही । ऐसे आवेदनों पर 59.79 करोड़ रु जारी हुए | इसी तरह 13303 ऐसे मामले रहे, जिसमें एक ही बोर्ड रोल नंबर और एक ही जाति प्रमाण पत्र से 27.48 करोड़ का खेल हुआ |
हैरानी की बात यह रही कि ऑनलाइन साफ्टवेयर ने जब यह खेल पकड़ा तो भी संदिग्ध डेटा को विभागीय जिम्मेदारों ने करेक्ट कर दिया | यानी इन गड़बड़ियों को दुरुस्त कर खाते में धनराशि भेज दी । दरअसल ऐसी दो या तीन बार आवेदन कर कोई पैसा न हासिल कर ले या फिर एक ही प्रमाणपत्र पर कई छात्रों को छात्रवृत्ति न मिले, इसके लिए सक्षम पोर्टल पर अभ्यार्थियों का डेटा अपलोड होता है । यह पोर्टल एक ही सीरियल नंबर के दो या दो से अधिक सर्टिफिकेट मिलने पर संबंधित आवेदन को इनकरेक्ट श्रेणी में डाल देता है । मगर जिम्मेदारों ने इस इनकरेक्ट डेटा को करेक्ट कर फ्रॉड किया | इससे इस छात्रवृत्ति वितरण घोटाले में कॉलेज से लेकर ऊपरी स्तर तक मिलीभगत के संकेत मिलते हैं |
कैग ने जांच में पाया कि 2016-17 के 1566 छात्रों के डेटा को करेक्ट कर दिया गया । जबकि सक्षम पोर्टल ने एक ही प्रमाणपत्र, रोल नंबर के चलते इन छात्रों को फेल कर दिया था । उत्तर प्रदेश में 57 मामले पकड़े गए, जहां ज्यादा इनकमवाले सर्टिफिकेट पर भी धनराशि जारी कर दी गई | जबकि दो लाख से ज्यादा सालाना वार्षिक आय होने पर लाभ नहीं मिलना था । पांच राज्यों में 187581 छात्रों को 4967.19 लाख रुपए का अधिक भुगतान हुआ | बी.ए., बी.एस.सी., बी.कॉम. जैसे कोर्स के लिए अधिकतम फीस 5000 रुपए निर्धारित थी, मगर इससे ज्यादा पैसा लुटाया गया |
कैग ने की इतने जिलों की नमूना जांच : देश की सबसे बड़ी ऑडिट एजेंसी ने उत्तर प्रदेश के 75 में से केवल दस जिलों के सौ कॉलेजों की जांच कर ही बड़ी गड़बड़ी पकड़ी | इसी तरह कर्नाटक के 30 में से आठ, महाराष्ट्र के 36 में से नौ, पंजाब के 22 में से छह, तमिलनाडु के 32 में से आठ जिलों के कुल 12900 में से 410 संस्थानों को जांच में शामिल किया । इन संस्थानों में रजिस्टर्ड 337700 में से 8200 अभ्यार्थियों के आवेदनों की जांच की गई, तब जाकर भारी पैमाने पर घोटाले का खुलासा हुआ | उतर प्रदेश के कॉलेजों में नमूना जांच सत्र 2016-17 में हुई । उतर प्रदेश में छात्रृवत्ति घोटाले की कई बार शिकायतें कर चुके पूर्वांचल विश्वविद्यालय से जुडे शिक्षक नेता अनुराग मिश्रा कहते हैं – यह तो नमूना है, अगर उतर प्रदेश में शुरुआत से लेकर अब तक सभी वर्गों की छात्रवृत्ति वितरण की जांच हो तो केवल एन.आर.एच.एम. घोटाले से कई गुना बडा घोटाला निकलेगा | अनुराग कई बार उतर प्रदेश सरकार को जांच के लिए पत्र लिखते रहे, मगर जांचपत्र कूड़ेदान में फेंक दी जाती रही |
कैग ने कैसी-कैसी गडबडियां पकड़ीं : कैग ने जांच के दौरान पाया कि छात्रवृत्ति को लेकर उत्तरदायी सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग ने कोई एक्शन प्लान ही नहीं बनाया | न ही मंत्रालय ने ऐसा कोई सर्कुलर जारी किया, जिससे 2012-17 तक की अवधि में छात्रवृत्ति के लिए, छात्रों की पात्रता का समुचित मूल्यांकन हो सके । योग्य छात्रों का डेटाबेस ही नहीं उपलब्ध मिला । जांच में पता चला कि छात्रवृत्ति वितरण में 1986 में गठित कमेटी की संस्तुतियों के अनुसार टाइमलाइन का भी पालन नहीं हुआ | अखबारों में हर साल छात्रवृत्ति के बारे में सूचना भी नहीं प्रचारित हुई |
कैग ने कहा है कि, अनुसूचित छात्रों को छात्रवृत्ति देने का मकसद था कि वे बिना किसी आर्थिक बाधा के उच्च शिक्षा हासिल कर सकें | मगर पांचों राज्य आंकडा ही नहीं उपलब्ध करा सके कि कितने छात्रों ने छात्रवृत्ति के जरिए अपना कोर्स कंप्लीट किया । मॉनीटरिंग फ्रेमवर्क का अभाव रहा । कैग की ऑडिट में पता चला कि केंद्र और राज्यांश मिलाकर उतर प्रदेश में कुल 1580 करोड़ की धनराशि उपलब्ध रही, मगर इसमें से 7332.72 करोड़ रुपए की छात्रवृत्ति ही बंटी | इतना ही नहीं उतर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु में 375.30 करोड़ रुपए बैंक खाते या नाम के मिसमैच करने से बंट नहीं सका |
उपभोग प्रमाणपत्र ही नहीं दिए – नियम के अनुसार किसी योजना के तहत मिली धनराशि का कितना इस्तेमाल हुआ इसका उपभोग प्रमाणपत्र संबंधित संस्थाओं को धनराशि जारी करनेवाले विभाग या मंत्रालय को देना पड़ता है । मगर नमूना जांच में शामिल राज्यों में पैसे का उपभोग प्रमाणपत्र भी नहीं दिया गया । इससे बड़े पैमाने पर धनराशि के दुरुपयोग का अंदेशा होता है | महाराष्ट्र में जांच के दौरान पता चला कि नौ में से छह जिलों के समाज कल्याण आयुक्त ने संस्थाओं से न उपभोग प्रमाणपत्र मांगा और न ही दिया । तमिलनाडु में 2012-13 और 2013-14 के दौरान क्रमशः 377.49 और 899.49 करोड़ की धनराशि का समय से उपभोग प्रमाणपत्र नहीं जमा मिला ।
स्त्रोत : जनसत्ता
भ्रष्टाचार को लेकर लोगों में फैले आक्रोश के कारण बीते चार सालों में #केंद्र और #दिल्लींसरकार बदल गई, लेकिन #सरकारीक्षेत्रों में अभी भी #भ्रष्टाचार खत्म नहीं हो पाया है । सरकारी महकमों में भ्रष्टाचार की जड़ कितनी गहरी फैली हुई है इसका पता केंद्रीय सतर्कता आयोग (#सीवीसी) द्वारा प्राप्त रिपोर्ट से स्पष्ट हो जाता है । #देशभर में भ्रष्टाचार से जुड़ी शिकायतों में भारी वृद्धि हुई है । केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) की वार्षिक रिपोर्ट में साल 2014 में भ्रष्टाचार से जुड़ी 64,490 शिकायतें आने की बात कही गई है। #संसद में हाल ही में पेश रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2013 की तुलना में 2014 में भ्रष्टाचार की शिकायतों में 82.29 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई । वर्ष 2013 में ऐसी 35,332 शिकायतें मिली थीं ।
भ्रष्टाचार से तंग जनता ने भले ही #सरकार बदल दी हो, लेकिन हालात नहीं बदले हैं । #दुनियाभर में #विशेषज्ञों की राय के आधार पर #ट्रांसपेरेंसीइंटरनेशनल की करप्श न #परसेप्शरन्सभइंडेक्सर (#सीपीआई) में देशों के सरकारी विभागों में व्याप्त भ्रष्टाचार का अनुमान लगाया जाता है । #सीपीआई द्वारा 2015 में जारी रिपोर्ट के अनुसार 168 देशों की सूची में #भारत का स्थान 76वाँ है ।
निजी या #सार्वजनिक #जीवन के किसी भी स्थापित और स्वीकार्य मानक का चोरी-छिपे उल्लंघन भ्रष्टाचार है । भारत में राजनीतिक एवं नौकरशाही का भ्रष्टाचार बहुत ही व्यापक है । इसके अलावा #न्यायपालिका, #मीडिया, #सेना, #पुलिस आदि में भी #भ्रष्टाचार व्याप्त है ।
सभी को मिलकर इस भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़ा होना होगा नहीं तो ये लोग तो देश को भी अपने स्वार्थ के लिए बेच सकते है ।
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