1 August 2024
साल 1999 में ओडिशा के मनोहरपुर में स्थानीय लोगों को ईसाईयत में धर्मान्तरण कराने के आरोप में ऑस्ट्रेलियाई पादरी ग्राहम स्टेंस की हत्या उनकी 2 बेटों के साथ कर दी गई थी। इस मामले में दारा सिंह का नाम चर्चा में आया था। साल 2000 में ओडिशा की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने दारा सिंह को गिरफ्तार कर लिया था। इसके बाद से दारा सिंह को एक दिन का भी परोल नहीं मिला है।
दारा सिंह की गिरफ्तारी के 24 साल गुजर गए है। इन 24 वर्षों में दारा सिंह के परिवार में कई बदलाव हुए है। परिवार कई बार ख़ुशी और गम के मौकों से गुजरा है। इन सभी अवसरों पर तमाम प्रयासों के बावजूद दारा सिंह को परोल नहीं मिला। ऑपइंडिया ने दारा सिंह के परिवार से मुलाकात करके इस मामले की शुरुआत से अब तक के हालातों की जानकारी जुटाई है।
ओडिशा में दारा सिंह ने क्योंझर जिले में प्राइवेट तौर पर बच्चों को पढ़ाने की नौकरी कर ली। वे बच्चों को हिंदी भाषा पढ़ाते थे और साथ ही उन्हें हिन्दू धर्म की अच्छी अच्छी बातें बताते थे। यहाँ बताना जरूरी है कि दारा सिंह का असली नाम रवींद्र कुमार पाल है और वे मूलत: उत्तर प्रदेश के औरैया के रहनेवाले थे। हालाँकि, अब उन्होंने ओडिशा को अपनी कर्मभूमि बना लिया था।
वो स्कूल से समय मिलने के बाद जनजातीय समुदाय की बस्तियों में घूमने लगे और उन्हें हिन्दू धर्म के बारे में जागरूक करने लगे।
जब दारा सिंह ने बजरंग दल पदाधिकारी के तौर पर कार्यभार सँभाला तब ओडिशा ईसाई धर्मान्तरण से बुरी तरह से प्रभावित था। उनका कहना है कि गाँव के गाँव कन्वर्ट हो रहे थे। कन्वर्जन के इस रैकेट का मुखिया ग्राहम स्टेंस को माना जा रहा था। ग्राहम स्टेंस ऑस्ट्रेलिया का रहने वाला एक पादरी था।
बताते है कि ग्राहम स्टेंस 25 साल पहले लोगों को प्रभावित करने के लिए खूब पैसे उड़ाता है। वह उस समय वैसे ही जीप में चला करता था, जिस तरह की गाड़ी में उस समय सांसद-विधायक चला करते थे। बकौल अरविन्द, उनके भाई ने धर्मान्तरण के खिलाफ लोगों को जागरूक करना शुरू कर दिया। इसी वजह से वो कई साजिशकर्ताओं के निशाने पर भी आ चुके थे।
दारा सिंह के भाई अरविन्द कुमार बताते है कि क्योंझर के साथ कटक व एक अन्य जेल में दारा सिंह की अदला-बदली की गई। कटक जेल में दारा सिंह पर विवाद की एक FIR अलग से भी दर्ज की गई थी। पिछले 24 वर्षों में उनके पिता, माँ और फिर एक बहन की अकाल मौत हो गई। ये सभी दारा सिंह के लिए हमेशा परेशान रहते थे।
इन सभी की इच्छा मौत से पहले एक बार दारा सिंह से मिलने की थी। हालाँकि, इन सभी की इच्छा अधूरी ही रह गई। दारा सिंह ने अपने पिता, माता और बहन आदि की मौत के बाद पेरोल की अर्जी डाली पर उनको जेल से बाहर नहीं निकलने दिया गया। किसी न किसी स्तर पर दारा सिंह की अर्जी पर अड़ंगा डाला गया।
अरविंद कुमार का कहना है कि उनके परिवार को अभी भी उम्मीद है कि दारा सिंह अपने जीवन के अंतिम समय को अपने घर और परिवार के साथ ही बिताएँगे। फिलहाल, अगस्त2024 में दारा सिंह की रिहाई वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है।
दारा सिंह जैसा ही मामला आशाराम बापू का है।
हिन्दू संत आशाराम बापू ने देशभर के आदिवासी क्षेत्रों में जाकर उनको अनाज, पैसे, जीवन उपयोगी सामग्री, मकान बनाकर दिए और सनातन हिन्दू धर्म की महिमा समझाई, लाखों हिंदुओं की घर वापसी करवाई, करोड़ों लोगों को सनातन धर्म के प्रति जागरूक किया, इस कारण से मिशनरियों की दुकान बंद होने लगी उसके बाद विदेशी कंपनियों, ईसाई मिशनरियों और स्वार्थी नेताओं ने मिलकर उनको एक षड्यंत्र के तहत बिकाऊ मीडिया द्वारा बदनाम करवाया और फर्जी केस बनाकर 2013 में जेल भिजवाया गया।आज 88 वर्ष की उम्र है,12 साल में 1 बार भी जमानत नहीं मिली, सोचो कितनी बड़ी साजिश रची है?
क्या समाज, राष्ट्र और संस्कृती की सेवा करना गुनाह है?
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