पुंगनूर गाय: छोटी कद-काठी, लेकिन गुणों में सबसे बड़ी देसी नस्ल

16 May 2025

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पुंगनूर गाय : छोटी कद-काठी, लेकिन गुणों में सबसे बड़ी देसी नस्ल

एक चमत्कारी भारतीय गाय नस्ल जो वेद, विज्ञान और संस्कृति – तीनों में पूजनीय मानी जाती है।

भारत भूमि ऋषि-मुनियों, साधु-संतों, और परमपावन गोधन की जननी रही है। यहां की गोवंश परंपरा में अनेक देसी गाय नस्लें रही हैं, जिनमें से एक अत्यंत दुर्लभ, दिव्य और उपयोगी नस्ल है — पुंगनूर गाय। यह गाय न केवल अपने छोटे कद की वजह से जानी जाती है, बल्कि इसके दूध, स्वभाव, आयुर्वेदिक लाभ, धार्मिक महत्व और वैज्ञानिक विशेषताओं के कारण भी यह गाय अद्वितीय है।

उत्पत्ति: पुंगनूर गांव से जुड़ी एक विरासत

इस गाय का नाम इसके जन्मस्थान, पुंगनूर (आंध्र प्रदेश के चित्तूर ज़िले में स्थित एक छोटा-सा गाँव) पर रखा गया है। यह नस्ल दक्षिण भारत के शुष्क क्षेत्रों में सीमित संसाधनों में भी जीवन जीने की क्षमता रखती है। यह एक विशेष देसी नस्ल है, जो भारतीय परंपरा और प्रकृति के साथ संतुलन का अद्भुत उदाहरण है।

आकार में छोटी, लेकिन गुणों में महान

  • पुंगनूर गाय की ऊँचाई केवल 70 से 90 सेंटीमीटर तक होती है।
  • इसका वजन औसतन 115 से 200 किलोग्राम के बीच होता है।
  • यह बौनी गाय (Dwarf Cattle) की श्रेणी में आती है, लेकिन स्वास्थ्यवर्धक गुणों में बड़ी-बड़ी विदेशी नस्लों से कहीं अधिक श्रेष्ठ मानी जाती है।
  • छोटा आकार होने के कारण यह गाय कम स्थान, कम चारा और कम देखभाल में भी पाली जा सकती है।

शास्त्रों में गाय की महिमा

वेदों में गाय को ‘अघ्न्या’ कहा गया है, जिसका अर्थ है – “जिसे मारा नहीं जाना चाहिए”। पुराणों और शास्त्रों में गाय को ‘सर्वदेवमयी’ कहा गया है यानी सभी देवताओं का निवास इसमें माना गया है।

पुंगनूर जैसी देसी गायें न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से पवित्र मानी जाती हैं, बल्कि इनके पंचगव्य (दूध, दही, घी, गोमूत्र, गोबर) का भी विशेष उपयोग होता है — विशेष रूप से आयुर्वेदिक चिकित्सा में।

विज्ञान और चिकित्सा के दृष्टिकोण से अद्भुत

  • पुंगनूर गाय के दूध में A2 β-casein प्रोटीन पाया जाता है, जो मानव स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी है।
  • A2 दूध हृदय, मस्तिष्क और पाचन के लिए विज्ञान द्वारा प्रमाणित रूप से लाभकारी माना जाता है।
  • इसका दूध डायबिटीज, कैंसर और ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियों में उपयोगी बताया गया है।
  • यह गाय 1.5 से 3 लीटर तक दूध देती है — कम मात्रा, लेकिन गुणवत्ता में श्रेष्ठ

धार्मिक प्रतिष्ठान और पुंगनूर गाय

प्रसिद्ध तिरुपति बालाजी मंदिर जैसे धार्मिक स्थलों में पुंगनूर गायों का संरक्षण और सेवा विशेष रूप से होती है। इन्हें वहाँ पवित्र गोवंश मानकर पूजनीय स्थान प्रदान किया गया है।

कई संत-महात्मा, विशेष रूप से Sant Shri Asharamji Bapu, देसी गायों के संरक्षण और उपयोग को समाजहित और आध्यात्मिक जीवन के लिए आवश्यक मानते हैं।

आयुर्वेद और पंचगव्य चिकित्सा

  • पुंगनूर गाय के दूध, घी, गोमूत्र और गोबर से बनी औषधियाँ कई बीमारियों में प्रयोग की जाती हैं।
  • पंचगव्य (दूध, दही, घी, मूत्र, गोबर) का प्रयोग कैंसर, मधुमेह, त्वचा रोग, अस्थमा जैसी बीमारियों के इलाज में किया जाता है।
  • इनका उपयोग यज्ञ, संस्कार, पूजा-पाठ और आध्यात्मिक साधना में अनिवार्य माना गया है।

⚠️ विलुप्ति की कगार से वापसी तक का सफर

बीते कुछ दशकों में पुंगनूर गाय की संख्या तेजी से घटी और यह विलुप्तप्राय (Endangered) श्रेणी में आ गई थी।

लेकिन आज राष्ट्रीय गोकुल मिशन, आंध्र प्रदेश पशुपालन विभाग, और कई निजी संस्थाएं इसके संरक्षण में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं। अब इस नस्ल को दोबारा बढ़ाने के लिए Artificial Insemination, Embryo Transfer जैसी तकनीकों का प्रयोग किया जा रहा है।

पुंगनूर गाय से समाज को प्रेरणा

पुंगनूर गाय हमें एक अद्वितीय संदेश देती है — “महानता आकार में नहीं, गुणों में होती है।” यह गाय भारतीय समाज के लिए न केवल उपयोगी है, बल्कि यह सांस्कृतिक आत्मनिर्भरता, आयुर्वेदिक चिकित्सा और आध्यात्मिक उन्नति की प्रतीक भी है।

निष्कर्ष

पुंगनूर गाय एक अनमोल धरोहर है जो भारत की विज्ञान, संस्कृति, और आध्यात्मिक परंपरा को जोड़ती है। इसका संरक्षण केवल कृषि या पशुपालन का कार्य नहीं है, बल्कि यह राष्ट्र निर्माण, आरोग्य, और आत्मिक उन्नति</strong का आधार है।

आइए, इस अद्भुत गोमाता की रक्षा और प्रचार में सहयोग करें।