प्राचीन भारत में वास्तविक वैज्ञानिक ऋषि मुनि ही थे….

प्राचीन भारत में वास्तविक वैज्ञानिक ऋषि मुनि ही थे…… 

 26 June 2024 
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क्या आपने कभी नोटिस किया है❓ हजार वर्ष पूर्व और हजार वर्ष बाद कौन सी तारीख को कितने बजे से कितने बजे तक (घड़ी, पल, विपल) कैसा सूर्यग्रहण या चन्द्र ग्रहण लगेगा या लगा होगा, यह हमारा ज्योतिष विज्ञान बिना किसी अरबों खरबों का संयत्र उपयोग में लाये हुए बता देता है।

 

इसका अर्थ यह है कि हमारे ऋषि मुनियों, वेदज्ञ, सनातन धर्म में पहले से यह पता था कि चन्द्रमा, पृथ्वी, सूर्य इत्यादि का व्यास (Diameter) क्या है ? उनकी घूर्णन गति क्या है ?? ( Velocity ऑफ़ Rotation ) क्या है ? उनकी revolution velocity और time क्या है ?
पृथ्वी से सूर्य की दूरी, सूर्य से चन्द्र की दूरी , चन्द्र की पृथ्वी से दूरी कितनी है ?

इन सबका specific gravity, velocity, magnitude, circumference, diameter, radius, specific velocity, gravitational energy, pull कितना है❓

इतनी सटीक गणना होती है कि एक बार NASA के scientist ग़लती कर सकते हैं seconds की लेकिन ज्योतिष विज्ञान नही।

वो तो बस हम लोगों को हमारे ऋषि मुनियों ने juice निकाल कर दे दिया है कि पियो, छिलके से मतलब मत रखो।
बस एक formula तैयार करके दे दिया है जिसमें ज्योतिषी बस values डालते हैं और उत्तर सामने होता है।

अब स्वयं सोचिये, science के विद्यार्थी भी सोचें कि दो planets के बीच कि दूरी नापने के लिए जो parallax या pythagorus theorem का use होता है, इसका मतलब वह पहले से ही ज्ञात था और हम लोग KEPLERS ( A western scientist ) को इन सबका दाता मानते हैं।

तो ऐसे ही गुरुत्वाकर्षण के सारे नियम भी हमें पहले से ही पता होंगे तभी तो हम पृथ्वी , सूर्य, चन्द्रमा इत्यादि के अवयवों को जान पाए।

अरे चन्द्रमा ही क्या कोई भी ग्रह नक्षत्र ले लीजिये, सबमें आपको proved science मिलेगी।

शनि ग्रह के बारे में बात करते हैं। शनि की साढ़े साती सबको पता होगी और अढैय्या भी, यह क्या है ? कभी अन्दर तक खोज करने की कोशिश की ?
नहीं ! क्योंकि हम इन सबको बकवास मानते हैं। चलिए मैं ले चलता हूँ अन्दर तक…

According to NASA , Modern science, शनि ग्रह ( Saturn ) सूर्य का चक्कर लगाने में लगभग १०,७५९ दिन, ५ घंटे, १६ मिनट, ३२.२ सैकण्ड लगाता है।

यही हमारे शास्त्रों में ( सूर्य सिद्धांत और सिद्धांत शिरोमणि ) में यह है १०,७६५ दिन, १८ घंटे, ३३ मिनट, १३.६ सैकण्ड और १०,७६५ दिन, १९ घंटे, ३३ मिनट, ५६.५ सैकण्ड ।
मतलब 29.5 Years का समय लेता है यह सूर्य के चक्कर लगाने में, अगर पृथ्वी के अपेक्षाकृत देखा जाय तो यह साढ़े सात वर्ष लेता है पृथ्वी के पास से गुजरने में, और ऐसे कई बार होता है जब पृथ्वी के revolution orbit से शनि ग्रह का orbit आसपास होता है क्योंकि यह ग्रह बहुत धीरे अपना revolution पूरा करता है और वहीं पृथ्वी उसकी अपेक्षाकृत बहुत तेजी से सूर्य का चक्कर काटती है।

शनि के सात वलय ( Rings ) होते हैं जो एक एक कर अपना प्रभाव दिखाते हैं ! 15 चन्द्रमा हैं इस ग्रह के, जिसका प्रभाव 2.5 + 2.5 + 2.5 = 7.5 के अन्तराल पर अपना प्रभाव पृथ्वी के रहने वाले जीवों पर दिखाते हैं।

अब दिमाग लगाईये कि बिना किसी astronomical apparatus या संयंत्र के उन्होंने यह सब कैसे खोजा होगा ?

हम नहीं जानते तो इसीलिए इस प्राचीन विद्या को बेकार, फ़ालतू बकवास बता देते हैं और कहते हैं कि वेद इत्यादि सब जंगली लोगों के ग्रन्थ हैं।

मेहरावली स्थान का नाम सबने सुना होगा। गुड़गाँव के पास ही है जिसको आप लोग क़ुतुबमीनार के नाम से जानते हैं। यह वाराहमिहिर की Observatory थी। जिसे हम जानते हैं कि यह क़ुतुब मीनार है, वह वाराहमिहिर की Observatory थी जिस पर चढ़कर ग्रह नक्षत्रों इत्यादि का अध्ययन किया जाता था लेकिन हमारी गुलाम मानसिकता ने उसे क़ुतुब मीनार बना दिया। इतना भी दिमाग में नहीं आया कि उस जगह लौह स्तम्भ क्या कर रहा है ? देवी देवताओं की मूर्तियाँ क्या कर रही हैं ? जंतर मंतर जैसा structure वहाँ क्या कर रहा है ? बस जिसने जो बता दिया उसी में हम खुश हैं।

पता नहीं हम लोगों को अपने ऊपर गर्व या अपनी सांस्कृतिक विरासत पर कब गर्व होगा ?

खैर मुद्दे पर आते हैं…. तो जितने भी ग्रह नक्षत्र हमारे वेदों शास्त्रों में वर्णित हैं, पंचांग में वर्णित हैं, हमें सटीक उनके विषय में सब पता था।

बस हमें नष्ट भ्रष्ट करने के लिए हमारी अरबों खरबों की पुस्तकें जला दी गयीं, मंदिर नष्ट कर दिए गये, इतिहास की ऐसी तैसी कर दी गयी और बचा कुचा कसर सेक्युलर वाद ने पूरी कर दी ।

इसीलिए अब भी समय है अपने शास्त्रों का अध्ययन कीजिए, उनपर गर्व करना सीखिए, उन पर विश्वास करना सीखिए।

हम न्यूटन को जानते हैं, स्वामी ज्येष्ठदेव को नहीं..

अभी तक आपको यही पढ़ाया गया है कि न्यूटन जैसे महान वैज्ञानिक ही कैलकुलस, खगोल विज्ञान अथवा गुरुत्वाकर्षण के नियमों के जनक हैं लेकिन वास्तविकता यह है कि इन सभी वैज्ञानिकों से कई वर्षों पूर्व पंद्रहवीं सदी में दक्षिण भारत के स्वामी ज्येष्ठदेव ने ताड़पत्रों पर गणित के ये तमाम सूत्र लिख रखे हैं, इनमें से कुछ सूत्र ऐसे भी हैं, जो उन्होंने अपने गुरुओं से सीखे थे, यानी गणित का यह ज्ञान उनसे भी पहले का है, परन्तु लिखित स्वरूप में नहीं था।
“मैथेमेटिक्स इन इण्डिया” पुस्तक के लेखक किम प्लोफ्कर लिखते हैं कि, “तथ्य यही हैं सन 1660 तक यूरोप में गणित या कैलकुलस कोई नहीं जानता था, जेम्स ग्रेगरी सबसे पहले गणितीय सूत्र लेकर आए थे. जबकि सुदूर दक्षिण भारत के छोटे से गाँव में स्वामी ज्येष्ठदेव ने ताड़पत्रों पर कैलकुलस, त्रिकोणमिति के ऐसे-ऐसे सूत्र और कठिनतम गणितीय व्याख्याएँ तथा संभावित हल लिखकर रखे थे, कि पढ़कर हैरानी होती है. इसी प्रकार चार्ल्स व्हिश नामक गणितज्ञ लिखते हैं कि “मैं पूरे विश्वास से कह सकता हूँ कि शून्य और अनंत की गणितीय श्रृंखला का उदगम स्थल केरल का मालाबार क्षेत्र है”

स्वामी ज्येष्ठदेव द्वारा लिखे गए इस ग्रन्थ का नाम है “युक्तिभाष्य”, जो जिसके पंद्रह अध्याय और सैकड़ों पृष्ठ हैं. यह पूरा ग्रन्थ वास्तव में चौदहवीं शताब्दी में भारत के गणितीय ज्ञान का एक संकलन है, जिसे संगमग्राम के तत्कालीन प्रसिद्ध गणितज्ञ स्वामी माधवन की टीम ने तैयार किया है। स्वामी माधवन का यह कार्य समय की धूल में दब ही जाता, यदि स्वामी ज्येष्ठदेव जैसे शिष्यों ने उसे ताड़पत्रों पर उस समय की द्रविड़ भाषा (जो अब मलयालम है) में न लिख लिया होता. इसके बाद लगभग 200 वर्षों तक गणित के ये सूत्र “श्रुति-स्मृति” के आधार पर शिष्यों की पीढी से एक-दुसरे को हस्तांतरित होते चले गए।भारत में श्रुति-स्मृति (गुरु के मुंह से सुनकर उसे स्मरण रखना) परंपरा बहुत प्राचीन है, इसलिए सम्पूर्ण लेखन करने (रिकॉर्ड रखने अथवा दस्तावेजीकरण) में प्राचीन लोग विश्वास नहीं रखते थे, जिसका नतीजा हमें आज भुगतना पड़ रहा है, कि हमारे प्राचीन ग्रंथों में संस्कृत भाषा के छिपे हुए कई रहस्य आज हमें पश्चिम का आविष्कार कह कर परोसे जा रहे हैं।

जॉर्जटाउन विवि के प्रोफ़ेसर होमर व्हाईट लिखते हैं कि संभवतः पंद्रहवीं सदी का गणित का यह ज्ञान धीरे-धीरे इसलिए खो गया, क्योंकि कठिन गणितीय गणनाओं का अधिकाँश उपयोग खगोल विज्ञान एवं नक्षत्रों की गति इत्यादि के लिए होता था, सामान्य जनता के लिए यह अधिक उपयोगी नहीं था। इसके अलावा जब भारत के उन ऋषियों ने दशमलव के बाद ग्यारह अंकों तक की गणना एकदम सटीक निकाल ली थी, तो गणितज्ञों के करने के लिए कुछ बचा नहीं था। ज्येष्ठदेव लिखित इस ज्ञान के “लगभग” लुप्तप्राय होने के सौ वर्षों के बाद पश्चिमी विद्वानों ने इसका अभ्यास 1700 से 1830 के बीच किया।चार्ल्स व्हिश ने “युक्तिभाष्य” से सम्बंधित अपना एक पेपर “रॉयल एशियाटिक सोसायटी ऑफ़ ग्रेट ब्रिटेन एंड आयरलैंड” की पत्रिका में छपवाया।चार्ल्स व्हिश ईस्ट इण्डिया कंपनी के मालाबार क्षेत्र में काम करते थे, जो आगे चलकर जज भी बने। लेकिन साथ ही समय मिलने पर चार्ल्स व्हिश ने भारतीय ग्रंथों का वाचन और मनन जारी रखा. व्हिश ने ही सबसे पहले यूरोप को सबूतों सहित “युक्तिभाष्य” के बारे में बताया था।वरना इससे पहले यूरोप के विद्वान भारत की किसी भी उपलब्धि अथवा ज्ञान को नकारते रहते थे और भारत को साँपों, उल्लुओं और घने जंगलों वाला खतरनाक देश मानते थे।ईस्ट इण्डिया कंपनी के एक और वरिष्ठ कर्मचारी जॉन वारेन ने एक जगह लिखा है कि “हिन्दुओं का ज्यामितीय और खगोलीय ज्ञान अदभुत था, यहाँ तक कि ठेठ ग्रामीण इलाकों के अनपढ़ व्यक्ति को मैंने कई कठिन गणनाएँ मुँहज़बानी करते देखा है”।

स्वाभाविक है कि यह पढ़कर आपको झटका तो लगा होगा, परन्तु आपका दिल सरलता से इस सत्य को स्वीकार करेगा नहीं, क्योंकि हमारी आदत हो गई है कि जो पुस्तकों में लिखा है, जो इतिहास में लिखा है अथवा जो पिछले सौ-दो सौ वर्ष में पढ़ाया-सुनाया गया है, केवल उसी पर विश्वास किया जाए. हमने कभी भी यह सवाल नहीं पूछा कि पिछले दो सौ या तीन सौ वर्षों में भारत पर किसका शासन था? किताबें किसने लिखीं? झूठा इतिहास किसने सुनाया? किसने हमसे हमारी संस्कृति छीन ली? किसने हमारे प्राचीन ज्ञान को हमसे छिपाकर रखा? लेकिन एक बात ध्यान में रखें कि पश्चिमी देशों द्वारा अंगरेजी में लिखा हुआ भारत का इतिहास, संस्कृति हमेशा सच ही हो, यह जरूरी नहीं। आज भी ब्रिटिशों के पाले हुए पिठ्ठू, भारत के कई विश्वविद्यालयों में अपनी “गुलामी की सेवाएँ” अनवरत दे रहे हैं।

सनातन धर्म की जय हो ।

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