22 June 2025
प्राचीन भारत और वैज्ञानिक चेतना
इस बात के प्रमाण भारत की प्राचीन भाषाओं, ग्रंथों और शब्दों में छिपे हुए हैं।
❇️विमान और हवाई यात्रा
यदि हमारे पूर्वजों को हवाई जहाज या उड़ने की अवधारणा का ज्ञान नहीं होता, तो “विमान” जैसा शब्द कभी नहीं बनता। ऋग्वेद, रामायण, महाभारत, और अन्य ग्रंथों में “विमान” का उल्लेख मिलता है — विशेषकर पुष्पक विमान, जो एक उड़ने वाला यंत्र था। यह केवल कल्पना नहीं, बल्कि यह दर्शाता है कि उस समय लोगों की उड़ान से जुड़ी अवधारणाओं पर पकड़ थी।
❇️विद्युत और ऊर्जा का ज्ञान
यदि प्राचीन भारत में बिजली (Electricity) या ऊर्जा के किसी रूप का ज्ञान न होता, तो “विद्युत” शब्द कैसे बनता? संस्कृत में “विद्युत” का प्रयोग बिजली, चमक, और ऊर्जा के लिए किया जाता था। यह इस बात का सूचक है कि ऊर्जा के स्वरूपों को समझने की क्षमता उस काल में भी थी।
❇️दूरसंचार (Telecommunication)
जब टेलीफोन जैसी तकनीक आधुनिक काल की देन मानी जाती है, तो सवाल उठता है कि “दूरसंचार” जैसा विशुद्ध संस्कृत शब्द प्राचीन भारतीय भाषा में कैसे आया? “दूर” यानी दूरी और “संचार” यानी संवाद या संप्रेषण — यह स्पष्ट करता है कि संचार के आधुनिक सिद्धांतों की मूल अवधारणा पहले से मौजूद थी।
❇️अणु और परमाणु
“Atom” और “Electron” जैसे शब्द आधुनिक विज्ञान के हैं, लेकिन भारत में “अणु” और “परमाणु” जैसे शब्द हजारों वर्ष पहले से उपयोग में हैं। कणाद जैसे ऋषि ने अणुवाद (Atomic Theory) की बात की थी। कणाद का वैशेषिक दर्शन अणुओं की परिभाषा, गुण, और संयोग को समझाता है — यह उस समय के लिए अद्भुत वैज्ञानिक विचारधारा थी।
❇️शल्य चिकित्सा और आयुर्वेद
यदि शल्य चिकित्सा (Surgery) का ज्ञान न होता, तो “शल्य चिकित्सा” जैसा शब्द संस्कृत में नहीं होता। सुश्रुत संहिता में सर्जरी की विस्तृत जानकारी दी गई है। सुश्रुत को “सर्जरी का जनक” कहा जाता है। उन्होंने प्लास्टिक सर्जरी, मोतियाबिंद ऑपरेशन, और हड्डियों की सर्जरी जैसी प्रक्रियाओं का वर्णन किया है।
भाषा से सिद्ध होता है ज्ञान
कोई भी शब्द बिना परिभाषा के अस्तित्व में नहीं आ सकता। यदि कोई शब्द बना है, तो उसके पीछे कोई विचार, परिभाषा, और समझ अवश्य रही होगी। यही बात हमारे प्राचीन वैज्ञानिक शब्दों पर भी लागू होती है। हिंदी और संस्कृत में फिजिक्स, केमिस्ट्री, खगोलशास्त्र और गणित से जुड़ी तमाम शब्दावली उपलब्ध है।
खगोलशास्त्र में गहन ज्ञान
हमारे पूर्वजों को यह ज्ञात था कि सौरमंडल में नौ ग्रह हैं, और सभी सूर्य की परिक्रमा करते हैं। रामचरितमानस में काकभुशुंडि और गरुड़ संवाद के माध्यम से ब्रह्मांड का जो वर्णन है, वह आज भी वैज्ञानिकों के लिए चमत्कारी है। उसमें ब्रह्मांड की अनंतता, अनगिनत लोकों, और अन्य ग्रहों की चर्चा की गई है।
विज्ञान की लूट: एक ऐतिहासिक सत्य
जब अंग्रेज़ भारत आए (17वीं-18वीं शताब्दी में), उस समय यूरोप विज्ञान के क्षेत्र में बहुत पीछे था। इससे पहले यूरोप में कोई प्रमुख वैज्ञानिक उपलब्धि नहीं थी। ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान उन्होंने केवल भारत का आर्थिक शोषण ही नहीं किया, बल्कि यहाँ के ज्ञान, तकनीक, और शोध को भी चुराया। उन्होंने कई भारतीय खोजों को अपने नाम किया और आधुनिक अविष्कारक कहलाए।
निष्कर्ष: वेद ही विज्ञान हैं, ऋषि ही वैज्ञानिक
भारत के वेद केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं हैं, वे ज्ञान के स्रोत हैं। उसमें गणित, भौतिकी, खगोलशास्त्र, रसायनशास्त्र, जीवविज्ञान, चिकित्सा, मनोविज्ञान, और दर्शन – हर क्षेत्र का गूढ़ ज्ञान समाहित है। हमारे ऋषि केवल साधु नहीं थे, वे वैज्ञानिक दृष्टिकोण से संपन्न विचारक थे।
अंतिम विचार
हमें अपने इतिहास, भाषा और ग्रंथों को केवल पौराणिक कहानियाँ समझने की भूल नहीं करनी चाहिए। इन ग्रंथों में विज्ञान की वह नींव है, जिस पर आज की दुनिया खड़ी है। भारतीय ज्ञान परंपरा को पुनः समझना, उसका आदर करना और उसका विश्व स्तर पर प्रचार करना आज की आवश्यकता है।
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