देश की नई शिक्षा नीति को भविष्य की मजबूत नींव रखने वाली नीति प्रधानमंत्री ने बताया है। इस दौरान प्रधानमंत्री ने नई शिक्षा नीति में शामिल किए गए 5+3+3+4 स्ट्रक्चर पर पीएम मोदी ने कहा कि इस नीति का लक्ष्य अपनी जड़ों से जोड़ते हुए भारतीय छात्र को ग्लोबल सिटीजन बनाना है। इसमें कोई विवाद नहीं है कि स्कूल में पढ़ाई की भाषा वही होनी चाहिए जो छात्रों की मातृभाषा हो। ऐसा करने से बच्चों के साीखने की गति तेज होगी। पांचवीं क्लास तक उनकी भाषा में ही पढ़ाने की जरूरत है। इससे उनकी नींव मजबूत होगी। इससे आगे की पढ़ाई का भी उनका बेस मजबूत होगा।
सच यह है की मातृभाषा में हो पढ़ाई तो बच्चे तेज़ी से सीखते हैं और स्वप्न भी मातृभाषा में ही आते है लेकिन नइ शिक्षा नीति को लेकर कुछ लिबरल और देश विरोधी लोगो को रास नही आ रही है।
आपको बता दें कि भारतीय संस्कृति की रीढ़ की हड्डी तोड़ने तथा लम्बे समय तक भारत पर राज करने के लिए 1835 में ब्रिटिश संसद में भारतीय शिक्षा प्रणाली को ध्वस्त करने के लिए मैकाले ने क्या रणनीति सुझायी थी तथा उसी के तहत Indian Education Act- 1858 लागु कर दिया गया।
15 अगस्त 1947, को आज़ादी मिली, क्या बदला ?
रंगमंच से सिर्फ अंग्रेज़ बदले बाकि सब तो वही चला। अंग्रेज़ गए तो सत्ता उन्ही की मानसिकता को पोषित करने वाली कांग्रेस के हाथ में आ गयी। जवाहरलाल नेहरू के कृत्यों पर तो किताबें लिखी जा चुकी हैं पर सार यही है की वो धर्मनिरपेक्ष कम और मुस्लिम हितैषी ज्यादा था। न मैकाले की शिक्षा नीति बदली और न ही शिक्षा प्रणाली। शिक्षा प्रणाली जस की तस चल रही है और इसका श्रेय स्वतंत्र भारत के प्रथम और दस वर्षों (1947-58) तक रहे शिक्षा मंत्री मौलाना अब्दुल कलम आज़ाद को दे ही देना चाहिए बाकि जो कसर बची थी वो इन्दिरा गाँधी ने तो आपातकाल में विद्यालयों में पढ़ाया जाने वाला इतिहास भी बदल कर पूरी कर दी ।
जिस आज़ादी के समय भारत की 18.73% जनता साक्षर थी उस भारत के प्रधानमंत्री ने अपना पहला भाषण “tryst With Destiny” अंग्रेजी में दिया था आज का युवा भी यही मानता है कि यदि अंग्रेजी न होती तो भारत इतनी तरक्की नहीं कर पाता। और हम यह सोचने के लिए मजबूर हो जाते हैं कि पता नहीं जर्मनी, जापान,चीन इजराइल ने अपनी मातृभाषाओं में इतनी तरक्की कैसे कर ली।
1. अफ्रिका महाद्वीप – 46 पिछडे देश। इनमें से कितने देश आगे बढे हैं?
उत्तर : शून्य
उसका मूल कारण 21 देश फ्रांसीसी में,18 देश अंग्रेज़ी में, 5 देश पुर्तगाली में और 2 देश स्पेनिश में सीखते हैं। उन देशों पर शासन करने वालों की भाषाएँ हैं ।
2. पाकिस्तान – 1947 से पहले पाकिस्तान के किसी भी हिस्से की मुख्य भाषा उर्दू नहीं थी। पाकिस्तान की अपनी भाषा क्या है यह आज भी विवाद का विषय है।
सरकारी कामकाज + उच्च शिक्षा – अंग्रेजी
संसद की भाषा + मिडिया की भाषा – उर्दू
घर की भाषा- पंजाबी, सिन्धी, बलोच आदि।
पाकिस्तान के हालत – 60 % पाकिस्तान में पीने लायक पानी नहीं। 25% पाकिस्तान इतना अधिक अशान्त है कि वहां पाकिस्तान का प्रधानमन्त्री भी नहीं जा सकता. 90% दवाई आयात करता है।
3. जापान
दुनिया की 6 भाषाओं से शोधपत्र (रिसर्च पेपर)का अनुवाद जर्मन, फ्रांसीसी, रूसी, अंग्रेज़ी, स्पेनिश और डच भाषाओं से शोधपत्रों का जापानी में अनुवाद करवाते है। जापानी भाषा में मात्र 3 सप्ताह में प्रकाशित किया जाता है। अनुवाद छापकर जापानी विशेषज्ञों को मूल कीमत से भी सस्ते मूल्य पर बेचे जाते हैं।
जापान की उन्नति पूरी दुनिया जानती है उसका कोई प्रमाण देने की जरूरत नहीं।
4. इजरायल देश से आप परिचित ही हैं। हिब्रू ऐसी भाषा है जो दुनिया के नक़्शे से लगभग गायब ही हो गई थी। इसके बावजूद यदि आज वह जीवित है और एक देश की राजभाषा के प्रतिष्ठित पद पर आसीन है। एक भाषा से एकता का उदाहरण है इजरायल।
दुनिया में प्रति व्यक्ति पेटेंट कराने वालों में इजरायलियों का स्थान पहला है। इजरायल की जनसंख्या न्यूयॉर्क की आधी जनसंख्या के बराबर है। इजराइल का कुल क्षेत्रफल इतना है कि तीन इजराइल मिल कर भी राजस्थान जितना नहीं हो सकते।
इजरायल दुनिया का इकलौता ऐसा देश है, जो समूचा एंटी बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम से लैस है। इजरायल के किसी भी हिस्से में रॉकेट दागने का मतलब है मौत। इजरायल की ओर जाने वाला हर मिसाइल रास्ते में ही दम तोड़ देता है। इजरायल अपने जन्म से अब तक 7 लड़ाइयां लड़ चुका है। जिसमें अधिकतम में उसने जीत हासिल की है। इजरायल दुनिया में जीडीपी के प्रतिशत के मामले में सर्वाधिक खर्च रक्षा क्षेत्र पर करता है। इजरायल के कृषि उत्पादों में 25 साल में सात गुणा बढ़ोतरी हुई है, जबकि पानी का इस्तेमाल जितना किया जाता था, उतना ही अब भी किया जा रहा है। इजरायल अपनी जरुरत का 93 प्रतिशत खाद्य पदार्थ खुद पैदा करता है। खाद्यान्न के मामले में इजरायल लगभग आत्मनिर्भर है।
किसी वृक्ष का, विकास रोकने का, सरल उपाय, क्या है? माना जाता है, कि वह उपाय है, उस के मूल काटकर उसे एक छोटी कुंडी (गमले) में लगा देना। जडे जितनी छोटी होंगी, वृक्ष उतना ही नाटा होगा, ठिंगना होगा। जापानी बॉन्साइ पौधे ऐसे ही उगाए जाते हैं। कटी हुयी, छोटी जडें, छोटे छोटे पौधे पैदा कर देती है। वे पौधे कभी ऊंचे नहीं होते, जीवनभर पौधे नाटे ही रहते हैं। पौधों को पता तक नहीं होता, कि उनकी वास्तव में नियति क्या थी? यही है मातृ भाषा से दूर करना अर्थात जड़े काटना।
तमिलनाडु में परिजनों और स्कूलों की मांग, ‘हमें हिंदी चाहिए’
तमिलनाडु में हिंदी को अनिवार्य बनाए जाने के खिलाफ 60 के दशक में हिंसक विरोध प्रदर्शन देखने को मिले थे। हालांकि अब यह मामला उल्टा पड़ता दिख रहा, जहां राज्य में कई छात्र, उनके परिजन और स्कूलों ने तमिल के एकाधिकार के खिलाफ लड़ाई शुरू कर दी है। उनका कहना है कि उन्हें हिंदी चाहिए।
स्कूलों और परिजनों के एक समूह ने डीएमके की तत्कालीन सरकार की ओर से साल 2006 में पारित एक आदेश को चुनौती दी है, जिसमें कहा गया था कि दसवीं कक्षा तक के बच्चों को केवल तमिल पढ़ाई जाएगी (हिन्दी नहीं), इसमे इंग्लिश की अनिवार्यता को नहीं बदला गया था,
संदर्भ -NDTVcom, Last Updated: जून 16, 2014 06:43 PM IST
आजतक जितने भी देश उन्नत हुए वे अपनी मातृभाषा में पढ़कर ही हुए है चाइना आज इतना आगे इसलिए है वहाँ अपनी मातृभाषा में ही सबकुछ होता है इसलिए मातृ भाषा और राष्ट्र भाषा को महत्त्व देना चाहिए, 200 साल हमे गुलाम बनाने वाले अंग्रजो की भाषा को तो तुरंत हटा ही देना चाहिए ये मानसिकता की गुलामी है, अपने देश की संस्कृति, इतिहास , धर्म के बारे में बच्चों को सही जानकरी मिले उस अनुसार पाठ्यक्रम बनना चाहिए और प्राचीन गुरुकुलों के अनुसार शिक्षा नीति बननी चाहिए।