काशी का रहस्यमयी तारा माता मंदिर: जब एक राजकुमारी को किया गया था जिंदा दफन

22 October 2024

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काशी का रहस्यमयी तारा माता मंदिर: जब एक राजकुमारी को किया गया था जिंदा दफन

 

वाराणसी,जिसे बनारस के नाम से भी जाना जाता है,अपनी हर गली और मुहल्ले में छुपे अद्भुत मंदिरों और उनसे जुड़ी कहानियों के लिए प्रसिद्ध है। यहां हर मंदिर के साथ कोई न कोई रोचक कथा जुड़ी होती है। आज हम आपको काशी के एक ऐसे मंदिर की कहानी बताने जा रहे है,जिसकी नींव में एक राजकुमारी को ज़िंदा दफन कर दिया गया था। इस अद्भुत कहानी का मंदिर काशी के पांडेय घाट पर स्थित है,जहां सिद्धपीठ तारा माता का प्राचीन मंदिर बना हुआ है।

 

पांडेय घाट का तारा माता मंदिर और उसकी रहस्यमयी कथा : काशी के दशाश्वमेध घाट से केदार घाट की ओर बढ़ते हुए पांडेय घाट पर एक लाल रंग की कोठी स्थित है। यह कोठी बाहर से किसी साधारण पुरानी हवेली जैसी ही लगती है,लेकिन भीतर प्रवेश करने पर यह एक भव्य मंदिर के रूप में दिखाई देती है। इस मंदिर में कई देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित है, परंतु यह मुख्य रूप से काशी की सिद्धपीठ मां तारा का मंदिर है। ऊंचे चबूतरे पर स्थापित मां नील तारा की नीली प्रतिमा और मंदिर की वास्तुकला यह प्रमाणित करती है कि यह मंदिर सैकड़ों साल पुराना है।

 

परंतु इस मंदिर की सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि इसके नीचे एक राजकुमारी को ज़िंदा समाधि दी गई थी। यह कहानी आज भी लोगों के दिलों में जिंदा है।

 

कौन थी वह राजकुमारी और क्यों हुई ज़िंदा दफन?

इस मंदिर की नींव में दफनाई गई राजकुमारी थी तारा सुन्दरी, जो बंगाल के नाटोर राज्य की राजकुमारी थी। उनकी मां, रानी भवानी, नाटोर की रानी थी। नाटोर का राज्य अत्यंत संपन्न था, परंतु राजा रमाकांत, जो तारा सुन्दरी के पिता थे, एक अय्याश प्रवृत्ति के थे। राजा के निधन के बाद रानी भवानी ने राज्य की बागडोर संभाल ली।

 

राजकुमारी तारा सुन्दरी की शादी के कुछ समय बाद ही उनके पति का निधन हो गया और वह अपने मायके लौट आईं। तभी बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला उनकी सुंदरता पर मोहित हो गया और उनसे विवाह का प्रस्ताव रख दिया। रानी भवानी को इस संकट से बचने के लिए कोई रास्ता नहीं सूझा, और वह अपनी बेटी तारा सुन्दरी को लेकर काशी भाग आईं। परंतु नवाब सिराजुद्दौला अपनी सेना के साथ काशी की ओर बढ़ने लगा।

 

तब राजकुमारी तारा सुन्दरी ने अपनी मां से कहा, “मुझे ज़िंदा दफना दो, पर उस विधर्मी (दूसरे धर्म के व्यक्ति) के हाथों में न पड़ने दो।” मजबूर होकर रानी भवानी ने अपनी बेटी को ज़िंदा दफन कर दिया और उसी स्थान पर तारा माता का मंदिर बनवाया।

 

तारा माता मंदिर की आध्यात्मिक महिमा : यह मंदिर आज भी श्रद्धालुओं के लिए एक सिद्धपीठ के रूप में प्रसिद्ध है। माना जाता है कि इस मंदिर में मां तारा के दर्शन करने से भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है। तारा माता को काशी की रक्षक देवी के रूप में पूजा जाता है।

 

इस मंदिर की रहस्यमयी और दुःख भरी कहानी न सिर्फ काशी के इतिहास का हिस्सा है, बल्कि यह माता और बेटी के बलिदान और साहस की भी अद्वितीय गाथा है।

 

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