मीडिया ट्रायल इतना खतरनाक है कि किसी भी अच्छे व्यक्ति कि छवि को खराब कर दे और बुरे व्यक्ति को महान बना दे। भारत में आज यही सब चल रहा है । इसके लिए न्यायलय ने भी चिंता जताई है।
दिल्ली उच्च न्यायलय ने कहा है : ‘‘मीडिया में दिखायी गयी खबरें न्यायधीश के फैसलों पर असर डालती हैं । खबरों से न्यायधीश पर दबाव बनता है और फैसलों का रुख भी बदल जाता है। पहले मीडिया अदालत में विचाराधीन मामलों में नैतिक जिम्मेदारियों को समझते हुए खबरें नहीं दिखाता था लेकिन अब नैतिकता को हवा में उड़ा दिया है।
मीडिया ट्रायल के जरिये दबाव बनाना न्यायधीशों को प्रभावित करने की प्रवृत्ति है। जाने-अनजाने में एक दबाव बनता है और इसका असर आरोपियों और दोषियों की सजा पर पड़ता है ।’’
A big tendency to influence media trial judges – Delhi High Court |
सर्वोच्च न्यायलय के पूर्व न्यायधीश न्यायमूर्ति के एस. राधाकृष्णन् का मानना है : ‘‘मीडिया ट्रायल अच्छा नहीं है क्योंकि कई बार इससे दृढ़ सार्वजनिक राय कायम हो जाती है जो न्यायपालिका को प्रभावित करती है । मीडिया ट्रायल के कारण कई बार आरोपी कि निष्पक्ष सुनवाई नहीं हो पाती ।’’
न्यायधीशों की बात सही है अभी हाल कि तीन ताजा उदाहरण देते है।
पहला कठुआ में जनवरी की घटना का तूल पकड़ता है अप्रैल में! और एक हिन्दू को पकड़ा जाता है जबकि रिपोर्ट में स्पष्ट आया है कि रेप हुआ ही नही लेकिन मीडिया ट्रायल के कारण एक हिंदू युवक को जेल जाना पड़ा और मंदिर को बदनाम किया गया ।
दूसरा मामला सलमान खान है अभी हाल ही में जोधपुर सेशन कोर्ट ने 5 साल की सजा सुनाई लेकिन जैसे ही मीडिया ने सलमान खान के फेवर में खबरें दिखानी शुरू किया तो दो दिन में ही जमानत मिल गई ।
तीसरा मामला है हिन्दू संत आसारामजी बापू का जब भी उनकी जमानत अर्जी लगती है तो मीडिया उनके खिलाफ खबरे चलाना शुरू कर देती जिससे उनको जमानत नही मिल पाती और निर्णय सुनाने पहले ही उनके खिलाफ खबरें दिखाना शुरू किया जिससे उनको उम्रकैद की सजा दी गई जबकि गवाहों और सबूतों के आधार पर केस बनता ही नही है और मीडिया जिसको रेप (बलात्कार) शब्द उपयोग कर रही है वास्तविकता में उनके ऊपर रेप का कोई आरोप ही नही है केवल छेड़छाड़ी के ही आरोप है, उसमे ही उनको उम्रकैद कि सजा दे दी तो कही न कही मीडिया ट्रायल का ही प्रभाव है ।
पटना उच्च न्यायालय के अधिवक्ता रविशेखर सिंह बताते हैं : ‘‘कई देशों में मीडिया ट्रायल के खिलाफ बड़े सख्त कानून बनाये गये हैं। इंग्लैंड में कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट एक्ट 1981 की धारा 1 से 7 में मीडिया ट्रायल के बारे में सख्त निर्देश दिये गये हैं । कई बार इस कानून के तहत बड़े अखबारों पर मुकदमा भी चलाये गये हैं । धारा 2(2) के तहत प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ऐसा कोई समाचार प्रकाशित नहीं कर सकता जिसके कारण ट्रायल की निष्पक्षता पर गम्भीर खतरा उत्पन्न होता हो । जिस तरह भारत में मीडिया ट्रायल के द्वारा केस को गलत दिशा में मोड़ने का प्रचलन हो रहा है, ऐसे में अन्य देशों की तरह भारत में भी मीडिया ट्रायल पर सख्त कानून बनाना बहुत ही आवश्यक हो गया है।’’
विश्व हिन्दू परिषद के मुख्य संरक्षक व पूर्व अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वर्गीय श्री अशोक सिंहलजी कहते हैं : ‘‘मीडिया ट्रायल के पीछे कौन है ? हिन्दू धर्म व संस्कृति को नष्ट करने के लिए मीडिया ट्रायल पश्चिम का बड़ा भारी षड़्यंत्र है हमारे देश के भीतर ! मीडिया का उपयोग कर रहे हैं विदेश के लोग ! उसके लिए भारी मात्रा में फंड्स देते हैं, जिससे हिन्दू धर्म के खिलाफ देश के भीतर वातावरण पैदा हो ।’’
मीडिया विश्लेषक उत्पल कलाल कहते हैं: ‘‘यह बात सच है कि संतों, राष्ट्रहित में लगी हस्तियों पर झूठे आरोप लगाकर मीडिया ट्रायल द्वारा देशवासियों की आस्था के साथ खिलवाड़ करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है । जनता पर अपनी बात को थोपना, सही को गलत, गलत को सही दिखाना – क्या इससे प्रजातंत्र को मजबूती मिलेगी । मीडिया के ऐसी रिपोर्टिंग पर सरकार, न्यायपालिका और जनता द्वारा लगाम कसी जानी चाहिए ।
राजस्थान उच्च न्यायलय के मुख्य न्यायधीश सुनील अम्बवानी ने बताया था कि जब तक लोगों की मान्यता नहीं बनी है तब तक वह न्यायधीश किसी से नहीं डरता है । लेकिन मीडिया कई मामलों में पहले ही सही-गलत की राय बना चुका होता है । इससे न्यायधीश पर दबाव बन जाता है कि एक व्यक्ति जो जनता कि नजर में दोषी है, उसको अब दोषी ठहराने की जरूरत है । न्यायधीश भी मानव है । वह भी इनसे प्रभावित होता है ।
कई न्यायविद् एवं प्रसिद्ध हस्तियाँ भी मीडिया ट्रायल को न्याय व्यवस्था के लिए बाधक मानती हैं । एक याचिका कि सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायलय के न्यायधीश न्यायमूर्ति कुरीयन जोसेफ ने कहा है : ‘‘दंड विधान संहिता की धारा 161 और 164 के तहत दर्ज आरोपी के बयान भी मीडिया को जारी कर दिये जाते हैं। अदालत में मुकदमा चलता है, उधर समान्तर मीडिया ट्रायल भी चलता रहता है।’’ सर्वोच्च न्यायलय ने कहा है : ‘‘मीडिया का रोल अहम है और उससे उम्मीद कि जाती है कि वह इस तरह अपना काम करे कि किसी भी केस कि छानबीन प्रभावित न हो । जब मामला अदालत में हो, तब मीडिया को संयम रखना चाहिए । उसे न्यायिक प्रक्रिया में दखल देने से बचना चाहिए।’’
उच्चतम न्यायलय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश अल्तमस कबीर कहते हैं : ‘‘मीडिया ट्रायल काफी चिंता का विषय है । यह नहीं होना चाहिए। इससे अभियुक्त के खिलाफ पूर्वाग्रह से ग्रसित होने की धारणा बनती है । फैसला अदालतों में ही होना चाहिए ।’’
अब मीडिया पर लगाम लगाना जरूरी है नही तो एक के बाद एक इसके शिकार होते रहेंगे ।
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This time, victim of POCSO Misuse is Asaram Bapu Ji,
next could be ur own family member
#POCSOMisused pic.twitter.com/xYd7DkpFZr
Money.
Revenge..
Conspiracy..
These factors are triggering FRAUD people to frame INNOCENTs under Rape charges
#POCSOMisused
Media trial is dangerous to judicial system as this can influence the judicial proceedings of the court.
Strong laws required to have proper control over Media.