06 March 2025
मद्रास हाई कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: गैर-हिंदुओं का मंदिरों में प्रवेश प्रतिबंधित, सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया क्या होगी?
यह एक संवेदनशील और महत्वपूर्ण विषय है, जो न्यायपालिका, धार्मिक स्वतंत्रता और सामाजिक संतुलन से जुड़ा है। मद्रास हाई कोर्ट का यह निर्णय ऐतिहासिक है, क्योंकि यह हिंदू मंदिरों की पवित्रता बनाए रखने और उनके अनुयायियों के धार्मिक अधिकारों की रक्षा करने से संबंधित है।
हालाँकि, यह देखना दिलचस्प होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस फैसले पर क्या रुख अपनाता है, क्योंकि यह न केवल अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता) बल्कि अनुच्छेद 15 (धर्म, जाति, लिंग आदि के आधार पर भेदभाव का निषेध) से भी जुड़ा हुआ मामला है।
संवैधानिक दृष्टिकोण से कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न उठते हैं :
क्या यह निर्णय “धार्मिक स्वतंत्रता” के अधिकार के अंतर्गत आता है या यह भेदभाव के अंतर्गत गिना जाएगा?
▪️हिंदू संगठनों का मानना है कि अनुच्छेद 25 के तहत हिंदुओं को अपने धार्मिक स्थल की मर्यादा बनाए रखने का अधिकार है।
▪️जबकि सेक्युलर लॉबियों का तर्क होगा कि अनुच्छेद 15 के तहत धर्म के आधार पर प्रवेश रोकना असंवैधानिक हो सकता है।
क्या सबरीमाला प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय इस मामले में प्रभाव डालेगा?
▪️ सबरीमाला मंदिर में परंपरा के खिलाफ जाकर महिलाओं को प्रवेश देने का आदेश आया था।
▪️यदि वहाँ की परंपरा तोड़ी गई थी, तो क्या सुप्रीम कोर्ट इस फैसले को भी उसी दृष्टिकोण से देखेगा?
क्या यह आदेश भारत के अन्य मंदिरों पर प्रभाव डालेगा?
▪️ पुरी जगन्नाथ मंदिर, पद्मनाभस्वामी मंदिर और कई अन्य मंदिरों में पहले से ही गैर-हिंदुओं का प्रवेश वर्जित है।
▪️ यदि सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को बदला, तो क्या अन्य मंदिरों पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा?
सुप्रीम कोर्ट क्या कर सकता हैं
संवैधानिक समीक्षा कर सकता है:
अदालत यह देखेगी कि यह आदेश मौलिक अधिकारों के तहत आता है या नहीं।
धर्मस्थलों की परंपराओं का सम्मान कर सकता है:
यदि सुप्रीम कोर्ट इस आदेश को बरकरार रखता है, तो यह हिंदू मंदिरों की स्वायत्तता को मजबूत करेगा।
अनुच्छेद 25 का पुनर्व्याख्या कर सकता है:
अगर कोर्ट अनुच्छेद 25 को इस दृष्टिकोण से देखता है कि यह धार्मिक स्थलों की मर्यादा बनाए रखने का अधिकार देता है , तो यह फैसला कायम रह सकता है।
सरकार की अपील पर रोक लगा सकता है:
अगर तमिलनाडु सरकार सुप्रीम कोर्ट में इसे चुनौती देती है, तो कोर्ट इस पर स्टे लगा सकता है या इसे संवैधानिक पीठ को सौंप सकता है।
निष्कर्ष
यह मामला सिर्फ एक कोर्ट के फैसले का नहीं, बल्कि भारत में धार्मिक स्थलों की मर्यादा, संविधान की व्याख्या और “सेक्युलर” व्यवस्था के असली स्वरूप का परीक्षण करने वाला मामला होगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि सुप्रीम कोर्ट क्या रुख अपनाता है—क्या वह मद्रास हाई कोर्ट के आदेश को बरकरार रखेगा या इसे सेक्युलरवाद के नाम पर पलट देगा?
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