07 Feburary 2025
मातृ-पितृ पूजन दिवस – संत श्री आशारामजी बापू द्वारा एक दिव्य अभियान
युवा पीढ़ी को नैतिक पतन से बचाने का सशक्त माध्यम
आज के समय में पश्चिमी संस्कृति के बढ़ते प्रभाव के कारण भारतीय समाज में नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है। युवा पीढ़ी अपनी जड़ों से कटती जा रही है और पाश्चात्य प्रभाव के कारण वैलेंटाइन डे जैसे उत्सवों की ओर आकर्षित हो रही है, जिससे समाज में नैतिक गिरावट, पारिवारिक विघटन और अनैतिक संबंधों की बढ़ती प्रवृत्ति देखने को मिल रही है। इसी चिंता को ध्यान में रखते हुए संत श्री आशारामजी बापू ने एक अनमोल सांस्कृतिक उपहार दिया—’मातृ-पितृ पूजन दिवस’।
संत श्री आशारामजी बापू की दिव्य पहल और उद्देश्य
संत श्री आशारामजी बापू ने यह पर्व 14 फरवरी को मनाने की शुरुआत की, ताकि युवा पीढ़ी अपने माता-पिता के प्रति सम्मान, कृतज्ञता और प्रेम प्रकट करने की ओर प्रेरित हो। बापूजी ने बताया कि माता-पिता धरती पर साक्षात भगवान के स्वरूप हैं और उनकी सेवा ही सच्चा प्रेम है।
इसका मूल उद्देश्य है:
युवाओं को पश्चिमी प्रभाव से बचाकर भारतीय संस्कृति और संस्कारों से जोड़ना।
परिवारों में बढ़ती दूरियों को कम करना और माता-पिता के प्रति सम्मान की भावना जागृत करना।
वृद्धाश्रमों की बढ़ती संख्या को रोककर माता-पिता को उनके बच्चों से स्नेह और सम्मान दिलाना।
समाज में नैतिकता और सदाचार का पुनरुत्थान करना।
वैलेंटाइन डे के दुष्प्रभाव और समाज पर बुरा असर
आज वैलेंटाइन डे के नाम पर युवा पीढ़ी अनैतिक संबंधों और दिखावटी प्रेम की ओर आकर्षित हो रही है, जिससे मानसिक और नैतिक पतन हो रहा है। इसका प्रभाव यह है कि:
युवा अपने माता-पिता और परिवार से दूर होते जा रहे हैं।
प्रेम के नाम पर बाजारवाद और भौतिकता हावी हो रही है।
रिश्तों में पवित्रता और नैतिकता समाप्त होती जा रही है।
वृद्धाश्रमों की संख्या लगातार बढ़ रही है, क्योंकि माता-पिता उपेक्षित महसूस कर रहे हैं।
मातृ-पितृ पूजन दिवस की विधि और लाभ
इस दिन विद्यार्थी अपने विद्यालयों में और परिवारजन अपने घरों में माता-पिता का पूजन कर उनका आशीर्वाद लेते हैं।
️माता-पिता को आसन पर बैठाकर उनके चरण धोए जाते हैं।
️पुष्प, चंदन, अक्षत, वस्त्र आदि अर्पित कर तिलक किया जाता है।
️उन्हें मिठाई, फल और उपहार भेंट किए जाते हैं।
️माता-पिता के समक्ष नमन कर आशीर्वाद लिया जाता है।
यह परंपरा न केवल माता-पिता के प्रति सम्मान को बढ़ाती है, बल्कि पारिवारिक समरसता को भी प्रोत्साहित करती है। इस आयोजन से परिवारों में प्रेम और आत्मीयता की भावना पुनः जागृत होती है।
संत श्री आशारामजी बापू का योगदान और समाज पर प्रभाव
संत श्री आशारामजी बापू ने केवल इस अभियान की शुरुआत नहीं की, बल्कि समाज में माता-पिता के प्रति सम्मान की भावना को पुनर्जीवित करने का कार्य किया है। उनके सत्संगों, प्रवचनों और साधना शिविरों के माध्यम से यह संदेश लाखों लोगों तक पहुँच चुका है। उनके प्रयासों से आज हजारों विद्यालयों और कॉलेजों में मातृ-पितृ पूजन दिवस बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
निष्कर्ष
बापूजी की इस अद्भुत पहल ने समाज में नैतिकता और प्रेम का संदेश फैलाया है। यह दिवस हमें याद दिलाता है कि माता-पिता ही सच्चे देवता हैं, और उनकी सेवा व सम्मान करना ही वास्तविक प्रेम है। जब संतान अपने माता-पिता का आदर करती है, तो न केवल उनका जीवन सुखमय होता है, बल्कि संतान का भविष्य भी उज्ज्वल बनता है। इसलिए, हर व्यक्ति को इस पावन दिवस को अपनाना चाहिए और समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने हेतु प्रयास करना चाहिए।
#14Feb_मातृपितृ_पूजन_दिवस
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