यश, कीर्ति, समृद्धि और पुत्र प्राप्ति एवं अमिट पुण्यों को देने वाले भीष्म पंचक व्रत के महत्व को जानिए

 

 

11 November 2024

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यश, कीर्ति, समृद्धि और पुत्र प्राप्ति एवं अमिट पुण्यों को देने वाले भीष्म पंचक व्रत के महत्व को जानिए

 

भीष्म पंचक व्रत का हिन्दू धर्म में बड़ा ही महत्त्व है। पुराणों तथा हिन्दू धर्मग्रंथों में कार्तिक माह में ‘भीष्म पंचक’ व्रत का विशेष महत्त्व कहा गया है।

 

इस साल यह व्रत 11 नवम्बर 2024 से 15 नवम्बर 2024 तक रहेगा।

 

इस व्रत में कार्तिक माह की देवउठनी एकादशी से कार्तिक माह की देव पूर्णिमा तक व्रती को अन्न का त्याग करना होता है एवं फल और दूध पर रहना होता है और 5 दिन तक भीष्म पितामह को अर्घ्य देना होता है।

 

सदाचारी एवं संयमी व्यक्ति ही जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकता है। सुखी-सम्मानित रहना हो, तब भी ब्रह्मचर्य की जरूरत है और उत्तम स्वास्थ्य व लम्बी आयु चाहिए, तब भी ब्रह्मचर्य की जरूरत है।

 

माँ गंगा के पुत्र भीष्म पितामह पूर्व जन्म में वसु थे। अपने पिता की इच्छा पूर्ति के लिए आजन्म अखण्ड ब्रह्मचर्य के पालन का दृढ संकल्प करने के कारण पिता की तरफ से उनको इच्छा मृत्यु का वरदान मिला था।

 

कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूनम तक का व्रत ‘भीष्म पंचक व्रत’ कहलाता है। जो इस व्रत का पालन करता है, उसके द्वारा सब प्रकार के शुभ कृत्यों का पालन हो जाता है। यह महापुण्यमय व्रत महापातकों का नाश करनेवाला है। निःसंतान व्यक्ति पत्नीसहित इस प्रकार का व्रत करे तो उसे संतान की प्राप्ति होती है।

 

भीष्म पंचक व्रत कथा:

 

कार्तिक एकादशी के दिन बाणों की शय्या पर पड़े हुए भीष्मजी ने जल की याचना की थी। तब अर्जुन ने संकल्प कर भूमि पर बाण मारा तो गंगाजी की धार निकली और भीष्मजी के मुँह में आयी। उनकी प्यास मिटी और तन-मन-प्राण संतुष्ट हुए। इसलिए इस दिन को भगवान श्रीकृष्ण ने पर्व के रूप में घोषित करते हुए कहा कि ‘आज से लेकर पूर्णिमा तक जो अघ्र्यदान से भीष्मजी को तृप्त करेगा और इस भीष्म पंचक व्रत का पालन करेगा, उस पर मेरी सहज प्रसन्नता होगी।

 

इसी संदर्भ में एक और कथा है…

 

महाभारत का युद्ध समाप्त होने पर जिस समय भीष्म पितामह सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा में शरशैया पर शयन कर रहे थे, तब भगवान कृष्ण पाँचों पांडवों को साथ लेकर उनके पास गये थे। ठीक अवसर मानकर युधिष्ठर ने भीष्म पितामह से उपदेश देने का आग्रह किया। भीष्मजी ने पाँच दिनों तक राज धर्म, वर्णधर्म, मोक्षधर्म आदि पर उपदेश दिया था। उनका उपदेश सुनकर श्रीकृष्ण सन्तुष्ट हुए और बोले, “पितामह! आपने शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक पाँच दिनों में जो धर्ममय उपदेश दिया है उससे मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई है। मैं इसकी स्मृति में आपके नाम पर भीष्म पंचक व्रत स्थापित करता हूँ। जो लोग इसे करेंगे वे जीवन भर विविध सुख भोगकर अन्त में मोक्ष प्राप्त करेंगे।”

 

भीष्म पंचक व्रत में क्या करना चाहिए?

 

इन पाँच दिनों में निम्न मंत्र से भीष्मजी के लिए तर्पण करना चाहिए:

 

सत्यव्रताय शुचये गांगेयाय महात्मने।

भीष्मायैतद् ददाम्यघ्र्यमाजन्मब्रह्मचारिणे।।

 

‘आजन्म ब्रह्मचर्य का पालन करनेवाले परम पवित्र, सत्य-व्रतपरायण गंगानंदन महात्मा भीष्म को मैं यह अर्घ्य देता हूँ।’ (स्कंद पुराण, वैष्णव खंड, कार्तिक माहात्म्य)

 

अर्घ्य के जल में थोड़ा-सा कुमकुम, केवड़ा, पुष्प और पंचामृत (गाय का दूध, दही, घी, शहद और शक्कर) मिला हो तो अच्छा है, नहीं तो जैसे भी दे सकें। ‘मेरा ब्रह्मचर्य दृढ़ रहे, संयम दृढ़ रहे, मैं कामविकार से बचूँ…’ – ऐसी प्रार्थना करें।

 

इन पाँच दिनों में अन्न का त्याग करें। कंदमूल, फल, दूध अथवा हविष्य (विहित सात्त्विक आहार जो यज्ञ के दिनों में किया जाता है) लें।

 

इन दिनों में पंचगव्य (गाय का दूध, दही, घी, गोझरण व गोबर-रस का मिश्रण) का सेवन लाभदायी है।

 

पानी में थोड़ा-सा गोझरण डालकर स्नान करें तो वह रोग-दोषनाशक तथा पापनाशक माना जाता है।

 

इन दिनों में ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।

 

जो नीचे लिखे मंत्र से भीष्मजी के लिए अर्घ्यदान करता है, वह मोक्ष का भागी होता है:

 

वैयाघ्रपदगोत्राय सांकृतप्रवराय च।

अपुत्राय ददाम्येतदुदकं भीष्मवर्मणे।।

वसूनामवताराय शन्तनोरात्मजाय च।

अघ्र्यं ददामि भीष्माय आजन्मब्रह्मचारिणे।।

 

जिनका व्याघ्रपद गोत्र और सांकृत प्रवर है, उन पुत्ररहित भीष्मवर्मा को मैं यह जल देता हूँ। वसुओं के अवतार, शान्तनु के पुत्र, आजन्म ब्रह्मचारी भीष्म को मैं अर्घ्य देता हूँ।

 

इस व्रत के दिनों में इस बार देवउठी एकादशी 12 नवम्बर 2024 को है। इस दिन भगवान नारायण जागते हैं। इस कारण इस दिन निम्न मंत्र का उच्चारण करके भगवान को जगाना चाहिए:

 

उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द उत्तिष्ठ गरुडध्वज।

उत्तिष्ठ कमलाकान्त त्रैलोक्यमन्गलं कुरु॥

 

‘हे गोविन्द! उठिए, उठिए, हे गरुड़ध्वज! उठिए, हे कमलाकांत! निद्रा का त्याग कर तीनों लोकों का मंगल कीजिये।’ (साभार: संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा ऋषि प्रसाद पत्रिका)

 

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