14 October 2024
जाने कैसे इंडो-यूरोपीय भाषाओं की जड़ें संस्कृत से जुड़ी है?
क्या आपने कभी यह सोचा है कि दुनियां भर की तमाम भाषाएं एक ही स्रोत से विकसित हुई होगी? यह विचार जितना अद्भुत है, उतना ही वास्तविक भी है। संस्कृत, जो भारतीय सभ्यता की सबसे प्राचीन और समृद्ध भाषा मानी जाती है, सिर्फ भारतीय भाषाओं की जननी नहीं, बल्कि इंडो-यूरोपीय भाषाओं की भी मूल भाषा है। संस्कृत का प्रभाव इतना व्यापक है कि इसके प्रभाव को विश्व की प्रमुख भाषाओं में देखा जा सकता है।
इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार और संस्कृत की कड़ी : इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार दुनियां का सबसे बड़ा भाषा परिवार है, जिसमें अंग्रेज़ी, जर्मन, फ्रेंच, ग्रीक, लैटिन, फारसी और यहां तक कि हिंदी और बांग्ला जैसी भाषाएं आती है। संस्कृत इस पूरे भाषा परिवार की सबसे प्राचीन भाषा मानी जाती है और इसकी जड़ें इतनी गहरी है कि अन्य भाषाएं संस्कृत से कई शब्दों, ध्वनियों और व्याकरणिक संरचनाओं को अपनाती है।
भाषाविदों ने पाया कि संस्कृत और अन्य इंडो-यूरोपीय भाषाओं में कई समानताएं है। संस्कृत के कई शब्दों का रूप और उच्चारण आधुनिक यूरोपीय भाषाओं के शब्दों से मेल खाते है। जैसे:
– संस्कृत का “मातृ” (माँ) लैटिन में “मेटर” और अंग्रेज़ी में “मदर” बन जाता है।
– संस्कृत का “पितृ” (पिता) लैटिन में “पेटर” और अंग्रेज़ी में “फादर” के रूप में पाया जाता है।
– संस्कृत का “अग्नि” (आग) अंग्रेज़ी में “Ignite” बन जाता है।
यह सिर्फ शब्दों का मिलान नहीं है, बल्कि ध्वनियों, व्याकरणिक रूपों, और भाषा के विकास के पैटर्न में भी यह समानता दिखती है।
संस्कृत और प्रोटो-इंडो-यूरोपीय भाषा : इंडो-यूरोपीय भाषाओं का एक आम स्रोत माना जाता है जिसे ‘प्रोटो-इंडो-यूरोपीय’ कहा जाता है। यह वह आदिम भाषा है, जिससे आगे चलकर दुनियां की कई भाषाएं विकसित हुईं। भाषाविदों ने संस्कृत को इस प्राचीन भाषा के सबसे निकट पाया है। संस्कृत की संरचना और ध्वनियाँ प्रोटो-इंडो-यूरोपीय भाषा से इतनी मेल खाती है कि इसे ‘mother of all Indo-European languages’ कहा जा सकता है।
संस्कृत का समृद्ध व्याकरण और इसकी शब्द रचना प्रणाली भी अन्य इंडो-यूरोपीय भाषाओं के विकास की नींव मानी जाती है। पाणिनि का ‘अष्टाध्यायी’ जो संस्कृत व्याकरण पर आधारित है, दुनियां का पहला व्यवस्थित व्याकरण माना जाता है, जिसने अन्य भाषाओं की व्याकरणिक संरचना को प्रभावित किया।
संस्कृत की ध्वनियां और यूरोपीय भाषाएं : संस्कृत की ध्वनियों का प्रभाव कई यूरोपीय भाषाओं में भी देखने को मिलता है। जैसे संस्कृत के ‘घ’ ध्वनि का आधुनिक जर्मन और फ्रेंच में भी रूपांतरण हुआ है। संस्कृत के उच्चारण, विशेष रूप से स्वर और व्यंजन,अन्य इंडो-यूरोपीय भाषाओं के स्वरूप में परिलक्षित होते है।
इसके अलावा, संस्कृत के शब्दों के रूपांतरण के साथ-साथ उसके व्याकरणिक नियम, जैसे संज्ञा और क्रिया के परिवर्तनशील रूप, अन्य भाषाओं में भी मिलते है। अंग्रेज़ी, लैटिन और ग्रीक जैसी भाषाओं में संस्कृत के नियमों की प्रतिध्वनि मिलती है।
आधुनिक भाषाविदों की दृष्टि में संस्कृत : आधुनिक भाषाविद भी संस्कृत को इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार का आदिम स्रोत मानते है। विलियम जोन्स, जिन्होंने संस्कृत का गहन अध्ययन किया, ने इसे ग्रीक और लैटिन से भी पुरानी और उन्नत भाषा माना था। उनका कहना था कि संस्कृत इतनी वैज्ञानिक और तार्किक भाषा है कि यह अन्य भाषाओं के विकास की दिशा को बताती है।
इसी प्रकार, दुनियां भर के अन्य भाषाविदों और शोधकर्ताओं ने भी संस्कृत के महत्व को स्वीकार किया है। संस्कृत की संरचना इतनी सटीक और व्यवस्थित है कि इसे कंप्यूटर विज्ञान और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में भी महत्वपूर्ण माना जाता है।
संस्कृत का प्रभाव भारतीय और यूरोपीय भाषाओं पर : संस्कृत का प्रभाव न केवल भारतीय भाषाओं पर है बल्कि यूरोपीय भाषाओं पर भी इसका गहरा असर है। संस्कृत की जड़ें इतनी प्राचीन और विस्तृत है कि इसकी छाया हर जगह देखी जा सकती है।
भारत की हिंदी, बंगाली, मराठी जैसी भाषाओं के साथ-साथ संस्कृत के तत्व ग्रीक, लैटिन और अंग्रेज़ी जैसे भाषाओं में भी पाए जाते है। भाषाओं की उत्पत्ति और उनके विकास के अध्ययन में संस्कृत का स्थान सबसे महत्वपूर्ण है।
निष्कर्ष: संस्कृत सभी भाषाओं की जननी
संस्कृत केवल भारतीय सभ्यता की ही नहीं, बल्कि दुनियां की सबसे महत्वपूर्ण भाषाओं में से एक है। इसका प्रभाव इंडो-यूरोपीय भाषाओं पर इतना व्यापक है कि इसे सभी भाषाओं की जननी माना जाता है। संस्कृत की ध्वनियां, शब्द संरचना, व्याकरण और तार्किकता ने अन्य भाषाओं के विकास को गहराई से प्रभावित किया है।
संस्कृत न केवल प्राचीन ग्रंथों और धार्मिक अनुष्ठानों की भाषा है बल्कि यह दुनियां के भाषाई विकास का आधार भी है। यह भाषा इतनी समृद्ध और वैज्ञानिक है कि इसे दुनियां की सबसे पुरानी और उन्नत भाषा माना जाता है।
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