20 सितंबर 2024
आईएनएस अरिघाट की प्रमुख विशेषताएं
भारतीय नौसेना ने गुरुवार, 29 अगस्त 2024 को अपनी दूसरी परमाणु मिसाइल पनडुब्बी आईएनएस अरिघाट को विशाखापट्टनम में शामिल किया। यह पनडुब्बी भारत की सामरिक और समुद्री सुरक्षा क्षमताओं को मजबूत करने की दिशा में एक और बड़ा कदम है। आईएनएस अरिघाट के शामिल होने से भारत की परमाणु त्रि-आयामी (न्यूक्लियर ट्रायड) क्षमता पूरी होती है,जो देश को जल,थल और वायु से परमाणु हमले करने में सक्षम बनाती है। यह भारत के परमाणु प्रतिरोध को और भी प्रभावशाली बनाता है, जिससे दुश्मनों को हमले से पहले दो बार सोचने पर मजबूर किया जा सकता है।
1. स्वदेशी तकनीक से सुसज्जित : आईएनएस अरिघाट पूरी तरह से भारतीय विशेषज्ञता और तकनीक से तैयार की गई पनडुब्बी है। इसमें कई स्वदेशी प्रणालियां और उपकरणों का इस्तेमाल किया गया है, जिससे यह पनडुब्बी बेहद उन्नत और विश्वसनीय बनती है। यह भारत की तकनीकी आत्मनिर्भरता का एक जीता-जागता उदाहरण है।
2. आकार और क्षमता : यह पनडुब्बी 112 मीटर लंबी है और इसका वज़न लगभग 6,000 टन है। इसका विशाल आकार और मजबूती इसे लंबी अवधि तक समुद्र में सक्रिय रहने की क्षमता प्रदान करता है। साथ ही, इसमें अत्याधुनिक सोनार और रडार तकनीकें लगी है,जिससे दुश्मन की पनडुब्बियों और युद्धपोतों का पता लगाने की इसकी क्षमता अत्याधिक सटीक है।
3. मिसाइल प्रणाली : आईएनएस अरिघाट में K-15 ‘सागरिका’ मिसाइलें लगी है, जिनकी मारक क्षमता 750 किलोमीटर है। यह मिसाइलें पानी के भीतर से भी दुश्मन के लक्ष्यों पर सटीक वार कर सकती है। इसके अलावा, इस पनडुब्बी में भविष्य में अधिक शक्तिशाली और लंबी दूरी की मिसाइलों को भी समायोजित करने की क्षमता है, जिससे भारत की सामरिक पहुंच और बढ़ेगी।
4. परमाणु प्रतिरोध : आईएनएस अरिघाट की सबसे बड़ी ताकत इसका परमाणु प्रतिरोध क्षमता है। यह पनडुब्बी किसी भी संभावित हमले के खिलाफ भारत को मजबूत सुरक्षा कवच प्रदान करती है। इसका मुख्य उद्देश्य दुश्मन को यह संदेश देना है कि किसी भी तरह की आक्रामक कार्रवाई का जवाब बेहद विनाशकारी हो सकता है। यह पनडुब्बी भारत की परमाणु नीति ‘पहले इस्तेमाल न करने’ (No First Use) की रक्षा करते हुए परमाणु प्रतिरोध को बनाए रखती है।
5. हिंद महासागर में उपस्थिति : हिंद महासागर क्षेत्र में आईएनएस अरिघाट की उपस्थिति भारत के सामरिक हितों की रक्षा में महत्वपूर्ण साबित होगी। यह पनडुब्बी हिंद महासागर में भारतीय नौसेना की उपस्थिति को और अधिक सुदृढ़ करेगी, खासकर जब क्षेत्र में चीन और अन्य देशों की सैन्य गतिविधियां बढ़ रही है। इसके साथ ही यह पनडुब्बी समुद्री व्यापारिक मार्गों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में भी बड़ी भूमिका निभाएगी।
6. रणनीतिक संतुलन और शांति स्थापना : इस पनडुब्बी के शामिल होने से क्षेत्र में रणनीतिक संतुलन बना रहेगा। यह न केवल भारत की सुरक्षा को बढ़ाएगा, बल्कि यह क्षेत्रीय शांति को बनाए रखने में भी मदद करेगा। परमाणु प्रतिरोध और सामरिक संतुलन की वजह से किसी भी संभावित युद्ध की संभावना कम हो जाती है, जिससे शांति स्थापित करने में सहायता मिलती है।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएं : आईएनएस अरिघाट के शामिल होने पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिश्रित प्रतिक्रियाएं आई है। इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भारत की बढ़ती रणनीतिक क्षमता ने इस क्षेत्र में भारतीय नौसेना की बढ़ती ताकत को रेखांकित किया है। यह पनडुब्बी न केवल भारत की समुद्री सीमाओं की रक्षा करेगी, बल्कि क्षेत्रीय सामरिक संतुलन भी सुनिश्चित करेगी।
हालांकि, चीन ने इस कदम पर असंतोष जाहिर किया है। चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि परमाणु हथियारों का इस्तेमाल ब्लैकमेलिंग के लिए नहीं किया जाना चाहिए। चीनी विशेषज्ञों ने भी भारत को अपनी ताकत का इस्तेमाल जिम्मेदारी से करने की सलाह दी है। उन्होंने कहा कि भारत को इस नई ताकत का उपयोग क्षेत्रीय शांति और स्थिरता में योगदान के लिए करना चाहिए, न कि सिर्फ शक्ति प्रदर्शन के लिए।
भारत की परमाणु पनडुब्बियों की वैश्विक तुलना :
आईएनएस अरिघाट का समावेश भारत को उन चुनिंदा देशों की श्रेणी में रखता है,जिनके पास अत्याधुनिक परमाणु पनडुब्बियां है।वर्तमान में अमेरिका, चीन, रूस, फ्रांस और ब्रिटेन ही ऐसे देश है जिनके पास इस प्रकार की पनडुब्बियां है। भारत का इस सूची में शामिल होना उसकी वैश्विक सैन्य प्रतिष्ठा को और मजबूत करता है। यह भारत के लिए एक बड़ी उपलब्धि है और इसकी समुद्री ताकत को और अधिक प्रतिष्ठित बनाता है।
सामरिक बढ़त :
भारत के परमाणु ट्रायड की पूर्णता से न केवल भारतीय नौसेना की ताकत बढ़ी है बल्कि यह देश की सामरिक स्थिति को भी मजबूत करता है। आईएनएस अरिघाट जैसी पनडुब्बियों से भारत को किसी भी प्रकार के समुद्री खतरे का सामना करने में आसानी होगी, चाहे वह किसी भी देश से हो। यह पनडुब्बी न केवल रक्षा के क्षेत्र में बल्कि देश की रणनीतिक और कूटनीतिक स्थिति को भी और मजबूती प्रदान करती है।
निष्कर्ष :
आईएनएस अरिघाट का भारतीय नौसेना में शामिल होना भारत की समुद्री सुरक्षा और सामरिक ताकत के क्षेत्र में एक मील का पत्थर साबित होगा। यह पनडुब्बी भविष्य में आने वाली चुनौतियों का सामना करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी और हिंद महासागर में भारतीय नौसेना की क्षमता को और अधिक सुदृढ़ करेगी। इसके साथ ही, यह भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा और सुरक्षा नीति को भी मजबूत बनाएगी, जिससे देश की सुरक्षा और स्थिरता को दीर्घकालिन फायदा होगा।
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