कौन महान- भीष्म पितामह या यीशु? 25 दिसबंर को कौन-सा त्यौहार मनायें?

18 दिसंबर 2021

azaadbharat.org

भारत में 200 साल अंग्रेजों ने राज किया। वे भारत में आकर वैदिक भारतीय संस्कृति को खत्म करने के लिए उनका कैलेंडर, उनकी शिक्षा, उनका धर्म, उनके त्यौहार भारतवासियों पर थोपते गये इसलिए आज भी वही मानसिकता गुलामी बनी हुई है। भारत के दिव्य त्यौहार, शिक्षा, धर्म को महत्व नहीं देकर कुछ मानसिक गुलामी वाले भारतीय उनके त्यौहार मनाने में गौरव महसूस करते हैं।

सोशल मीडिया पर वायरल मैसेज को पढ़िए सनातन धर्म पर गौरव महसूस करेंगे।

यह बात स्वयं पढ़ें और बच्चों को भी अनिवार्यतः पढ़ाएं।

क्रिश्चियन लड़की ने कहा- यीशु हमारे लिए सूली पर लटके और मर गए।

मैंने कहा- पगली भगवान शिव ने हमारे लिए जहर पिया और जिंदा हैं।

एक ओर जहां ईसामसीह को सिर्फ चार कीलें ठोकी गई थीं, वहीं भीष्म पितामह को धनुर्धर अर्जुन ने सैकड़ों बाणों से छलनी कर दिया था।
तीसरे दिन कीलें निकाले जाने पर ईसा मसीह मर गए थे, वहीं पितामह भीष्म 58 दिनों तक लगातार बाणों की शैय्या पर पूरे होश में रहे और जीवन, अध्यात्म के अमूल्य प्रवचन, ज्ञान भी दिया तथा अपनी इच्छा से अपने शरीर का त्याग किया था।

सोचें कि पितामह भीष्म की तरह अनगिनत त्यागी संत महापुरुष हमारे भारत वर्ष में हुए हैं, तथापि सैकड़ों बाणों से छलनी हुए पितामह भीष्म को जब हमने भगवान् नहीं माना, तो चार कीलों से ठोंके गए ईसा को गॉड क्यों मानें???
ईसा का भारत से क्या संबंध है???
25 दिसंबर हम क्यों मनाएं???
क्यों बनाएं हम अपने बच्चों को सेंटा क्लॉज???
क्यों लगाएं अपने घर पर प्लास्टिक की क्रिसमस ट्री???
कदापि नहीं, इस पाखंड में नहीं फंसना है, न किसी को फंसने देना है। हमारे पास हमारे पूर्वजों की विरासत में मिली वैज्ञानिक सनातन संस्कृति है, जो हमारे जीवन को महिमामय और गौरवशाली बनाती है।

अपने बच्चों को इस कुचक्र से बचाएं और उसदिन बच्चों से क्रिसमस की ट्री न सजवाकर 24 घण्टे ऑक्सीजन देने वाली तुलसी माता का पूजन अवश्य कराएं।

25 दिसम्बर को क्यों मनायें ‘तुलसी पूजन दिवस’?

इन दिनों में बीते वर्ष की विदाई पर पाश्चात्य अंधानुकरण से नशाखोरी, आत्महत्या आदि की वृद्धि होती जा रही है। तुलसी उत्तम अवसादरोधक एवं उत्साह, स्फूर्ति, सात्त्विकता वर्धक होने से इन दिनों में यह पर्व मनाना वरदानतुल्य साबित होगा।

धनुर्मास में सभी सकाम कर्म वर्जित होते हैं परंतु भगवत्प्रीतिर्थ कर्म विशेष फलदायी व प्रसन्नता देने वाले होते हैं। 25 दिसम्बर धनुर्मास के बीच का समय होता है इसलिए इस दिन तुलसी पूजन विशेष फलदायी है।

विदेशों में भी होती रही है तुलसी पूजा

मात्र भारत में ही नहीं वरन् विश्व के कई अन्य देशों में भी तुलसी को पूजनीय व शुभ माना गया है। ग्रीस में इस्टर्न चर्च नामक सम्प्रदाय में तुलसी की पूजा होती थी और सेंट बेजिल जयंती के दिन ‘नूतन वर्ष भाग्यशाली हो’ इस भावना से चढ़ायी गयी तुलसी के प्रसाद को स्त्रियाँ अपने घर ले जाती थीं।

तुलसी पूजन विधि:-
25 दिसम्बर को सुबह स्नानादि के बाद घर के स्वच्छ स्थान पर तुलसी के गमले को जमीन से कुछ ऊँचे स्थान पर रखें। उसमें यह मंत्र बोलते हुए जल चढ़ायें-
महाप्रसादजननी सर्वसौभाग्यवर्धिनि।
आधिव्याधिहरा नित्यं तुलसि त्वां नमोऽस्तुते।।
फिर ‘तुलस्यै नमः’ मंत्र बोलते हुए तिलक करें, अक्षत (चावल) व पुष्प अर्पित करें तथा कुछ प्रसाद चढ़ायें। दीपक जलाकर आरती करें और तुलसी जी की 7, 11, 21, 51 या 111 परिक्रमा करें। उस शुद्ध वातावरण में भगवन्नाम का जप करें। तुलसी के पास बैठकर प्राणायाम करने से बल, बुद्धि और ओज की वृद्धि होती है।
तुलसी पत्ते डालकर प्रसाद वितरित करें।

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