19 दिसंबर 2021
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ईसाईयत और इस्लाम ये दो पंथ ऐसे हैं जिनका जन्म भारत के बाहर हुआ है। ईसाई भारत में आए लगभग दूसरी शताब्दी में। तब यहां का राजा हिन्दू था, प्रजा हिन्दू थी और व्यवस्था भी हिन्दू थी। फिर भी इन ईसाईयों को केरल के राजा ने, प्रजा ने आश्रय दिया, चर्च बनाने के लिए जमीन उपलब्ध कराई, धर्म पालन और धर्म प्रचार की अनुमति प्रदान की। इस कारण आज केरल में ईसाईयों की संख्या 20 प्रतिशत से अधिक है। उसी प्रकार जब भारत में अंग्रेजी राज कायम हुआ तब से यहां के हिन्दुओं को ईसाई बनाने का काम चल रहा है।
हिन्दू समाज के इस मतान्तरण के खिलाफ राजा राममोहन रॉय, स्वामी दयानंद, स्वामी श्रद्धानंद से लेकर महात्मा गांधी, डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार आदि महानुभावों ने चिंता जताई है। भारत में मध्य प्रदेश, उड़ीसा, अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों ने धर्मान्तरण विरोधी कानून बनाए हैं, फिर भी ईसाई मिशनरियों द्वारा नए-नए तरीके खोज कर गरीब, पिछड़े, झुग्गियों में रहनेवाले हिन्दू लोगों के धर्म परिवर्तन का काम धड़ल्ले से चलता है।
ईसाईयत का यह इतिहास क्रूरता, हिंसा, धर्मविरोधी आचरण एवं असहिष्णुता से भरा पड़ा है। गोवा के अन्दर ईसाई मिशनरी फ्रांसिस जेवियर, जिसके शव का निर्लज्ज प्रदर्शन अभी भी गोवा के चर्च के भीतर हो रहा है, ने गोवा के हिन्दू लोगों पर क्रूरतापूर्ण तरीके अपनाकर अत्याचार किए और गैर-ईसाईयों को ईसाई बनाया। ए.के. प्रियोलकर द्वारा लिखित ‘Goa Inquisition’ नामक पुस्तक में इसका विस्तार से वर्णन किया गया है। भोले-भाले वनवासी, गिरिवासी और गरीब लोगों को झांसा देकर ईसाई बनाना इन मिशनरियों का मुख्य धंधा है।
पोप जॉन पोल जब 1999 में भारत आए थे तब उन्होंने भारत के ईसाइयों को आह्वान किया था कि जिस प्रकार शुरुआत के ईसाई पादरियों- संत फ्रांसिस जेवियर, रॉबर्ट दी नोबिलि, आदि जैसे उनके पूर्वजों ने प्रथम सहस्राब्दी में समूचा यूरोप, दूसरे में अफ्रीका और अमेरिका को ईसाई बनाया, उसी प्रकार तीसरी सहस्राब्दी में एशिया में ईसा मसीह के क्रॉस को मजबूत करना उनका उद्देश्य है, ताकि दुनिया में ईसाईयत का साम्राज्य कायम हो सके। पोप के आदेश का पालन करने के लिए तत्पर ईसाई मिशनरी इस काम को अंजाम देने के लिए भले-बुरे सभी उपायों का अवलम्बन कर हिन्दू समाज को तोड़ने के षड्यंत्र में लगे हैं।
सम्पूर्ण विश्व को ईसाईयत के झंडे के नीचे लाने की योजना के तहत फ्रांसिस जेवियर ने भारत में जो काले कारनामे किये थे, उस इतिहास के एक क्रूर अध्याय को आपके जानने के लिए प्रस्तुत किया जा रहा है।
500 साल पहले गोवा में कुमुद राजा का शासन चलता था। राजा कुमुद को जबरदस्ती हटाकर पोर्तुगीज ने गोवा को अपने कब्जे में कर लिया।
पुर्तगाल सेना के साथ कैथोलिक पादरी ने भी धर्मान्तरण करने के लिए बड़ी संख्या में हमला किया। हर गाँव में लोगों को धमकी से और जबरन ईसाई बनाते पादरी ने गोवा के पूरे शहर पर कब्जा किया। जो लोग चलने के लिए तैयार नहीं होते उनको क्रूरता से मार दिया जाता।
जैनधर्मी राजा कुमुद और गोवा के सारे 22 हजार जैनों को भी धर्म परिवर्तन करने के लिए ईसाईयों ने धमकी दे दी कि 6 महीनों में जैन धर्म छोड़ कर ईसाई धर्म स्वीकार कर लो अथवा मरने के लिए तैयार हो जाओ। राजा कुमुद एवं और भी जैन मरने के लिए तैयार थे परंतु धर्म परिवर्तन के लिए हरगिज राजी नहीं थे।
छः महीने के दौरान ईसाई जेवियर्स ने जैनों का धर्म परिवर्तन करने के लिए साम-दाम, दंड-भेद जैसे सभी प्रयत्न कर देखे। तब भी एक भी जैन ईसाई बनने के लिए तैयार नहीं हुआ। तब क्रूर जेवियर्स पोर्तुगीज लश्कर को सभी का कत्ल करने के लिए सूचित किया। एक बड़े मैदान में राजा कुमुद और जैन धर्मी श्रोताओं, बालक-बालिकाओं को बांध कर खड़ा कर दिया गया। एक के बाद एक को निर्दयता से कत्ल करना शुरू किया। ईसाई जेवियर्स हँसते मुख से संहारलीला देख रहा था। ईसाई बनने के लिए तैयार न होनेवालों के ये हाल होंगे- यह संदेश जगत को देने की इच्छा थी; बदले की प्रवृति को वेग देने के लिए ऐसी क्रूर हिंसा की होली खेली थी।
कैथोलिक ईसाई धर्म के मुख्य पॉप पोल ने ईसाई पादरी जेवियर्स के बदले के कार्य की प्रशंसा की और उसके लिए उसकी बहाई हुई खून की नदियों के समाचार मिलते पॉप की खुशी की सीमा नहीं रही। जेवियर्स को विविध इलाक़ा देकर सम्मान किया। जेवियर्स को सेंट जेवियर्स के नाम से घोषित किया और भारत में शुरू हुई अंग्रेजी स्कूल और कॉलेजों की श्रेणी में सेंट जेवियर्स का नाम जोड़ने में आया। आज भारत में सबसे बड़े स्कूल नेटवर्क में सेंट जेवियर्स है।
हजारों जैनों और हिंदुओं के खून से रंगे एक क्रूर ईसाई पादरी के नाम से चल रहे स्कूल में लोग तत्परता से डोनेशन की बड़ी रकम दे कर अपने बच्चों को पढ़ने के लिए भेज रहे हैं, कैसी अज्ञानता है? और जेवियर्स के बदले की वृत्ति को पूर्ण समर्थन दे रहे पुर्तगालियों को पॉप ने पूरे एशिया खंड में बदले की वृत्ति के सारे हक दे दिए। प्राण की बलि देकर भी धर्म परिवर्तन नहीं करने वाले गोवा के राजा कुमुद और बाईस हजार धर्मनिष्ठ जैनों का ये इतिहास जानने के बाद हमें इससे बोध पाठ लेना चाहिए। आज के रहन-सहन में पश्चिमीकरण और ईसाईकरण का प्रभाव बढ़ रहा है। भारतीय तिथि-मास भूलते जा रहें है। अंग्रेजी तारीख पर ही व्यवहार बढ़ रहा है। भारतीय परिवेश घटता जा रहा है ।पश्चिमीकरण की दीमक हमें अंदर से कमज़ोर कर रही है। धर्म और संस्कृति रक्षा के लिए जिम्मेदारी निभाएँ।
स्रोत : हृदय परिवर्तन पत्रिका, दिसम्बर 2017
हिंदुस्तानी ईसाइयत वाले 1 जनवरी को नया वर्ष मनाने लग गए, बधाई देने लग गए। पहले उनको यह इतिहास पढ़ना चाहिए कि पादरियों ने कैसा अत्याचार किया है हिंदुओं पर। सही इतिहास पढेंगे तो पता चलेगा कि भारतीय खुद का नूतन वर्ष सृष्टि रचना की तिथि चैत्री शुक्लपक्ष प्रतिपदा भूल गए। हमें 1 जनवरी को न बधाई देनी है और न ही लेनी है, कोई देता है तो उसको समझाना है कि अपना नूतन वर्ष चैत्री शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को है।
जनता की मांग है कि सरकार भी ईसाई मिशनरियों और धर्मान्तरण पर रोक लगाए। हिंदुस्तानियों को कॉन्वेंट स्कूल में बच्चों को नहीं पढ़ना चाहिए और न ही धर्मपरिवर्तन करना चाहिए तभी देश, समाज सुरक्षित रहेगा।
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