10 Feburary 2025
जानिए लोटा और गिलास के पानी में अंतर – विज्ञान, परंपरा और स्वास्थ्य का रहस्य
क्या आप जानते हैं कि पानी पीने के लिए गिलास से अधिक लाभदायक लोटा होता है?
भारत में हजारों वर्षों से लोटे में पानी पीने की परंपरा रही है, लेकिन आधुनिक समय में गिलास का प्रचलन बढ़ गया है। गिलास भारतीय संस्कृति का हिस्सा नहीं है, बल्कि यह यूरोप से आया है। जब पुर्तगाली भारत में आए, तब से गिलास का चलन बढ़ा और हम धीरे-धीरे लोटे को भूलने लगे। लेकिन आयुर्वेद और विज्ञान के अनुसार, लोटे का पानी पीना स्वास्थ्य के लिए अधिक लाभदायक है।
गिलास बनाम लोटा: विज्ञान और आयुर्वेदिक दृष्टिकोण
वाग्भट्ट जी ने कहा है कि “जो बर्तन एकरेखीय हैं, उनका त्याग करें।” यानी बेलनाकार गिलास शरीर के लिए अच्छा नहीं होता, जबकि गोल आकार का लोटा स्वास्थ्यवर्धक होता है।
पानी का गुण धारण करने की क्षमता
जल स्वयं में कोई गुण नहीं रखता, बल्कि जिस बर्तन में रखा जाता है, उसके गुणों को धारण कर लेता है।
लोटा गोल होता है, इसलिए इसका पानी शरीर के लिए शीतल, संतुलित और ऊर्जा देने वाला होता है।
गिलास सीधी रेखाओं में बना होता है, जिससे पानी में ऊर्जा असंतुलन आ जाता है और यह शरीर के लिए कम उपयोगी बन जाता है।
सरफेस टेंशन (Surface Tension) और स्वास्थ्य पर प्रभाव
सरफेस टेंशन (पानी की बाहरी सतह का तनाव) शरीर पर गहरा प्रभाव डालता है।
गोल बर्तन (लोटा, केतली, कुआं) में पानी रखने से उसका सरफेस टेंशन कम हो जाता है।
कम सरफेस टेंशन वाला पानी शरीर के लिए अधिक लाभदायक होता है, क्योंकि यह पाचन तंत्र को मजबूत करता है और शरीर से विषैले तत्व बाहर निकालने में मदद करता है।
गिलास का पानी अधिक सरफेस टेंशन वाला होता है, जिससे शरीर में तनाव बढ़ सकता है और पेट संबंधी बीमारियां उत्पन्न हो सकती हैं।
कुएं का पानी क्यों सबसे शुद्ध माना जाता है?
कुआं गोल होता है, इसलिए उसका पानी भी कम सरफेस टेंशन वाला होता है और स्वास्थ्य के लिए सबसे अच्छा माना जाता है।
यही कारण है कि पुराने समय में संत-महात्मा हमेशा कुएं का पानी ही पीते थे।
कुएं का पानी शरीर को शुद्ध करता है और आंतों को साफ करने में सहायक होता है।
नदी का पानी कुएं के पानी से कम लाभदायक होता है, क्योंकि नदी लहरों के साथ बहती रहती है और उसका सरफेस टेंशन अधिक होता है।
समुद्र का पानी सबसे अधिक सरफेस टेंशन वाला होता है, इसलिए यह पीने योग्य नहीं होता।
लोटे में पानी पीना कैसे स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है?
जब आप लोटे में पानी पीते हैं, तो यह बड़ी आंत और छोटी आंत के सरफेस टेंशन को कम करता है, जिससे पेट की सफाई अच्छे से होती है।
गिलास का पानी अधिक सरफेस टेंशन वाला होता है, जो आंतों को संकुचित करता है और शरीर में गंदगी जमा कर सकता है।
लोटे का पानी आंतों को खोलता है, जिससे शरीर के विषैले तत्व बाहर निकलते हैं और बवासीर, भगंदर, कब्ज जैसी बीमारियों से बचाव होता है।
प्राचीन संत-महात्मा क्यों लोटे का उपयोग करते थे?
संत-महात्मा हमेशा लोटे या केतली में पानी पीते थे, क्योंकि ये बर्तन गोल होते हैं और पानी का सरफेस टेंशन कम करते हैं।
लोटे का पानी शरीर को शुद्ध करने और मानसिक शांति देने में सहायक होता है।
गिलास के प्रयोग से शरीर में अधिक तनाव उत्पन्न हो सकता है, जिससे पाचन और मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है।
प्राकृतिक प्रमाण: बारिश की बूंदें गोल क्यों होती हैं?
बारिश की हर बूंद गोल होती है, क्योंकि प्रकृति ने उसे इस रूप में बनाया है।
गोल आकार के कारण पानी का सरफेस टेंशन कम रहता है, जिससे यह शरीर के लिए अधिक लाभदायक होता है।
यदि प्रकृति भी पानी को गोल रूप में धरती पर भेज रही है, तो हमें भी गोल बर्तन (लोटा) में पानी पीना चाहिए।
लोटे का सांस्कृतिक और आर्थिक महत्व
गिलास के बढ़ते उपयोग से लोटा बनाने वाले कारीगरों की रोज़ी-रोटी खत्म हो गई।
पहले गाँवों में पीतल और कांसे के लोटे बनाए जाते थे, जो स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभदायक होते थे।
लेकिन गिलास के अधिक प्रयोग से ये कारीगर बेरोजगार हो गए और पारंपरिक कारीगरी लगभग समाप्त हो गई।
क्या हमें गिलास छोड़कर लोटे को अपनाना चाहिए?
बिल्कुल! अब समय आ गया है कि हम फिर से अपने घरों में लोटे को स्थान दें और स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं।
लोटा क्यों अपनाएं?
स्वास्थ्य के लिए लाभदायक – कम सरफेस टेंशन वाला पानी शरीर के लिए अच्छा होता है।
पेट और आंतों की सफाई में सहायक – कब्ज, बवासीर जैसी बीमारियों से बचाव करता है।
प्राकृतिक संतुलन बनाए रखता है – पानी को सकारात्मक ऊर्जा से भरता है।
भारतीय परंपरा और संस्कृति का हिस्सा – आयुर्वेद और संतों की परंपरा के अनुसार श्रेष्ठ।
देशी कारीगरों का समर्थन – पारंपरिक कारीगरी को पुनर्जीवित करने में मदद करेगा।
निष्कर्ष: अपने स्वास्थ्य और संस्कृति की रक्षा करें
लोटे में पानी पीना एक वैज्ञानिक और पारंपरिक रूप से सिद्ध लाभदायक प्रक्रिया है।
गिलास छोड़ें, लोटे को अपनाएं – स्वस्थ रहें, संस्कारी बनें!
भारतीय संस्कृति को पुनर्जीवित करें और अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए लोटे का उपयोग करें।
गोल बर्तन (लोटा, कुआं, तालाब) का पानी सबसे शुद्ध होता है और हमें इसी परंपरा को अपनाना चाहिए।
तो आइए, गिलास को छोड़ें और लोटे को अपनाकर अपने स्वास्थ्य और संस्कृति की रक्षा करें!
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