07 November 2024
छठ (स्कंध षष्ठी) पूजा का महत्व, पौराणिक कथा और पूजन विधि :
छठ पूजा, जिसे स्कंध षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है,हिंदू धर्म की एक विशेष और पवित्र परंपरा है। यह पूजा सूर्यदेव और सूर्यपुत्री छठी माता को समर्पित है। यह पर्व विशेष रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ क्षेत्रों में बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। छठ पूजा के दौरान भक्त, सूर्यदेव की उपासना करते है और अपने परिवार की समृद्धि, स्वास्थ्य और खुशहाली की कामना करते है।
पौराणिक महत्व :
छठ पूजा का पौराणिक महत्व अत्यंत गहरा है। कहा जाता है कि त्रेतायुग में जब भगवान श्रीराम और माता सीता वनवास से अयोध्या लौटे थे, तब माता सीता ने अयोध्या में राज्याभिषेक से पहले गुरु वशिष्ठ जी की आज्ञा से छठ पूजा की थी। इस पूजा के माध्यम से उन्होंने भगवान सूर्यदेव और छठी माता का आशीर्वाद प्राप्त किया था ताकि अयोध्या में सुख, समृद्धि और शांति बनी रहे। तभी से यह पूजा महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान के रूप में प्रचलित हो गई और इसे हर वर्ष कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है।
छठ पूजा का पौराणिक इतिहास :
छठ पूजा का उल्लेख विभिन्न पौराणिक कथाओं में मिलता है। ऐसी मान्यता है कि महाभारत काल में, जब पांडवों को अपने राज्य से वंचित होकर वन में जाना पड़ा , तब द्रौपदी ने छठ पूजा की थी। यह पूजा उनके जीवन में सकारात्मक बदलाव लेकर आईं, और उनके कष्ट दूर हुए। इस पूजा का उल्लेख ऋग्वेद और अन्य वैदिक ग्रंथों में भी किया गया है, जहां सूर्यदेव को ऊर्जा और जीवन का स्रोत मानकर उनकी उपासना का वर्णन मिलता है। छठ पूजा के समय सूर्यदेव को जल चढ़ाने की परंपरा और ध्यान का महत्व, वैदिक काल से ही प्रचलित है।
छठ पूजा की विधि :
छठ पूजा चार दिनों का त्योहार है और हर दिन इसकी विशेष धार्मिक प्रक्रिया होती है। इस पूजा में नियमों का सख्ती से पालन किया जाता है और श्रद्धालु बहुत ही संयमित एवं पवित्र भाव से इसका अनुष्ठान करते है।
पहला दिन – नहाय खाय
छठ पूजा के पहले दिन को ‘नहाय खाय’ कहा जाता है। इस दिन व्रत करने वाले व्यक्ति गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान करते है और शुद्ध भोजन ग्रहण करते है। भोजन में कद्दू की सब्जी, चने की दाल और चावल शामिल होते है। यह भोजन पूरी तरह से सात्विक होता है और इसमें लहसुन और प्याज का प्रयोग नहीं होता।
दूसरा दिन – खरना
दूसरे दिन को ‘खरना’ कहा जाता है। इस दिन व्रतधारी दिनभर उपवास रखते हैं और सूर्यास्त के बाद पूजा के रूप में गुड़ से बने खीर, रोटी और फलों का सेवन करते है। इस दिन का भोजन विशेष रूप से घर के पवित्र स्थान पर बनाया जाता है और इसे छठी माता को अर्पित किया जाता है।
तीसरा दिन – संध्या अर्घ्य
तीसरे दिन, जिसे ‘संध्या अर्घ्य’ कहा जाता है, श्रद्धालु सूर्यास्त के समय नदी, तालाब या अन्य जलाशय के किनारे एकत्र होते है और अस्त होते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते है। इस अर्घ्य में ठेकुआ, चावल के लड्डू और विभिन्न फलों का भोग होता है। व्रतधारी पानी में खड़े होकर संध्या अर्घ्य देते है और इस दौरान परिवार के अन्य सदस्य भी उपस्थित रहते है।
चौथा दिन – उषा अर्घ्य
अंतिम दिन को ‘उषा अर्घ्य’ कहा जाता है। इस दिन प्रात:काल में उदय होते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया जाता है। यह पूजा जलाशय के किनारे संपन्न होती है। व्रतधारी अपने संकल्प को पूर्ण करने के बाद व्रत तोड़ते है और इस पवित्र अनुष्ठान को समाप्त करते है।
छठ पूजा का महत्व और लाभ :
छठ पूजा का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व बहुत अधिक है।इस पूजा के दौरान श्रद्धालु संयम, पवित्रता और तपस्या का पालन करते है। यह पूजा हमें जीवन में धैर्य, तप और अनुशासन का महत्व सिखाती है। सूर्यदेव को ऊर्जा का स्रोत माना जाता है और छठ पूजा के माध्यम से हम उनकी कृपा प्राप्त कर अपने जीवन में ऊर्जा, स्वास्थ्य और शांति का आह्वान करते है।
सूर्य की ऊर्जा का लाभ – माना जाता है कि सूर्यदेव की आराधना करने से स्वास्थ्य में सुधार होता है और यह पूजा सूर्य की सकारात्मक ऊर्जा को आत्मसात करने का एक पवित्र माध्यम है।
पारिवारिक सुख और समृद्धि – छठ पूजा के माध्यम से परिवार में सुख, समृद्धि और शांति का संचार होता है। सूर्यदेव और छठी माता का आशीर्वाद जीवन की कठिनाइयों को दूर करता है और हमें कष्टों से मुक्त करता है।
सकारात्मकता का संचार – छठ पूजा के दौरान मन,शरीर और आत्मा की शुद्धि होती है।चार दिन के इस व्रत में संयम,ध्यान और साधना के कारण मानसिक शांति प्राप्त होती है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
निष्कर्ष :
छठ पूजा न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है बल्कि यह एक ऐसी परंपरा है जो श्रद्धालुओं को अनुशासन, श्रद्धा और समर्पण का पाठ पढ़ाती है। यह हमें सिखाती है कि कैसे ईश्वर के प्रति आस्था और विनम्रता से हम अपने जीवन को सुखमय और समृद्ध बना सकते है।
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