6 मई 2022
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हिन्दुस्तान में आये दिन मुसलमानों द्वारा आतंकियों से भी ज्यादा खतरनाक हमले हो रहे है।
रमजान के महीने में भारतीय पुलिस कर्मचारियों द्वारा मुसलमानों को भोजन थाली परोसी गई और उन्हीं मुसलमानों ने पुलिस पर लाठियां बरसाई ओर पत्थर बाजी की।
भगवान श्रीराम के जन्मोत्सव रामनवमी के पर्व पर मुस्लिम लोगों ने देश भर में हिन्दू धर्म यात्रा पर पत्थर बरसाए और मंदिरों पर पैट्रोल बम फेंके गए,वहीं घटना फिर हनुमान जयंती पर भी हुई।
अप्रैल 2022 में महीने भर तक मुसलमानों ने आतंकी हमलों का सिलसिला जारी रखा , फिर भी इन दरिंदो का मन नहीं भरा तो इन्होंने 3 मई 2022 परशुराम जयंती के दिन भी रोड़ पर नमाज पढ़ने के बाद ,हथियार लेकर हिन्दुओ पर हमले किये और सैकड़ों गाड़ियों को आग लगा दी।
हिन्दुस्तान के सम्पूर्ण हिन्दुओ की भारत सरकार से विनती है कि इन मुस्लिम समुदाय पर कड़ी सख्ती करें, इन पर पाबंदी लगाई जाय,जैसे अंगोला सरकार ने बढ़ते इस्लामी आतंकवाद से इस्लाम को ही बैन कर दिया,वैसे ही आज भारत सरकार को भी भारत में इस्लाम को बैन कर देना चाहिए और इनकी सारी सुविधाएं भी बंद होनी चाहिए।
भारत में बढ़ती जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए अब भारत में जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू करना ही होगा ।
दुनियाभर में यदि कहीं पर भी आतंकवाद है तो उसके पीछे इस्लाम की सुन्नी विचारधारा के अंतर्गत वहाबी और सलाफी विचारधारा को दोषी माना जाता है। इनका मकसद है जिहाद के द्वारा धरती को इस्लामिक बनाना।
आतंकवाद अब किसी एक देश या प्रांत की बात नहीं रह गया है। यह अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गठजोड़ कर चुका है और इसके समर्थन में कई मुस्लिम राष्ट्र और वामपंथी ताकतें हैं। सऊदी, सीरिया, इराक, अफगानिस्तान, कुर्दिस्तान, सूडान, यमन, लेबनान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, मलेशिया, इंडोनेशिया और तुर्की जैसे इस्लामिक मुल्क इनकी पहानगाह हैं।
इस्लामिक आतंकवाद की समस्या व उसकी जड़ के असली पोषक तत्व सिर्फ सऊदी अरब, चीन, ईरान ही नहीं हैं। इनके समर्थक गैर-मुस्लिम मुल्कों में वामपंथ, समाजसेवी और धर्मनिरपेक्षता की खोल में भी छुपे हुए हैं। इनके कई छद्म संगठन भी हैं, जो इस्लामिक शिक्षा और प्रचार-प्रसार के नाम की आड़ में कार्यरत हैं।
अल कायदा, आईएस, तालिबान, बोको हराम, हिज्बुल्ला, हमास, लश्कर-ए-तोइबा, जमात-उद-दावा, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान, जैश-ए-मुहम्मद, हरकत उल मुजाहिदीन, हरकत उल अंसार, हरकत उल जेहाद-ए-इस्लामी, अल शबाब, हिजबुल मुजाहिदीन, अल उमर मुजाहिदीन, जम्मू-कश्मीर इस्लामिक फ्रंट, स्टूडेंटस इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी), दीनदार अंजुमन, अल बदर, जमात उल मुजाहिदीन, दुख्तरान-ए-मिल्लत और इंडियन मुजाहिदीन जहां इस्लाम की एक विशेष विचारधारा से संबंध रखते हैं वहीं इस्लामिक मुल्कों को छोड़कर हर देश में कम्युनिस्ट या साम्यवादी विचारधारा की आड़ में भी ये संगठन पल और बढ़ रहे हैं।
एक और जहां मुस्लिम मुल्कों में हिन्दू, ईसाई, बौद्ध आदि अल्पसंख्यकों पर हमले करके उन्हें वहां से खदेड़ा जा रहा है वहीं दूसरी और गैर-मुस्लिम मुल्कों के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में दहशत और आतंक का माहौल बनाकर वहां से भी गैर-मुस्लिमों, ईसाइयों, बौद्धों, शियाओं, अहमदियों आदि को खदेड़े जाने की साजिश पिछले कई वर्षों से जारी है।
इस साजिश में वामपंथ ने लगभग सभी आतंकवादी गुटों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन दे रखा। इस बात के कई सबूत पेश किए जा सकते हैं। भारत की बात करें तो पूर्वोत्तर, झारखंड, छत्तीसगढ़ और ओडिशा,राजस्थान, मुम्बई में ऐसे कई ग्रुप सक्रिय हैं जिन्हें नक्सलवादी, माओवादी या लेनिन-मार्क्सवादी लिबरेशन फ्रंट कहा जाता है।
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