हिन्दू मैरिज एक्ट 1955

3 July 2023

🚩300 सालों की राजशाही में अंग्रेजो ने देखा था , कि जिस देश के पुरुष अपनी नारियों की रक्षा के लिए अपने शीश कटवाने से भी नहीं हिचकते और जिस देश की नारी अपने पुरुष की आन-बान और शान के लिए खुद को अग्नि की लपटों में भी स्वाहा करने से नहीं डरतीं , उन सनातन धर्मी पुरुष और स्त्रियों के इस प्यार, बलिदान और त्याग के चलते भारत देश को कोई तोड़ नहीं पायेगा ।

🚩अंग्रेज समझ गये थे , कि भारतीय परिवार और समाज इसी प्रकार अक्षुण्ण रहेंगे और सनातन फलता फूलता रहेगा। अपने आराध्य शिव शंकर को अर्धनारीश्वर रूप में पूजने वाले और पति-पत्नी के जोड़े को शिव-पार्वती स्वरुप में निहारने वाले इस समाज में स्त्री-पुरुष के बीच नफरत की बड़ी खाई पैदा किए बिना , भारत को तोड़ना और सनातन धर्म को नष्ट करना संभव नहीं था।

🚩अंग्रेज समझ गये थे , कि सनातनधर्म को नष्ट करना है तो भारत की स्त्रियों और पुरुषों के बीच अहंकार और नफरत की दरार खीचनी ही होगी और इनको चारित्रिक पतन की खाई में धकेलना ही होगा।

🚩अंग्रेजो को पश्चाताप हो रहा था अपनी ही 300 वर्ष पुरानी नीति पर।

 

🚩उनको पश्चाताप था कि 300 साल पहले ही भारत को अपना गुलाम बनाने के बाद उन्होंने भारतीय हिन्दुओं को क्यूँ उनके “धर्मशास्त्र” कहे जाने वाले मनुस्मृति, नारदस्मृति, विष्णु स्मृति, याज्ञवलक्य स्मृति, प्रसारा स्मृति, अपस्थाम्बा के धर्मसूत्र, गौतम के धर्मसूत्र, गुरु वशिष्ठ के धर्मसूत्र, कल्पसूत्रों, वेदों और वेदांगों के आधार पर अपने परिवार, समाज और वैवाहिक संबंधों की स्थापना करने देने का अधिकार यथावत रहने दिया ! क्यूँ उसको उसी समय छिन्न-छिन्न नहीं कर दिया !

 

🚩शायद पाठकों को यहाँ बताना उचित होगा , कि भारत में अपना वर्चस्व स्थापित करने के बाद अंग्रेजों के सामने यह एक बड़ा प्रश्न आया था , कि भारतीय सनातनियों के समाज का सञ्चालन कैसे हो ? भारत के मुस्लिम समाज का सञ्चालन कैसे हो ? इनकी परिवार व्यवस्था कैसे तय की जाये और न्याय व्यवस्था कैसी हो?  सही मायनों में तो इन व्यवस्थाओं में अंग्रेज इंटरेस्टेड थे ही नहीं…। उनको तो बस व्यापार करना था और अधिक से अधिक पैसा कमाना था । फिर भी समाज को चलाना भी तो था ही, कोर्ट कचहरी बनाकर अपने जज बैठाने तो थे ।

 

🚩तो उस वक्त उन्होंने सोचा , कि जो जैसा है वैसे ही रहने दिया जाए और इस कार्य में ज्यादा माथा पच्ची और टाइम वेस्ट न किया जाए। इसलिए उन्होंने पुरातन सनातनी समाज एवं पारिवारिक व्यवस्थाओं को ज्यों का त्यों चलने दिया था। भारतीय सनातनी समाज के आधार “धर्मशास्त्र” में दी गयी व्यवस्थाओं को कानून मानकर अंग्रेजों ने उनको “हिन्दू लॉ” का नाम दिया और और मुसलमानों के लिए मुस्लिम तानाशाह औरंगजेब के समय में लिखे गये “फतवा-ए-आलमगीरी” को मुसलमानों के समाज का कानून मानकर “मुस्लिम पर्सनल लॉ” का नाम दिया गया और इन कानूनों को भारत में लागू कर दिया गया।

 

🚩यहाँ उल्लेखनीय है , कि पुरातन सनातनी सामाजिक व्यवस्था को तो नेहरु के #हिन्दू_मैरिज_एक्ट ने समाप्त कर दिया । किन्तु मुसलमानों के लिए वही “फतवा-ए-आलमगीरी” का शैतानी “#मुस्लिम_पर्सनल_लॉ” देश में आज तक लागू है।

 

🚩इस जहर बुझे हुए “फतवा-ए-आलमगीरी” और इसकी व्यवस्थाओं और धारणाओं पर चर्चा किसी अन्य लेख में विस्तार से करूँगा, किन्तु यहाँ यह समझ लेना आवश्यक है , कि यही वह “फतवा-ए-आलमगीरी” था , जिसके अनुसार सच्चे मुसलामान के लिए गुलाम और काफ़िर औरतों (जो युद्ध में हार गये सनातनी हिन्दुओं की औरते ही होती थी) के साथ बलात्कार करना एक धार्मिक कृत्य कहा गया था (जिसका जिक्र आज भी कुछ मुस्लिम मुल्ले मौलवी अपने फतवों में यदा कदा करते रहते हैं) |

 

🚩तो कहने का तात्पर्य है , कि अंग्रेजों के लगभग तीस सौ साल की राजशाही के दौरान पुरातन भारतीय सामाजिक व्यवस्था ‘हिन्दू लॉ’ अर्थात “धर्मशास्त्रों” की अवधारणाओं और व्यवस्थाओं के अनुसार ही चलती रही थी किन्तु 1941 आते आते अंग्रेज समझ गये थे , कि अगर हिन्दुस्तान को सही मायने में पंगु बनाना है , तो अंतिम प्रहार इसी पुरातन सनातनी पारिवारिक व्यवस्था पर करना होगा । हानि हिन्दुओं के “धर्मशास्त्र” की करनी होगी, तभी सनातन धर्म की वास्तविक हानि हो सकेगी और भारत का मजबूत समाज सदा के लिए पंगु बन सकेगा…।

 

🚩अंग्रेज समझ गये थे , कि इन सनातनी हिन्दुओं के ऊँचे चरित्र का मूल कारण इसके धर्मशास्त्र में वर्णित “आचार”, “विचार” और “प्रायश्चित” जैसे महान तत्वों का हिन्दुओं के दैनिक जीवन में समावेश था।

 

🚩अंग्रेजो का अगला कदम इसी आचार, विचार और प्रायश्चित की भावना पर प्रहार करके इसको नष्ट करना था। #हिन्दुओं_की_वैवाहिक_व्यवस्थाओं_को_छिन्न_भिन्न करना था। सनातन के स्त्री और पुरुष के अर्धनारीश्वर रूप को सदा के लिए हिन्दुओं के दिलो-दिमाग से मिटाकर के नष्ट कर देना था।

🚩फिर क्या था अंग्रेजो की योजना का चौथा और अंतिम चरण…

“सनातनी धर्मशास्त्र सम्मत पारिवारिक व्यवस्था का पूर्ण विनाश” प्रारंभ हो गया।

 

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