31 जुलाई 2021
azaadbharat.org
जिस प्रकार- चर्च, मस्जिद और दरगाह अपनी आय का अपने-अपने धार्मिक विश्वास और समुदाय को आगे बढ़ाने के लिए उपयोग करते हैं– वह अधिकार हिन्दुओं से छिना हुआ है! कई मंदिरों की आय दूसरे धर्म-समुदायों के क्रियाकलापों को बढ़ावा देने के लिए उपयोग की जाती है। आंध्र प्रदेश और कर्नाटक से हिन्दू मंदिरों की आय से मुसलमानों की हज सब्सिडी देने की बात कई बार जाहिर हुई है।
कर्नाटक सरकार ने हिन्दू रिलीजियस एण्ड चैरिटेबल एंडोवमेंट्स (मुजराई) विभाग के फंड को मंदिर के अतिरिक्त किसी अन्य कार्य के लिए उपयोग में लाने से प्रतिबंधित करने का आदेश जारी किया है। राज्य सरकार द्वारा यह आदेश 23 जुलाई 2021 को जारी किया गया।
स्वराज्य की रिपोर्ट के अनुसार, कर्नाटक के हिन्दू रिलीजियस एण्ड चैरिटेबल एंडोवमेंट्स (HRCE) विभाग द्वारा जारी किए गए आदेश में कहा गया है कि हिन्दू मंदिरों से प्राप्त किए गए धन और संपत्तियों का उपयोग किसी भी तरह के गैर-हिन्दू कार्य अथवा गैर-हिन्दू संस्था के लिए नहीं किया जाएगा। पिछले कई दिनों से हिन्दू मंदिरों से प्राप्त फंड को वार्षिक आधार पर अन्य धार्मिक संस्थाओं को दिए जाने का विरोध हो रहा था। इस विरोध में प्रमुख रूप से राज्य एवं जिला धार्मिक परिषद के सदस्य शामिल थे। इन धार्मिक सदस्यों की मांगों को ध्यान में रखते हुए HRCE विभाग द्वारा ‘तास्तिक’ अथवा वार्षिक ग्रांट के तौर पर मंदिरों के फंड के स्थानांतरण पर रोक लगा दी गई।
पिछले महीने कर्नाटक सरकार ने HRCE विभाग के तहत ‘सी’ श्रेणी के मंदिरों में सेवा करने वाले पुजारियों के साथ-साथ इमामों और मुअज्जिनों को 3,000 रुपए का राहत पैकेज देने की घोषणा की थी। मंदिर के फंड का किसी दूसरी जगह इस्तेमाल किए जाने पर विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) ने कड़ी आपत्ति जताई थी। विहिप ने इस संबंध में प्रदेश के मुजराई मंत्री कोटा श्रीनिवास पुजारी को एक ज्ञापन सौंपा था। इसमें कहा गया था, “हिंदू मंदिरों से प्राप्त धन का उपयोग केवल मंदिरों और हिंदू समुदाय के कल्याण के लिए किया जाना चाहिए।” इसके बाद सरकार ने फैसला वापस ले लिया था।
इस मामले में विवाद बढ़ने के बाद मुजराई मंत्री पुजारी ने इस फैसले को वापस लेने का आश्वासन दिया था। एक आधिकारिक बयान जारी करते हुए पुजारी ने कहा था कि विभिन्न हिंदू संगठनों से प्राप्त अनुरोधों के बाद अधिकारियों को धार्मिक बंदोबस्ती विभाग से दूसरे धार्मिक संस्थानों को दिए जाने वाले सभी पैकेज को तत्काल प्रभाव से रोकने का निर्देश दिया है। मंत्री पुजारी ने बताया कि राज्य में कुल 764 अन्य धार्मिक संस्थानों को हिंदू धार्मिक बंदोबस्ती विभाग से फंडिंग की गई थी, जिसे रोक दिया जाएगा।
हिंदू मंदिरों की संपत्तियों का दूसरे धर्म के कार्यों में नहीं होगा उपयोग, कर्नाटक में HRCE ने लगाई रोक#HinduTemple #Hinduismhttps://t.co/b2wBK8yIBj
— ऑपइंडिया (@OpIndia_in) July 31, 2021
आपको बता दें कि 1925 ई. में अंग्रेज शासकों ने भारत में धार्मिक संस्थानों पर नियंत्रण करने का कानून बनाया। लेकिन क्रिश्चियनों और मुसलमानों द्वारा तीव्र विरोध के कारण 1927 ई. में वह कानून संशोधित किया गया और उन्हें उस कानून से छूट दे दी गई। इस प्रकार, केवल हिन्दू मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण रखने का कानून रहा; प्रायः दक्षिण भारत में, क्योंकि विशाल, समृद्ध, संपन्न मंदिर वहीं थे। उत्तर भारत तो पिछले इस्लामी शासकों की बदौलत लगभग मंदिर-विहीन हो चुका था।
1935 ई. में एक और कानून बनाकर अंग्रेज सरकार ने किसी भी मंदिर को चुन कर अपने नियंत्रण में लेने का प्रावधान किया। इस तरह, अंग्रेजों ने अपने-अपने धर्म-संस्थान संचालन के लिए क्रिश्चियनों-मुसलमानों, हिन्दुओं, और सिखों के लिए तीन तरह के कानून बना दिए। ताकि अपने हितों के लिए वे सहज ही अलग-अलग महसूस करें। दुर्भाग्यवश, स्वतंत्र भारत की देशी सरकार ने भी शुरू में ही (1951 ई.) हिन्दू धार्मिक संस्थानों को अपने नियंत्रण में रख सकने का कानून बनाया। उद्देश्य यह बताया गया ताकि उस की ‘सुचारू व्यवस्था’ की जा सके। यह किसी ने नहीं पूछा कि वही व्यवस्था मस्जिद या चर्च की होनी क्यों अनावश्यक है? यह व्यवस्था कैसी रही है, यह इसी से समझा जा सकता है कि 1986-2005 ई. के बीच बीस वर्षों में तमिलनाडु में मंदिरों की हजारों एकड़ जमीन ‘चली’ गई। अन्य हजारों एकड़ पर भी अवैध अतिक्रमण हो चुका है! यह सरकारी कब्जे की सुचाऱू व्यवस्था का एक नमूना है।
स्वतंत्र भारत में केवल हिन्दू समुदाय है जिसे अपने धार्मिक-शैक्षिक-सांस्कृतिक संस्थान चलाने का वह अधिकार नहीं, जो अन्यों को है। यह अन्याय हिन्दू समुदाय को अपने धर्म और धार्मिक संस्थाओं का, अपने धन से अपने धार्मिक कार्यों, विश्वासों का प्रचार-प्रसार करने से वंचित करता है। उलटे, हिन्दुओं द्वारा श्रद्धापूर्वक चढ़ाए गए धन का हिन्दू धर्म के शत्रु मतवादों को मदद करने में दुरुपयोग करता है। यह हमारी राज्यसत्ता द्वारा और न्यायपालिका के सहयोग से होता रहा है– इस अन्याय को कौन खत्म करेगा?
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