09 October 2024
दुर्गा सप्तशती : कवच, अर्गला और कीलक का महत्त्व और रहस्य
हिन्दू धर्म में देवी दुर्गा की उपासना का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। विशेषकर नवरात्रि के दिनों में देवी दुर्गा की पूजा-आराधना और दुर्गा सप्तशती का पाठ अत्यधिक शुभ माना जाता है। दुर्गा सप्तशती की महिमा अद्वितीय है और इसके प्रत्येक अध्याय के पाठ से साधक को विशेष फल प्राप्त होता है। परंतु,आज के व्यस्त जीवन में सम्पूर्ण सप्तशती का पाठ कर पाना सभी के लिए संभव नहीं हो पाता। ऐसी स्थिति में, धर्माचार्यों के अनुसार, केवल कवच, अर्गला और कीलक का पाठ करके भी साधक सम्पूर्ण फल प्राप्त कर सकता है।
कवच, अर्गला, और कीलक का गूढ़ रहस्य
1. देवी कवच: सुरक्षा और विजय का स्त्रोत है। दुर्गा सप्तशती का कवच विशेष रूप से सुरक्षा प्रदान करने वाला माना जाता है। यह कवच साधक को चारों ओर से रक्षा करता है और सभी दिशाओं से उसकी सुरक्षा सुनिश्चित करता है। ऐसा माना जाता है कि जो साधक इस कवच का पाठ करता है, वह जीवन में किसी भी प्रकार के भय से मुक्त हो जाता है। यह कवच व्यक्ति को धन, ऐश्वर्य और सफलता प्रदान करने वाला होता है। जिस वस्तु की साधक कामना करता है, उसे यह कवच निश्चित रूप से उपलब्ध कराता है।
कवच का प्रभाव : यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्चितम्।
(जिस-जिस वस्तु की कामना की जाती है, उसे यह कवच निश्चित रूप से प्रदान करता है।)
कवच की यह शक्ति व्यक्ति को आत्मबल और आत्मविश्वास देती है, जिससे वह जीवन की चुनौतियों का सामना करने में सक्षम होता है। यह कवच न केवल शारीरिक सुरक्षा करता है, बल्कि मानसिक शांति और अध्यात्मिक उन्नति भी प्रदान करता है।
2. अर्गला स्तोत्र: इच्छाओं की पूर्ति और समृद्धि का द्वार
अर्गला का शाब्दिक अर्थ है “द्वार खोलने की कुंजी”। अर्गला स्तोत्र का पाठ व्यक्ति के जीवन के सभी बंद द्वारों को खोलने और उसकी इच्छाओं को पूर्ण करने में सहायक होता है। इस स्तोत्र का पाठ करने से साधक को मानसिक शांति,आर्थिक समृद्धि और जीवन में स्थायित्व प्राप्त होता है।
अर्गला का प्रभाव : इदं स्तोत्रं पठित्वा तु महास्तोत्रं पठेन्नरः। स तु सप्तशतीसंख्यावरमाप्रोप्नति सम्पदाम्।।
(जो मनुष्य अर्गला स्तोत्र का पाठ करता है, वह प्रचुर सम्पदा और श्रेष्ठ फल प्राप्त करता है।)
अर्गला स्तोत्र देवी दुर्गा की शक्ति और कृपा को आकर्षित करने का एक सशक्त माध्यम है। यह स्तोत्र साधक को उसकी साधना में तेजी से फल प्राप्त करने में सहायता करता है।
3. कीलक स्तोत्र: साधना के अवरोधों को दूर करने का साधन
कीलक का अर्थ है “अवरोध” या “बाधा”, और कीलक स्तोत्र का पाठ साधक की साधना में आने वाले अवरोधों को दूर करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह स्तोत्र देवी दुर्गा की कृपा शीघ्र प्राप्त करने और साधना में आने वाली रुकावटों को समाप्त करने का साधन है। कीलक के पाठ से साधक की साधना और उपासना में आने वाली सभी बाधाएं दूर होती हैं, और वह अपने लक्ष्य की ओर बिना किसी रुकावट के बढ़ता है।
कीलक का प्रभाव : सर्वमेतद्विजानीयान्मन्त्राणामभिकीलकम्।
(यह स्तोत्र साधक के मार्ग की सभी बाधाओं को समाप्त करता है।)
इसका यह भी अर्थ है कि साधक की साधना में कोई बंधन या अवरोध नहीं आता, और उसे देवी की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है। यह साधक की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने में सहायक होता है।
कवच, अर्गला, और कीलक की विधि और ध्यान : इन तीनों पाठों को विधिपूर्वक और श्रद्धा से करना अनिवार्य है। इनका पाठ करने के लिए निम्नलिखित विधि का पालन करना चाहिए।
कवच : तीन बार ‘ॐ’ का उच्चारण कर कवच का पाठ आरंभ करें, और अंत में भी तीन बार ‘ॐ’ का उच्चारण करें। इससे साधक को पूर्ण सुरक्षा प्राप्त होती है।
अर्गला : विनियोग और ध्यान सहित अर्गला का पाठ करें, और पाठ के आरंभ व अंत में ‘ॐ’ का उच्चारण करें। इससे जीवन में स्थिरता और समृद्धि आती है।
कीलक : पाठ के आरंभ और अंत में ‘ॐ’ का उच्चारण करें और फिर अंत में क्षमा प्रार्थना करें। यह साधक की साधना में आने वाले सभी बाधाओं को समाप्त करता है।
दुर्गा सप्तशती के पाठ का महत्त्व : दुर्गा सप्तशती के अंतर्गत देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों की महिमा का गुणगान किया गया है। देवी का कवच,अर्गला और कीलक स्तोत्र विशेष रूप से शक्तिदायक माने जाते है, जो साधक को न केवल आत्मिक बल देते हैं, बल्कि उसके जीवन में आने वाली हर बाधा का अंत भी करते है। सप्तशती के इन महत्वपूर्ण स्तोत्रों का पाठ साधक को देवी दुर्गा की कृपा से भरपूर करता है, जिससे वह अपने जीवन में भय, संकट और शत्रुओं से रक्षा प्राप्त करता है।
अंत में, साधक को कवच, अर्गला और कीलक के पाठ के बाद देवी दुर्गा से क्षमा याचना अवश्य करनी चाहिए। इससे देवी साधक की सभी भूल-चूक को क्षमा कर देती हैं, और उसे सम्पूर्ण फल प्रदान करती है।
क्षमा प्रार्थना :
यदक्षरं पद-भ्रष्टं, मात्रा हीनश्च यद् भवेत्।
तत्सर्वं क्षम्यतां देवि! प्रसीद परमेश्वरि!।
निष्कर्ष
दुर्गा सप्तशती में वर्णित कवच, अर्गला और कीलक के पाठ से साधक को सुरक्षा, समृद्धि और विजय प्राप्त होती है। यह तीनों स्तोत्र देवी दुर्गा की विशेष कृपा को आकर्षित करने का सशक्त माध्यम हैं। यदि सम्पूर्ण सप्तशती का पाठ संभव न हो, तो केवल इन तीन स्तोत्रों का श्रद्धापूर्वक पाठ करके भी साधक देवी की कृपा और अनुग्रह प्राप्त कर सकता है। देवी दुर्गा की साधना व्यक्ति के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाने में सहायक होती है।
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