ब्रह्मांड की उत्पत्ति: भारतीय विज्ञान, दर्शन और आधुनिक भौतिकी का संगम

28 May 2025

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ब्रह्मांड की उत्पत्ति: भारतीय विज्ञान और दर्शन की दृष्टि से

भारत की प्राचीन परंपरा में ब्रह्मांड की उत्पत्ति केवल आध्यात्मिक विषय नहीं रही, बल्कि गहराई से वैज्ञानिक, गणितीय और दार्शनिक दृष्टिकोण से इसका विश्लेषण किया गया है। ऋषियों ने हजारों वर्ष पहले ब्रह्मांड की संरचना, समय-चक्र, ऊर्जा की स्थिति, और पदार्थ की उत्पत्ति पर जो विचार रखे, वे आधुनिक भौतिकी से मेल खाते हैं।

ऋग्वेद में ब्रह्मांड का आरंभ (Nasadiya Sukta)

ऋग्वेद (मंडल 10, सूक्त 129) में एक अत्यंत गूढ़ और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ब्रह्मांड की उत्पत्ति को देखा गया है:

“नासदासीन्नो सदासीत्तदानीं, नासीद्रजो नो व्योमा परो यत्।”
(ना तो कुछ था, ना कुछ नहीं था; ना आकाश था, ना दिशा; केवल एक एकत्व था)

यह वर्णन बिग बैंग थ्योरी (Big Bang Theory) से मिलता-जुलता है, जहाँ ब्रह्मांड की उत्पत्ति शून्य से एक महान विस्फोट के रूप में मानी जाती है।

संख्य दर्शन और परमाणु सिद्धांत

कणाद मुनि द्वारा रचित वैशेषिक दर्शन में पदार्थ के मूल कण यानी “अणु (atom)” और “परमाणु (sub-atomic)” की बात की गई है।

कणाद ने कहा था कि हर वस्तु अणुओं से बनी है, और ये अणु अदृश्य हैं, गति में रहते हैं, और विभिन्न संयोजनों से पदार्थ का निर्माण करते हैं।

यह विचार आज के क्वांटम फिज़िक्स (Quantum Physics) और एटॉमिक थ्योरी (Atomic Theory) का पूर्वज माना जा सकता है।

समय और ब्रह्मांडीय चक्र (Cosmic Cycles)

भारतीय दर्शन में ब्रह्मांड की उत्पत्ति एक बार नहीं हुई, बल्कि यह एक चिरकालिक चक्र (Cyclic Universe Theory) का हिस्सा है।

हिंदू समय चक्र:

  • 1 कल्प = 4.32 अरब वर्ष
  • हर कल्प में ब्रह्मांड का निर्माण (सृष्टि), विस्तार (स्थिति), और संहार (विनाश) होता है।

आधुनिक भौतिकी में भी अब Cyclic Universe और Oscillating Universe Models पर शोध हो रहा है, जहाँ ब्रह्मांड बार-बार फैलता और सिमटता है।

शिव के तांडव और ब्रह्मांडीय ऊर्जा

शिव का तांडव नृत्य केवल धार्मिक प्रतीक नहीं है — यह ऊर्जा की निरंतर गति और ब्रह्मांड की स्पंदनशील प्रकृति को दर्शाता है।

2004 में CERN (स्विट्ज़रलैंड) के वैज्ञानिकों ने शिव की नृत्य मुद्रा को अपने परिसर में स्थापित किया, यह मानते हुए कि यह कॉस्मिक डांस ऑफ एनर्जी का प्रतीक है — जो ब्रह्मांड की उत्पत्ति और संहार को दर्शाता है।

भारतीय खगोल विज्ञान और गणित

  • आर्यभट्ट, वराहमिहिर, और भास्कराचार्य जैसे वैज्ञानिकों ने ग्रहों की गति, सौरमंडल की संरचना और समय की गणना पर अद्भुत कार्य किए थे।
  • आर्यभट्ट ने कहा था कि पृथ्वी गोल है और अपनी धुरी पर घूमती है — जो आज के खगोल विज्ञान का मूल है।

निष्कर्ष

प्राचीन भारतीय विज्ञान ने ब्रह्मांड की उत्पत्ति को मात्र धार्मिक दृष्टिकोण से नहीं देखा, बल्कि उसे गहराई से वैज्ञानिक रूप में समझा।

चाहे वह शून्य से सृष्टि की उत्पत्ति हो, कण सिद्धांत हो, या ब्रह्मांडीय चक्र — भारत के ऋषियों और वैज्ञानिकों ने अपने समय से बहुत आगे की सोच दिखाई।

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