भगवान श्रीकृष्ण की द्वारका नगरी: इतिहास, रहस्य और पुरातात्विक खोजें

14 March 2025

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भगवान श्रीकृष्ण की द्वारका नगरी: इतिहास, रहस्य और पुरातात्विक खोजें

 

प्रस्तावना

द्वारका, भगवान श्रीकृष्ण की पवित्र नगरी, भारतीय इतिहास और पुराणों में एक विशेष स्थान रखती है। यह वही नगरी है, जहाँ श्रीकृष्ण ने मथुरा छोड़ने के बाद अपना राज्य स्थापित किया था। लेकिन यह रहस्यमय नगरी समुद्र में समा गई। क्या यह सिर्फ एक पौराणिक कथा है या इसका कोई ऐतिहासिक प्रमाण भी है? इस ब्लॉग में हम द्वारका के इतिहास, इसके डूबने के रहस्य और आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधानों के आधार पर इसके वास्तविक अस्तित्व की खोज करेंगे।

 

द्वारका का पौराणिक इतिहास

 

महाभारत और पुराणों के अनुसार, जब मथुरा पर जरासंध के लगातार हमलों के कारण नगरवासियों का जीवन संकट में आ गया, तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी प्रजा की सुरक्षा के लिए एक नई नगरी बसाने का निर्णय लिया। श्रीकृष्ण ने समुद्र देवता से 12 योजन भूमि मांगी और विश्वकर्मा ने इस भूमि पर एक अत्यंत सुंदर और भव्य नगरी का निर्माण किया। इसे “स्वर्ण नगरी” भी कहा जाता था, क्योंकि यहाँ के महल स्वर्ण, रत्न और बहुमूल्य धातुओं से बने थे।

 

द्वारका की विशेषताएँ:

नगरी के 900 से अधिक महल सोने और चांदी से सुसज्जित थे।

यह एक अत्यंत सुनियोजित नगर था, जहाँ चौड़ी सड़कों, सुंदर उद्यानों और विशाल जलाशयों का प्रबंध था।

यह एक समृद्ध व्यापारिक केंद्र था, जहाँ अनेक देशों के व्यापारी आते थे।

श्रीकृष्ण यहाँ यादव वंश के राजा के रूप में शासन करते थे।

 

महाभारत के अनुसार, जब यादव वंश का नाश हुआ और भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी लीला समाप्त की, तब द्वारका नगरी समुद्र में डूब गई।

 

द्वारका के डूबने का रहस्य

पौराणिक ग्रंथों में उल्लेख है कि श्रीकृष्ण के देहत्याग के बाद, उनके श्राप के कारण यादव वंश का अंत हो गया और उसके तुरंत बाद द्वारका नगरी समुद्र में विलीन हो गई।

 

लेकिन क्या यह मात्र एक धार्मिक कथा है, या इसके पीछे कुछ ऐतिहासिक और भौगोलिक तथ्य भी छिपे हैं?

 

वैज्ञानिक और पुरातात्विक अनुसंधान

 

20वीं शताब्दी में जब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने द्वारका की खोज शुरू की, तो आश्चर्यजनक तथ्य सामने आए।

 

1983 में समुद्री खोजें:

प्रसिद्ध पुरातत्वविद् एस. आर. राव और उनकी टीम ने गुजरात के समुद्र में गोता लगाकर द्वारका के प्रमाण खोजने शुरू किए।

समुद्र की तलहटी में 40 फीट गहराई पर एक प्राचीन नगरी के अवशेष मिले।

यहाँ विशाल दीवारें, दरवाजे, स्तंभ और पत्थर की संरचनाएँ देखी गईं, जो महाभारतकालीन नगरी के प्रमाण थे।

 

जलमग्न द्वारका के प्रमाण:

खोजकर्ताओं को समुद्र में सड़कों, इमारतों और बंदरगाहों के अवशेष मिले।

कार्बन डेटिंग के आधार पर इन संरचनाओं की आयु लगभग 3000-3500 वर्ष पुरानी आंकी गई, जो महाभारत के समय से मेल खाती है।

प्राचीन नगर नियोजन प्रणाली के प्रमाण भी मिले, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह कोई साधारण नगरी नहीं थी।

 

वैज्ञानिक विश्लेषण:

शोधकर्ताओं के अनुसार, समुद्री जलस्तर में लगातार बढ़ोतरी और भूकंपीय हलचलों के कारण द्वारका धीरे-धीरे जलमग्न हो गई।

प्लेट टेक्टोनिक्स के अध्ययन से पता चला कि गुजरात का यह क्षेत्र प्राचीन काल में कई प्राकृतिक आपदाओं से गुजरा होगा, जिससे द्वारका समुद्र में समा गई।

 

क्या द्वारका फिर से खोजी जा सकती है?

 

आधुनिक तकनीकों के उपयोग से इस पौराणिक नगरी की खोज को और अधिक गहराई से समझने की कोशिश की जा रही है। वैज्ञानिकों और पुरातत्वविदों का मानना है कि यदि समुद्र में और गहरी खुदाई की जाए, तो द्वारका से जुड़ी और भी रोमांचक जानकारियाँ सामने आ सकती हैं।

 

वर्तमान में भारतीय पुरातत्व विभाग और कई अन्य संस्थान इस दिशा में अनुसंधान कर रहे हैं।

 

 

निष्कर्ष

 

द्वारका केवल एक पौराणिक कथा नहीं है, बल्कि इसके वास्तविक अस्तित्व के कई प्रमाण भी सामने आए हैं। भारतीय पुरातत्व विभाग और वैज्ञानिक अनुसंधानों ने यह साबित किया है कि समुद्र के भीतर एक प्राचीन नगरी अवश्य थी, जो संभवतः भगवान श्रीकृष्ण की द्वारका थी। यह खोज हमें हमारे समृद्ध इतिहास और संस्कृति से जोड़ती है।

 

द्वारका नगरी का रहस्य जितना गहरा है, उतनी ही इसकी ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्ता भी है। आने वाले वर्षों में विज्ञान और पुरातत्व की नई खोजें शायद हमें द्वारका नगरी की और भी गहरी सच्चाइयों से परिचित कराएँगी।

 

क्या आपको यह रहस्यमय नगरी रोचक लगी?

अगर हाँ, तो अपने विचार हमें कमेंट में बताएं और इस लेख को साझा करें ताकि और लोग भी भगवान श्रीकृष्ण की द्वारका नगरी के बारे में जान सकें।

 

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