19 December 2023
देश में स्वराज्य की मांग जोर पकड़ रही थी। अंग्रेज भयभीत थे, इसलिए उन्होंने नया साल 1930 संयुक्त प्रांत की हर सामाजिक एवं धार्मिक संस्था से मनाने का आदेश जारी किया और साथ ही यह भी धमकी दी कि जो संस्था यह नया साल नहीं मनाएगी उसके सदस्यों को जेल भेज दिया जाएगा।
आपको बता दें कि सृष्टि का जिस दिन निर्माण हुआ था, उस दिन ही चैत्र शुक्लपक्ष प्रतिपदा थी और सनातन हिंदू धर्म में इसी दिन को नूतन वर्ष मनाया जाता है, लेकिन 700 साल तुर्क-मुग़लों और 200 साल अंग्रेजों के गुलाम रहे, जिसके कारण हम अपना नूतन वर्ष भूल गए और अंग्रेजों के नूतन वर्ष मनाने लगे। अंग्रेज गये 76 साल से ऊपर हो गए,लेकिन उनकी शिक्षा की पढ़ाई करने के कारण मानसिक गुलामी अभी नहीं गई, जिसके कारण अपना नूतन वर्ष हमें याद भी नहीं आता है।
जो भारतीय नूतन वर्ष भूल गए हैं और अंग्रेजों वाला नया वर्ष मना रहे हैं, उनके लिए कवि ने अपनी व्यथा प्रकट करते हुए एक कविता लिखी है, आप भी पढ़ लीजिये…
ना सुंदर फूल खिलते हैं, ना वातावरण में महकते हैं।
प्रकृति भी निस्तेज सी लगती, ना ही पक्षी चहकते हैं।।
01 जनवरी नववर्ष से हमें क्या मतलब, क्यों मनायें हम हर्ष ?
हम हैं सनातन संस्कृति परंपरा से, हम क्यों मनाएं ईसाई नववर्ष ?
सबसे पहले ईसाई नववर्ष जूलियस सीजर ने मनवाया।
अंग्रेज़ों ने भारत में आकर इस परंपरा को और चमकाया।।
सनातन संस्कृति से ईसाई नववर्ष का, कोई सरोकार नहीं है।
क्यों हो पाश्चात्य संस्कृति के पीछे अंधे, ये हमारे संस्कार नहीं हैं।।
क्यों हो व्यसनों की तरफ आकर्षित , क्यों पीएं शराब, बियर ?
क्यों करें अपना नैतिक पतन, क्यों बोलें हैप्पी न्यू ईयर ?
ईसाई देशों में खूब बम पटाखे फोड़ेंगे, मीडिया वाले कुछ नहीं कहेंगे।
होली दीवाली में प्रदूषण देखने वाले, देखना इस पर मौन ही रहेंगे।।
वास्तव में ये नववर्ष नहीं है, ये है सनातन संस्कृति पर प्रहार।
समय की मांग है- एकत्र हो, करो ईसाई नववर्ष का बहिष्कार।।
चैत्र मास शुक्लपक्ष प्रतिपदा को, चलो हम नववर्ष मनाएं।
रंगोली बनाएं, दीप जलाएं, घर घर भगवा पताका फहराएं।। – कवि सुरेन्द्र भाई
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