शरद ऋतु: रोगों की माता

23 September 2024

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शरद ऋतु: रोगों की माता

 

शरद ऋतु, वर्षा ऋतु के बाद आने वाली ऋतु है, जो स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से विशेष रूप से संवेदनशील मानी जाती है। इस समय वातावरण में गर्मी और उमस बनी रहती है और मौसम में अचानक बदलाव होते है,जिससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है। इस कारण शरद ऋतु को अक्सर “रोगों की माता” कहा जाता है। इस समय खासतौर पर पित्तज और वातज रोगों का खतरा अधिक होता है, जैसे बुखार, जुकाम, खांसी, पेट के रोग, त्वचा संबंधी समस्याएं, आदि।

 

हालांकि, उचित आहार और विहार (जीवनशैली) अपनाकर हम इस समय होने वाले रोगों से आसानी से बच सकते है। आइए जानते है, शरद ऋतु में रोगों से सुरक्षा के लिए कौन से आहार और विहार अपनाने चाहिए।

 

शरद ऋतु में उचित आहार :

 

1. हल्का और पचने वाला भोजन : इस समय पाचन शक्ति कमजोर रहती है, इसलिए हल्का और सुपाच्य भोजन लेना चाहिए। मूंग की दाल, खिचड़ी और दलिया जैसे सादे और हल्के आहार सर्वोत्तम माने जाते है।

 

2. पित्तशामक आहार : शरद ऋतु में पित्त दोष बढ़ता है, इसलिए पित्त को शांत करने वाले आहार लेना चाहिए। इस दौरान ठंडी तासीर वाले भोजन जैसे नारियल पानी, खीरा, तरबूज और अनार का सेवन फायदेमंद होता है।

 

3. ताजे फल और सब्जियां : ताजे मौसमी फल जैसे सेब, अमरूद, और पपीता खाना चाहिए। सब्जियों में लौकी, तोरई, और टिंडा का सेवन करना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।

 

4. जल का सेवन : इस समय शरीर में पानी की कमी न हो इसका विशेष ध्यान रखें। दिनभर में पर्याप्त मात्रा में साफ और उबला हुआ पानी पिएं।

 

5. सात्विक भोजन : तामसिक भोजन (ज्यादा तला-भुना, मांसाहार) और मसालेदार खाने से परहेज करें। सात्विक और सादा भोजन जैसे दही, छाछ, और घी का सेवन पित्त को नियंत्रित करने में मदद करता है।

 

शरद ऋतु में उचित विहार (जीवनशैली)

 

1. नियमित दिनचर्या : इस मौसम में नियमित दिनचर्या अपनाना बहुत जरूरी है। समय पर सोना, जागना, और भोजन करना शरीर के लिए लाभकारी होता है।

 

2. योग और व्यायाम : हल्के योगासन और प्राणायाम करना चाहिए, ताकि शरीर की ऊर्जा बनी रहे और रोग प्रतिरोधक क्षमता में सुधार हो। इस समय ताड़ासन, भुजंगासन और अनुलोम-विलोम प्राणायाम फायदेमंद होते है।

 

3. ध्यान और शांति : मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना भी जरूरी है। ध्यान और शांत वातावरण में समय बिताने से मन और शरीर को आराम मिलता है, जिससे रोगों का खतरा कम हो जाता है।

 

4. शीतल जल से स्नान : शरद ऋतु में शीतल जल से स्नान करना पित्त दोष को शांत करता है और शरीर को ठंडक प्रदान करता है। स्नान के बाद तिल के तेल की मालिश भी लाभकारी होती है।

 

5. कपड़ों का चयन : हल्के और आरामदायक कपड़े पहनें ताकि शरीर को सही तापमान मिल सके। इस समय सिंथेटिक कपड़ों से बचें, सूती कपड़े उत्तम माने जाते है।

 

###शरद ऋतु में क्या न करें

 

1. तेल-मसालेदार भोजन से बचें : इस समय भारी और मसालेदार भोजन से दूर रहें, क्योंकि यह पाचन तंत्र पर असर डालता है और पित्त को बढ़ाता है।

 

2. रात में ठंडे पदार्थ न लें: रात के समय ठंडे पदार्थों का सेवन जैसे ठंडा पानी,आइसक्रीम आदि से परहेज करें, इससे कफ और गले की समस्याएं हो सकती है।

 

3. अत्यधिक शारीरिक परिश्रम न करें : इस ऋतु में अत्यधिक शारीरिक परिश्रम करने से शरीर थकावट महसूस करता है। अधिक श्रम से शरीर की ऊर्जा कम हो जाती है, जो रोगों को निमंत्रण देती है।

 

4. अत्यधिक धूप में न जाएं : धूप में ज्यादा देर रहना शरीर में पित्त की वृद्धि करता है। धूप में बाहर निकलने से बचें और सिर को ढककर रखें।

 

निष्कर्ष

 

शरद ऋतु में रोगों से बचाव के लिए सही आहार और जीवनशैली का पालन करना आवश्यक है। इस समय शरीर की विशेष देखभाल करने से न केवल हम रोगों से बचे रहते है, बल्कि हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी मजबूत होती है। सात्विक आहार, नियमित योग, और शांत मन इस ऋतु को स्वस्थ और सुखद बनाने में सहायक है।

 

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