प्राचीन भारत में प्लास्टिक सर्जरी: सुश्रुत और नाक की ऐतिहासिक शल्य चिकित्सा

27 May 2025

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जब नाक की सर्जरी ने दुनिया को चौंकाया — प्राचीन भारत की चिकित्सा चमत्कार

भारत की प्राचीन सभ्यता केवल दर्शन, गणित और विज्ञान में ही नहीं, बल्कि चिकित्सा विज्ञान में भी अग्रणी रही है। आज जिस प्लास्टिक सर्जरी को हम आधुनिक चिकित्सा की उपलब्धि मानते हैं, उसका जन्म हज़ारों साल पहले भारत में हो चुका था — और वह भी एक अत्यंत जटिल प्रक्रिया से: नाक की सर्जरी (Rhinoplasty)

आयुर्वेद और शल्य चिकित्सा का स्वर्ण युग

प्राचीन भारत में चिकित्सा का सबसे प्राचीन और वैज्ञानिक रूप था आयुर्वेद। इसके दो मुख्य ग्रंथ हैं:

  • चरक संहिता – आंतरिक चिकित्सा पर आधारित
  • सुश्रुत संहिता – शल्य चिकित्सा पर केंद्रित

महर्षि सुश्रुत, जिन्हें ‘शल्य चिकित्सा का जनक (Father of Surgery)’ कहा जाता है, ने लगभग ईसा पूर्व 600 में एक संहिता लिखी थी जिसमें उन्होंने 300 से अधिक शल्य तकनीकों, 120 से अधिक सर्जिकल उपकरणों, और 8 प्रकार की सर्जरी का वर्णन किया।

नाक की सर्जरी की अनोखी विधि

नाक काटने की सजा उस समय आम थी — विशेष रूप से अपराधियों, विश्वासघात करने वालों या युद्धबंदी के लिए। ऐसे में नाक की पुनःस्थापना (reconstruction) सामाजिक और व्यक्तिगत सम्मान के लिए बेहद आवश्यक बन गई।

सुश्रुत संहिता में वर्णित Rhinoplasty तकनीक:

  • रोगी की नाक के कटे हुए हिस्से को पुनः बनाने के लिए गाल या माथे की त्वचा ली जाती थी।
  • इस त्वचा को सावधानी से आकार देकर कटे हुए स्थान पर सिल दिया जाता था।
  • बाँधने के लिए सूत और औषधीय जड़ी-बूटियों का प्रयोग किया जाता था।
  • परिणामस्वरूप, रोगी की नाक फिर से बन जाती थी — यह प्रक्रिया आधुनिक प्लास्टिक सर्जरी की पूर्वज थी।

जब यूरोप ने सीखा भारत से

18वीं सदी में अंग्रेजों ने महाराष्ट्र के पुणे क्षेत्र में एक भारतीय सर्जन को नाक की सफल पुनर्निर्माण करते देखा। उन्होंने इसे दस्तावेज़ किया, और 1794 में यह विधि लंदन के जर्नल “Gentleman’s Magazine” में प्रकाशित हुई। इससे पूरी दुनिया को पता चला कि भारत में सैकड़ों साल पहले नाक की प्लास्टिक सर्जरी होती थी।

यह वह समय था जब यूरोप में प्लास्टिक सर्जरी लगभग अनजानी थी, और भारत में यह परंपरा पहले से मौजूद थी।

✅ निष्कर्ष

प्राचीन भारत न केवल दर्शन और गणित में, बल्कि चिकित्सा विज्ञान में भी विश्व का पथप्रदर्शक रहा है।
महर्षि सुश्रुत जैसे आचार्य हमें यह बताते हैं कि चिकित्सा का उद्देश्य केवल रोग हटाना नहीं, बल्कि मानवता की सेवा करना भी है।

आज की अत्याधुनिक प्लास्टिक सर्जरी तकनीकों की जड़ें अगर कहीं मिलती हैं, तो वह हैं — प्राचीन भारतीय ज्ञान और सुश्रुत की कलम।

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