19 March 2025
अगाथोक्लीज़ के रहस्यमय सिक्के: जब कृष्ण और बलराम की पूजा अफगानिस्तान पहुँची!
अगाथोक्लीज़ के रहस्यमय सिक्कों का रहस्य, जहाँ ग्रीक राजा और सनातन संस्कृति का संगम हुआ, यह सवाल उठाता है कि क्या कृष्ण और बलराम की पूजा अफगानिस्तान में भी होती थी; 180 ईसा पूर्व के ये सिक्के इतिहास की जुबानी सनातन धर्म के वैश्विक प्रभाव को उजागर करते हैं।
प्राचीन इतिहास में कई ऐसे रहस्य छिपे हैं जो समय-समय पर नई खोजों के माध्यम से हमारे सामने आते हैं। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि भगवान कृष्ण और बलराम की पूजा कभी अफगानिस्तान तक फैली थी? यह रहस्य 180-190 ईसा पूर्व, मौर्य साम्राज्य के अंतिम दौर में ऐ-खानुम (Afghanistan) के निकट रहने वाले ग्रीक राजा अगाथोक्लीज़ (Agathocles) के सिक्कों में छिपा हुआ है। उनके बारे में कोई विस्तृत ऐतिहासिक विवरण नहीं मिलता, न ही उनके द्वारा निर्मित कोई नगर या स्मारक उपलब्ध हैं। अगर कुछ बचा है, तो वह हैं उनके द्वारा जारी किए गए रहस्यमय सिक्के!
खोए हुए सिक्कों से मिली चौंकाने वाली जानकारी
1970 के दशक में पुरातत्वविदों को अगाथोक्लीज़ द्वारा जारी किए गए दो प्रकार के सिक्के मिले। पहला प्रकार ग्रीक चाँदी के सिक्कों का था, जिन पर ज़्यूस (Zeus) और डायोनिसस (Dionysos) की छवियाँ अंकित थीं। लेकिन असली आश्चर्य तब हुआ जब पुरातत्वविदों को दूसरा प्रकार के सिक्के मिले! ये सिक्के कांस्य और चाँदी से बने थे, चौकोर या आयताकार थे, और इनमें भारतीय देवताओं की छवियाँ उकेरी गई थीं – भगवान विष्णु, शिव, वासुदेव, बुद्ध और बलराम!
क्या अफगानिस्तान में भी कृष्ण की पूजा होती थी?
हाल ही में ऐ-खानुम, अफगानिस्तान में 180 ईसा पूर्व के चौकोर सिक्के खोजे गए, जिनमें एक ओर भगवान कृष्ण और दूसरी ओर भगवान बलराम की छवि अंकित थी। लेकिन यहाँ एक और चौंकाने वाली बात सामने आई – इन सिक्कों पर ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपियों में लिखा था कि ये “राजने अगाथुक्लायस” (राजा अगाथोक्लीज़) के हैं! यह खोज इस बात का सबसे पुराना प्रमाण है कि भगवान कृष्ण को एक दिव्य शक्ति के रूप में पूजा जाता था और यह उपासना मथुरा क्षेत्र से परे भी फैली हुई थी।
ग्रीक राजा और भारतीय संस्कृति का संगम
इन सिक्कों की खोज से यह स्पष्ट होता है कि प्राचीन काल में भारतीय संस्कृति और धर्म सीमाओं से परे फैले हुए थे। मौर्य साम्राज्य के अंतिम चरण में भारतीय परंपराओं का प्रभाव ग्रीक शासकों पर भी पड़ा था। अगाथोक्लीज़ द्वारा भारतीय देवी-देवताओं के सिक्के जारी करना यह दर्शाता है कि भारतीय धार्मिक मान्यताओं को उस समय भी व्यापक स्वीकृति प्राप्त थी। लेकिन सवाल यह उठता है – क्या अगाथोक्लीज़ स्वयं सनातन धर्म से प्रभावित था, या यह सिर्फ उसके साम्राज्य में व्याप्त भारतीय संस्कृति की स्वीकार्यता थी?
यह खोज क्यों महत्वपूर्ण है?
यह खोज न केवल ग्रीक-भारतीय संबंधों की झलक प्रस्तुत करती है, बल्कि यह भी सिद्ध करती है कि भारतीय संस्कृति और धर्म का प्रभाव सीमाओं से परे तक विस्तारित था। कृष्ण और बलराम की पूजा का यह प्रमाण यह दर्शाता है कि हमारी सनातन परंपराएँ कितनी प्राचीन और व्यापक रही हैं। यह रहस्य आज भी इतिहासकारों और पुरातत्वविदों को रोमांचित करता है। कौन जानता है, भविष्य में हमें और कितने ऐसे प्रमाण मिल सकते हैं जो हमारी धार्मिक परंपराओं के विस्तार की नई कहानियाँ बयां करेंगे!
क्या आप सोच सकते हैं कि और कौन से रहस्य इतिहास में छिपे हो सकते हैं?
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