आशाराम बापू के एक फैसले से देशवासियों के अरबों रुपए बच गए, आत्महत्या रुकी

14 February 2024

 

आज जहाँ एक ओर वैलेंटाइन डे का प्रभाव अंधाधुंध बढ़ता आ रहा है तथा इसके कुप्रभाव व दुष्परिणाम समाज के सामने प्रत्यक्ष हो रहे हैं जैसे कि एड्स, नपुसंकता, दौर्बल्य, छोटी उम्र में ही गर्भाधान (Teenage Pregnency), ऑपरेशन,बाँझपन,आदि गुप्त बिमारियों का सामना समाज को करना पड़ रहा है ।

 

वेलेंटाइन डे मनाने से समाज में युवावर्ग का चारित्रिक पतन तथा विदेशी कंपनियों के गिफ्ट, गर्भनिरोधक सामग्री के पैसे अरबो-खरबो रूपये जाते देखकर और वृद्धाश्रमों की माँग बढ़ते देख हिन्दू संत आशारामजी बापू ने 2006 से एक अनूठी मुहिम की तरफ युवावर्ग को आकर्षित किया। जो है “मातृ पितृ पूजन दिवस” इसके कारण युवाओं का नैतिक, चारित्रिक पतन और विदेश में जाते अरबों रुपए और माता-पिता का अनादर करके वृद्धाश्रम भेजने आदि इन सभी पर रुकावट आई।

 

वेलेंटाइन डे का कुप्रभाव व मातृ-पितृ पूजन का सकारात्मक परिणाम देखकर देश- विदेश की सभी सम्मानीय एवं प्रतिष्ठित हस्तियों ने स्वागत किया और देश-विदेश में 2006 से 14 फरवरी को ‘वेलेंटाइन डे’ की जगह मातृ पितृ पूजन दिवस मनाना शुरू किया गया।

 

जब इस विषय को लेकर सोशल साइट पर देखा गया तो देखने को मिला कि बापू आसारामजी के अनुयायियों ने 2 महीने पहले से ही 14 फरवरी “मातृ पितृ पूजन दिवस” निमित्त देश-विदेश में 14 फरवरी मातृ-पितृ पूजन निमित्त कार्यक्रम शुरू कर दिए थे।

 

मातृ-पितृ पूजन को लेकर लगातार 15 दिन से Twitter, Facebook, Instagram, google, Whatsapp आदि पर भी उनके अनुयायी बहुत सक्रिय रहे । सोशल मीडिया से लेकर ग्राउंड लेवल तक बड़े जोरशोर से ParentsWorshipDay मनाया गया।

 

इस कार्यक्रम को विश्वभर में जैसे कि अमेरिका, दुबई, सऊदी अरब, केनेडा, पाकिस्तान, बर्मा, नेपाल, इटली, लन्दन, ऑस्ट्रेलिया आदि कई देशों में स्कूल, कॉलेज, जाहिर स्थल, वृद्धाश्रम, समाज सेवी संस्थाओं, घर, परिवार, मोहल्ले आदि में जगह-जगह पर उनके अनुयाई तथा समाज सेवी संस्थाओं ने “मातृ पितृ पूजन दिवस” मनाया गया ।

 

माता-पिता अपने बच्चों सहित अपने-अपने क्षेत्रों में जहाँ-जहाँ ये कार्यक्रम आयोजित किये गए वहाँ वहाँ बड़ी संख्या में पधारे और एक नये उत्साह, एक नए जीवन, नये संस्कारों, एक नयी दिव्य अनुभूति और एक अनोखे हर्ष-उल्लास के साथ सबके मुखमंडल प्रफुल्लित दिखे ।

 

सच में जिन्होंने भी वेलेंटाइन डे की जगह मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाया, अपने माता-पिता की पूजा की, अपनी दिव्य संस्कृति को अपनाया उनके जीवन में बहुत अच्छा देखने को जरूर मिला ।

 

कुछ पाश्चात्य संस्कृति (VALENTINE DAY) मनाने वाले मनचले लोग तर्क-कुतर्क करने लगे कि माता-पिता की पूजा एक ही दिन क्यों ? उन्हें जवाब इस तरह का है कि क्या आपने अपने जीवन में दिल से कभी अपने माता-पिता की पूजा की भी है या नहीं ? जरा ईमानदारी से अपने दिल पर हाथ रखकर तो कहना ।

 

और अगर सच्चे ह्रदय से माँ-बाप की पूजा होती तो क्या आप वैलेंटाइन-डे के इस कचरे को अपनाते ???

 

आज के कल्चर में वैलेंटाइन डे मनाने वाले आगे जाकर लड़के-लड़कियों के चक्कर में क्या-क्या कर बैठते हैं ये दुनिया जानती है । फिर समाज में और घर-परिवार में मुँह दिखाने लायक नहीं रहते । फिर या तो घर से भाग जाते हैं या तो आत्महत्या के विचार कर बैठते हैं और इसको अंजाम देते हैं ।

 

कुछ समय पूर्व ही कई अखबारों में पढ़ने को मिला कि जवान लड़के-लड़कियाँ नदी में कूदकर अथवा ट्रेन से कूदकर जान दे बैठे। क्या यही है आज का VELANTINEDAY….???

 

अनादिकाल से भारत के महान संत ही समाज की रक्षा करते आये हैं । समाज को संवारने का दैवीकार्य महान ब्रह्मवेत्ता तत्वज्ञ संतों द्वारा ही होता आया है और जब-जब समाज कुकर्म और पाप की गहरी खाई में गर्क होने लगता है, अधर्म बढ़ने लगता है तो किसी न किसी महापुरुष को परमात्मा (ईश्वर) धरती पर प्रकटाते हैं या स्वयं भगवान् धरती पर अवतार लेते हैं और इस दिशाहीन समाज को एक नयी दिशा देकर, समाज को सुसंस्कारित कर, समाज में धर्म की स्थापना करते हैं जैसा कि भगवद्गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है।

 

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् |

धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ||

 

महापुरुषों की गाथा सुज्ञ समाज अनंत काल तक गाता रहता है । ऐसे ही कई महापुरुष जैसे संत कबीर, गुरु नानक जी, संत तुलसीदास जी, संत लीलाशाह जी महाराज, संत तुकाराम जी, संत ज्ञानेश्वर जी, स्वामी विवेकानंद जी, स्वामी अखंडानन्द जी आदि महान सन्तों का यश आज भी जीवित है ।

 

करोड़ो-अरबों लोग धरती पर जन्म लेते हैं और यूँ ही मर जाते हैं पर संतों का नाम,आदर,पूजन व यश सभी के हृदयों में अंकित है ।

 

ऐसे ही संत आज इस धरा पर हैं लेकिन बहिर्मुख व कृतघ्न समाज को दिखता कहाँ है! कहाँ पहचान पाते हैं उन महान संतों को!!

 

गुरुनानक जैसे महान संतों को जेल में डलवा दिया जाता है । दो बार तो गुरुनानक जी को भी जेल जाना पड़ा । संत कबीरजी जैसों को वेश्याओं द्वारा बदनाम करवाया जाता है । भगवान बुद्ध पर दुष्कर्म का आरोप लगाया गया लेकिन उनकी पूजा आज भी होती है क्योंकि “धर्म की जय और अधर्म का नाश” ये प्राकृतिक सिद्धांत है ।

 

आज समाज को एक अद्भुत प्यारा सा पर्व देकर हिन्दू संत आसारामजी बापू ने सभी के दिलों में राज किया है । सबको प्रेम दिया है । सभी को सन्मार्ग पर ले चलने का अद्भुत महान कार्य किया है । कई समाज के बुद्धिजीवी तो हिन्दू संत आसारामजी बापू के प्रति आभार व्यक्त कर रहे हैं। लेकिन भारत में ही विदेशी षड़यंत्र द्वारा ( क्रिश्चयन मिशनरीज, विदेशी कंपनियों के मुआवजे से ) उन्हें जेल भिजवा दिया गया, मीडिया द्वारा बदनाम करवाया गया और सुज्ञ समाज देखता रह गया ।

 

गौरतलब है कि संत आसारामजी बापू 11 साल से जोधपुर जेल में बन्द है लेकिन उनके करोड़ो भक्त अभी तक उनसे जुड़े हैं ।

 

क्या ये उन महान संत की निर्दोषता का प्रमाण नहीं..?? क्या किसी बलात्कारी के पीछे करोड़ों का जन-समूह हो सकता है..???

है जो वंदनीय और पूजनीय वो, दिन अपने कारावास में बिताते हैं ।

सत्कार्यों का मिला कटुफल, उसको भी हंसकर सहते जाते हैं ।।

 

आज का मानव बिना चमत्कार के किसी को नमस्कार नहीं करता वहीं इनके करोड़ों अनुयायी आज भी इनके लिए पलकें बिछाये बैठे हैं ।

 

बिना सत्य के बल के कोई करोड़ों के जनसमूह को अपनी ओर आकर्षित नहीं कर सकता इतना तो हर समझदार इंसान समझ सकता है ।

 

लेकिन कई मूर्ख लोग मीडिया की बातों में आकर अपने ही संतों पर लांछन लगाने से पीछे नहीं हटते..!!

 

अगर मीडिया इतनी ही निष्पक्ष है तो क्यों संत आसारामजी बापू द्वारा किये गए और किये जा रहे अनेकों समाजसेवा के कार्यों को क्यों छुपा रही है ???

 

हर सिक्के के दो पहलू होते हैं मीडिया ने कहा बापू रेपिस्ट आपने मान लिया पर कभी आपने ये जानने का प्रयास किया कि उन पर रेप का आरोप ही नही है, छेड़छाड़ का केवल आरोप है और उनके खिलाफ कितने षड्यंत्र हुए और उसका खुलासा हुआ है वे आपको नही पता होगा। उनके द्वारा हुए और हो रहे समाज उत्थान के सेवाकार्यों को दृष्टिगोचर किया जा रहा है ।

 

हमारे देश में एक ओर 87 वर्षीय वरिष्ठ संत बापू आसारामजी को जमानत का भी अधिकार नहीं दूसरी ओर ऐसे ही कई केस हमारे सामने हैं जिनमें सबूत मिलने पर भी वो मजे से जमानत पर बाहर घूम रहे हैं ।

 

पिछले 11 सालों में नेता,अभिनेता, पत्रकार, यहां तक कि आतंकवादियों तक को बेल मिल चुकी है पर संत आशाराम बापू को 11 सालों में 1 दिन की भी बेल नही मिली है बापूजी के साथ ही इतना घोर अन्याय क्यों???

क्या हिन्दू संत होना ही गुनाह है या हिन्दू संस्कृति उत्थानार्थ कार्य करना गुनाह है??

 

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