25 दिसम्बर को क्यों और कैसे मनायें ‘तुलसी पूजन दिवस’?

7 दिसम्बर 2021

azaadbharat.org

क्रिसमस दिनों में बीते वर्ष की विदाई पर पाश्चात्य अंधानुकरण से नशाखोरी, आत्महत्या आदि की वृद्धि होती जा रही है। तुलसी उत्तम अवसादरोधक एवं उत्साह, स्फूर्ति, सात्त्विकता वर्धक होने से इन दिनों में यह पर्व मनाना वरदानतुल्य साबित होगा।

धनुर्मास में सभी सकाम कर्म वर्जित होते हैं परंतु भगवत्प्रीत्यर्थ कर्म विशेष फलदायी व प्रसन्नता देने वाले होते हैं। 25 दिसम्बर धनुर्मास के बीच का समय होता है।

विदेशों में भी होती है तुलसी पूजा

मात्र भारत में ही नहीं वरन् विश्व के कई अन्य देशों में भी तुलसी को पूजनीय व शुभ माना गया है। ग्रीस में इस्टर्न चर्च नामक सम्प्रदाय में तुलसी की पूजा होती थी और सेंट बेजिल जयंती के दिन नूतन वर्ष भाग्यशाली हो इस भावना से चढ़ायी गयी तुलसी के प्रसाद को स्त्रियाँ अपने घर ले जाती थीं।

तुलसी पूजन विधि

25 दिसम्बर को सुबह स्नानादि के बाद घर के स्वच्छ स्थान पर तुलसी के गमले को जमीन से कुछ ऊँचे स्थान पर रखें। उसमें यह मंत्र बोलते हुए जल चढ़ायें-
महाप्रसादजननी सर्वसौभाग्यवर्धिनि।
आधिव्याधिहरा नित्यं तुलसि त्वां नमोऽस्तुते।।

फिर ‘तुलस्यै नमः’ मंत्र बोलते हुए तिलक करें, अक्षत (चावल) व पुष्प अर्पित करें तथा कुछ प्रसाद चढ़ायें। दीपक जलाकर आरती करें और तुलसीजी की 7, 11, 21, 51 या 111 परिक्रमा करें। उस शुद्ध वातावरण में शांत होके भगवत्प्रार्थना एवं भगवन्नाम या गुरुमंत्र का जप करें। तुलसी के पास बैठकर प्राणायाम करने से बल, बुद्धि और ओज की वृद्धि होती है।
तुलसी पत्ते डालकर प्रसाद वितरित करें।

तुलसी के समीप भजन, कीर्तन कर सकते हैं। तुलसी नामाष्टक का पाठ भी पुण्यकारक है। तुलसी पूजन अपने नजदीकी आश्रम, तुलसी वन में अथवा यथानुकूल किसी भी पवित्र स्थान पर कर सकते हैं।

तुलसी नामाष्टकः
वृन्दां वृन्दावनीं विश्वपावनीं विश्वपूजिताम्।
पुष्पसारां नन्दिनीं च तुलसीं कृष्णजीवनीम्।।
एतन्नामष्टकं चैव स्तोत्रं नामार्थसंयुतम्।
यः पठेत्तां च संपूज्य सोऽश्वमेधफलं लभेत्।।

भगवान नारायण देवर्षि नारदजी से कहते हैं- “वृंदा, वृंदावनी, विश्वपावनी, विश्वपूजिता, पुष्पसारा, नंदिनी, तुलसी और कृष्णजीवनी– ये तुलसी देवी के आठ नाम हैं। यह सार्थक नामावली स्तोत्र के रूप में परिणत है। जो पुरुष तुलसी की पूजा करके इस नामाष्टक का पाठ करता है, उसे अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है।”  (ब्रह्मवैवर्त पुराण, प्रकृति खंड 22.32-33)

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