07 July 2025
चातुर्मास की कथा: भगवान विष्णु की योगनिद्रा और धर्म का रहस्य
हिंदू धर्म में चातुर्मास का समय अत्यंत पवित्र और रहस्यमय माना जाता है। यह केवल चार महीनों की धार्मिक परंपरा नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक गूढ़ और प्रेरणादायक कथा छिपी है। यह कथा न केवल ईश्वर की लीला को प्रकट करती है, बल्कि जीवन में संयम, त्याग और साधना का महत्व भी उजागर करती है।
चलिए, जानते हैं चातुर्मास के पीछे की यह दिव्य और रोचक कथा—
जब भगवान विष्णु हुए निद्रावस्था में…
पुराणों में वर्णन मिलता है कि त्रेता युग में जब राक्षसों का अत्याचार बढ़ने लगा और धरती पर अधर्म फैलने लगा, तब सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए और प्रार्थना करने लगे, “प्रभु! आप ही धर्म के रक्षक हैं, अब अधर्म को रोकने के लिए कुछ उपाय कीजिए।”
भगवान विष्णु ने मुस्कराते हुए कहा, “धर्म का संतुलन बनाए रखने के लिए मैं चार महीने के लिए योगनिद्रा में जाऊँगा। इस समय मेरी चेतना भीतर की ओर होगी। यह काल पृथ्वीवासियों के लिए तप, साधना और आत्मशुद्धि का होगा। जो मनुष्य इस समय धर्म के मार्ग पर चलेगा, संयम रखेगा, वह मेरे कृपापात्र बनेगा।”
इसके बाद, आषाढ़ शुक्ल एकादशी के दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेषनाग की शैय्या पर योगनिद्रा में चले गए। यही दिन “देवशयनी एकादशी” कहलाया।
देवताओं और राक्षसों के बीच समझौता
जब राक्षसों ने सुना कि भगवान विष्णु चार महीने तक निद्रावस्था में रहेंगे, तो उन्होंने देवताओं से समझौता किया – “जब तक विष्णु सो रहे हैं, हम युद्ध नहीं करेंगे।” यह चमत्कारिक समय ऐसा था जब धरती पर अपेक्षाकृत शांति रही। लोग धार्मिक कार्यों में प्रवृत्त हुए। इस शांति को बनाए रखने के लिए ऋषियों और तपस्वियों ने भी इस काल को विशेष साधना के लिए चुना।
धरती पर साधना का उत्सव
भगवान के निद्रावस्था में होने का अर्थ था—धर्म और अधर्म का संतुलन मनुष्य को स्वयं साधना और विवेक से बनाए रखना है। इसलिए ऋषियों ने चातुर्मास के इन महीनों को संयम, व्रत और तप के लिए सर्वश्रेष्ठ घोषित किया।
- ❇️ साधु-संत एक ही स्थान पर ठहर जाते हैं।
- ❇️ गृहस्थ जन मांस-मदिरा, प्याज-लहसुन जैसे तामसिक पदार्थों से परहेज करते हैं।
- ❇️ लोग नए संकल्प लेते हैं, कथा-प्रवचन सुनते हैं, और पुण्य अर्जित करते हैं।
देवोत्थान एकादशी: जब विष्णु जागे
चार महीने बाद, कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन भगवान विष्णु ने योगनिद्रा से जागरण किया। यह दिन “देवोत्थान एकादशी” के नाम से प्रसिद्ध है। इसे ही चातुर्मास का समापन माना जाता है।
मान्यता है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने तुलसी माता से विवाह किया था, जो प्रतीक है धर्म और प्रकृति के पवित्र मिलन का।
कथा से मिलने वाली शिक्षा
यह कथा हमें यह सिखाती है कि जब भगवान स्वयं “निष्क्रिय” हो जाते हैं, तब मनुष्य को अपने कर्म, विवेक और आत्मसंयम से धर्म का पालन करना होता है। यह काल बाहरी पूजा से अधिक अंतर्मन की यात्रा, आत्मनिरीक्षण और आत्मविकास का समय है।
निष्कर्ष
चातुर्मास की कथा केवल धार्मिक आख्यान नहीं, बल्कि आत्मदर्शन का अमूल्य सूत्र है। यह हमें बताती है कि हर व्यक्ति अपने जीवन का रक्षक स्वयं हो सकता है, यदि वह संयम, साधना और सेवा के मार्ग पर चले।
“जब भगवान सोते हैं, तब मनुष्य का धर्म जागता है। यही चातुर्मास का असली संदेश है।”
